मुस्लिम समाज के लोगों ने किया छत्तीसगढ़ अल्पसंख्यक आयोग /वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष का काले झंडे दिखाकर विरोध

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(आरिफ दागिया)

छत्तीसगढ़ अल्पसंख्यक आयोग /वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ सलीम राज आज वक्फ़ बोर्ड की संपत्ति का निरीक्षण करने के लिए भिलाई (छत्तीसगढ़) पहुंचे थे। इस दौरान मुस्लिम समाज के लोगों ने उन्हें काले झंडे दिखाकर विरोध किया। इतना ही नहीं मुस्लिम समाज के लोगों ने वापस जाओ के नारे भी लगाए।

मिली जानकारी के अनुसार, अल्पसंख्यक आयोग अध्यक्ष डॉ सलीम राज वक्फ़ बोर्ड की संपत्ति का निरीक्षण करने के लिए पहुंचे थे। इस दौरान वो कॉन्फ्रेंस करने वाले थे, लेकिन डॉ सलीम राज के कॉन्फ्रेंस में पहुंचने से पहले ही मुस्लिम समाज के युवक बड़ी संख्या में वहां पहुंच गए और डॉ सलीम राज के दौरे का विरोध करने लगे। इतना ही नहीं लोगों ने डॉ सलीम राज को कलए झंडे दिखाकर वापस जाओ के नारे में भी लगाए।

वहीं कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉ सलीम राज ने कहा कि मस्जिदों को राजनैतिक अखाड़ा न बनाया जाए। तकरीर पर सिर्फ धर्म की बात होनी चाहिए। वहीं युवाओं द्वारा काले झंडे दिखाए जाने पर डॉ राज ने कहा कि, कांग्रेस के युवा भटक गए। ये युवा मस्जिदों को राजनैतिक अखाड़ा बनाना चाह रहे हैं।

सवाल यह उठतः है कि मस्जिद को राजनीति का अखाड़ा बनाने से उनका तात्पर्य क्या है?क्या फिलिस्तीनियों के नरसंहार के खिलाफ मिम्बर से बोलना राजनीति है?क्या गाज़ा के मज़लूमों के लिए दुआ करना राजनीति है?क्या मस्जिद पर चढ़ कर भगवा झंडा लगाने की चर्चा करना राजनीति है?क्या मुसलमानों के ऊपर मंडरा रहे खतरे से क़ौम को आगाह करना राजनीति है?हमारे रसूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे व सल्लम की शान में गुस्ताखी करने वालों के बारे में तकरीर करना और गमो गुस्से का इज़हार करना क्या राजनीति है?
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अगर डॉ सलीम राज ने इस्लाम के इतिहास को।पढ़ा होता तो उनको मालूम होता कि इस्लाम मे धर्म और राजनीति अलग अलग नहीं हैं।एक बन्दा नमाज़ के वक़्त जमात की इमामत भी करता था और वही बन्दा खलीफा बन कर इस्लामी हुकूमत की सत्ता भी चलाता था।नबी।पाक सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के वक़्त मस्जिदे नबवी में ही उम्मत के भविष्य के सारे फैसले होते थे।मस्जिदे नबवी से ही विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों से पत्र व्यवहार होता था।मस्जिदे नबवी से ही शत्रु देशों पर चढ़ाई करने के लिए इस्लामी फौजें भेजी जाती थीं।विभिन्न देशों के राजदूत और प्रतिनिधिमंडल आते थे तो मस्जिदे नबवी में ही उनके साथ बातचीत होती थी और द्विपक्षीय मसलों पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे।

अगर कोई यह सोचता है कि मस्जिद के मिम्बर से सिर्फ नमाज़,रोज़ा,हज,ज़कात के मसलों पर तकरीर की जाए और उम्मत,क़ौम,समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों को राजनीति का नाम दे कर इन पर चर्चा करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए ;तो प्रतीत होता है कि ऐसा सोचने वाला शख़्स या तो इस्लाम को नहीं समझता या उसे इस्लाम के बारे में किसी ने गलत जानकारी उपलब्ध कराई है!
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बेहतर होगा कि अध्यक्ष साहब मुस्लिम समाज के साथ खुल कर संवाद करें और आपस में मिलकर समस्या का कोई समाधान निकालें।तभी समाज के युवाओं के साथ इस तरह होने वाले टकरावों से बचा जा सकता है जो आज की परिस्थितियों को देखते हुए अत्यंत आवश्यक भी है.

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