“वरिष्ठ पत्रकार” की परिभाषा: अनुभव, प्रतिष्ठा या महज एक लेबल?

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             (विकास सक्सेना)

आजकल पत्रकारिता जगत में एक शब्द बेहद आम हो गया है- वरिष्ठ पत्रकार”। हर दूसरा पत्रकार, चाहे वह टीवी चैनलों पर हो या डिजिटल मीडिया में, सोशल मीडिया प्रोफाइल से लेकर कॉलम बाइलाइन तक में खुद को “वरिष्ठ पत्रकार” कहता नजर आता है। सवाल यह है कि इस विशेषण का अर्थ वास्तव में क्या है? क्या यह उम्र से तय होता है, अनुभव से, या केवल आत्मघोषणा से?

अनुभव बनाम उम्र

सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि “वरिष्ठता” यानी Seniority शब्द अपने आप में उम्र से ज्यादा अनुभव से जुड़ा होता है। परंतु सिर्फ वर्षों का अनुभव होने से कोई पत्रकार “वरिष्ठ” कहलाए, ऐसा भी नहीं होना चाहिए। एक व्यक्ति 15-20 साल तक पत्रकारिता में रहते हुए भी केवल सामान्य रिपोर्टिंग या सतही लेखन करता रहा हो, तो क्या वह किसी गहन विश्लेषण, समझ और दृष्टिकोण में वरिष्ठ माना जा सकता है? दूसरी ओर कोई पत्रकार जिसने 10 साल के भीतर गंभीर खोजी पत्रकारिता की हो, सामाजिक प्रभाव डाला हो, पत्रकारिता की गरिमा बनाए रखी हो- वह वरिष्ठ कहलाने योग्य हो सकता है?

क्या “वरिष्ठ” कोई पदवी है?

दरअसल, भारत में “वरिष्ठ पत्रकार” कोई संस्थागत रूप से मान्यता प्राप्त पद या उपाधि नहीं है। यह न तो किसी विश्वविद्यालय द्वारा दिया जाने वाली डिग्री है, न ही किसी पत्रकार संगठन की ओर से जारी किया गया प्रमाणपत्र। यह पूरी तरह एक सामाजिक और व्यावसायिक पहचान है, जो किसी व्यक्ति की पत्रकारिता में योगदान, दृष्टिकोण, संतुलन, और नैतिकता पर आधारित होनी चाहिए।

लेकिन आज स्थिति यह है कि कोई भी पत्रकार, चाहे वह 5 साल से पत्रकारिता कर रहा हो या 25 साल से, अपने नाम के आगे “वरिष्ठ पत्रकार” लिख देना उसका फैशन सा बन गया है। सोशल मीडिया प्रोफाइल पर यह एक ऐसा तमगा बन चुका है, जो बिना किसी सत्यापन के लगाया जा सकता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कोई खुद को “संवेदनशील कवि” या “खोजी पत्रकार” घोषित कर दे।

पत्रकारिता संस्थानों की भूमिका

आज जब मीडिया की साख पर सवाल उठ रहे हैं, तब पत्रकारिता संस्थानों और संगठनों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वे “वरिष्ठ पत्रकार” जैसी शब्दावलियों को लेकर स्पष्टता पैदा करें। पत्रकारिता के छात्रों को यह सिखाया जाना चाहिए कि वरिष्ठता केवल समय की देन नहीं, बल्कि मूल्य आधारित पत्रकारिता, शोधपरक लेखन, और सामाजिक उत्तरदायित्व से अर्जित की जाती है। उन्हें यह भी समझाया जाना चाहिए कि पत्रकारिता में पद नहीं, प्रतिष्ठा मायने रखती है- जो जनता, पाठकों और सहकर्मियों द्वारा दी जाती है, खुद घोषित नहीं की जाती।

मूल्यांकन के कुछ मानदंड होने चाहिए

यह सही समय है जब मीडिया संगठनों और पत्रकार संघों को “वरिष्ठ पत्रकार” की स्वीकृति को लेकर कुछ मानदंड तय करने चाहिए। उदाहरण के लिए-

  • कम से कम 25 वर्षों का सक्रिय पत्रकारिता अनुभव
  • किसी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय मीडिया संस्थान में नेतृत्वकारी भूमिका
  • विशेष रिपोर्टिंग या खोजी पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान
  • सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर गहन कार्य
  • पत्रकारिता पुरस्कार या मान्यता प्राप्त

इनमें से कोई दो-तीन मानदंड भी किसी पत्रकार को “वरिष्ठ” की श्रेणी में रख सकते हैं, बशर्ते यह समाज और पत्रकारिता जगत भी उसे उसी नजर से देखे।

“वरिष्ठ पत्रकार” कोई सजावटी उपाधि नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और गरिमा से जुड़ा एक सार्वजनिक विश्वास है। जब हर कोई खुद को वरिष्ठ कहने लगे, तो शब्द अपना अर्थ खो देता है। इसलिए जरूरी है कि पत्रकारिता में “वरिष्ठता” का मूल्य अनुभव, दृष्टिकोण, विवेक और निष्पक्षता से आंका जाए, ना कि महज प्रोफाइल पर लिखा हुआ एक आकर्षक विशेषण बनकर रह जाए। मीडिया की विश्वसनीयता तभी बचेगी, जब पदवी नहीं, पत्रकार का काम बोलेगा।

साभार –समाचार4मीडिया ।।

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