(दीपक पाचपोर)
मेरे गृहनगर मुंगेली में अपने मित्र मनोज अग्रवाल के घर शनिवार की दोपहर खाना खाकर निकल ही रहा था कि मनोज के घर काम करने वाली ने कहा कि, ‘पोस्टमेन ह आय हे!’
छत्तीसगढ़ी में अनेक लोक भाषाओं व बोलियों की तरह स्त्री लिंग या पुल्लिंग का भेद नहीं है। अवधारणा के अनुरूप और बनी हुई छवि के कारण अंग्रेजी के ‘पोस्टमेन’ यानी पुरुष डाकिये की ही अपेक्षा थी। बाहर निकलकर देखा तो यह युवती डाक सामग्री लेकर आई थी। लाल सूट, लाल ही रंग की चमचमाती साइकिल थामी हुई। कपड़े भी नये थे और साइकिल भी नयी। उसने मनोज को रजिस्टर्ड लिफाफा पकड़ाया, पावती के हस्ताक्षर लिए।
उससे बात की तो पता चला कि साइकिल ही नहीं, उसकी नौकरी भी नयी-नयी है। ऐसा नहीं कि महिलाएं पोस्ट आफिस में काम नहीं करतीं। उच्चतम पदों पर शानदार काम कर रही हैं, पर ज्यादातर कार्यालयीन। दफ़्तरों के भीतरी कामकाज। डाकिये के रूप में बहुत कम ‘पोस्टवूमेन’ दिखाई देती हैं।
यह मुस्कान है। पूरा नाम नहीं पूछा- जरूरत ही नहीं है क्योंकि मुस्कान तो सार्वभौमिक है, यूनिवर्सल है- जैसे खुशबू या दुनिया की सारी सुंदर बातें। यह 21वीं सदी की मुस्कान है। बिलासपुर निवासी। अंदाजा यही है कि स्नातक होगी अथवा पोस्ट ग्रेजुएट। ऐसे वक्त में जब नौकरियों का अभाव है, इस प्यारी सी बिटिया ने अपनी योग्यता के बल पर यह शानदार नौकरी पा ली। एक समय था जब किसी भी सरकारी विभाग के अलावा शिक्षा, रेलवे और डाक विभाग में कार्यरत लोगों का सम्मान सारा शहर करता था। भारतीय साहित्य डाकखाने, डाक बाबू , डाकिये, पोस्ट बॉक्स, चिट्ठी, मनीऑर्डर, तार और इस विभाग की अन्य गतिविधियों से अटा पड़ा है। वर्तमान दौर की नयी तकनीकों ने पोस्टल डिपार्टमेंट के सारे काम छीन लिये हैं। मोबाइल और ईमेल ने टेलीग्राम को बिदा कर दिया, तो नेट बैंकिंग ने मनीऑर्डर को बीते दिनों की प्रणाली कहकर इतिहास में ढकेल दिया। पहले डाक विभाग में जमा राशि सबसे अधिक ब्याज देती थी, खासकर आरडी (रिकरिंग डिपॉजिट- आवर्ती योजना) और दीर्घकालिक जमा योजना, पर म्युचुअल फंड, शेयर और तीव्र सेवाओं के लिए लोगों ने राह बदल ली। अब वे बैंकों की तरफ मुड़ गये हैं, वह भी निजी क्षेत्र के। बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि अब भी अनेक आकर्षक जमा या बचत योजनाएं डाक विभाग संचालित करता है। वे अल्प प्रचारित भी हैं
फिर भी अब भारतीय डाकखाने अक्सर सूने पड़े रहते हैं। अधिकतर उपयोग शासकीय डाक के लिए होता है। तत्काल, 24 घंटे में कोई चिट्ठी भेजनी हो तो स्पीड पोस्ट, सरकारी नौकरी या शासकीय शिक्षण संस्थान में प्रवेश लेना है तो आवेदन के साथ दिये जाने वाले शुल्क (पोस्टल ऑर्डर) हेतु ही डाकखानों की याद आती है।
…पर अब भारतीय डाक विभाग अपने आप को परिस्थितियों व स्पर्धा के अनुसार ढाल रहा है। नयी नौकरियां निकल रही हैं। लोग नहीं जानते कि इसमें शानदार तनख्वाह है। जिसे चिट्ठी-पत्री के बंडल लेकर घर-घर घूमने में परहेज नहीं है, ऐसे युवाओं के लिए इसमें गुंजाइशें बनी हुई हैं। विभाग की अधिकृत वेबसाइट खोलने से पता चला कि पिछले कुछ दिनों में 45 हजार नौकरियां उसने निकाली हैं। नये डाकिये को भी लगभग 15 हजार रुपए 5 घंटे के काम के मिलते हैं। ज्यादा घंटे के लिए अतिरिक्त कार्य भत्ता। वार्षिक वृद्धि अलग।
मुस्कान ने बताया कि उसे ज्वाइन हुए एक ही हफ्ता हुआ है। यह उसकी पहली पोस्टिंग है। बिलासपुर छोड़ वह मुंगेली चली आई है। यह कस्बा तंग रास्तों वाला है, भीड़-भाड़ सभी ओर हर समय रहती है। यह बेटी बगैर संकोच एक अनजान नगर से अपना सफर शुरू कर रही है। यह उसकी कर्म भूमि है; और लांचिंग पैड भी। इस विभाग में उसे और भी आगे जाना है। यहां वह महफूज़ रहे, तरक्की करे!
मुस्कान, welcome to Mungeli! तुम इस शहर की नयी बनी बेटी हो! फर्राटे भरो, खूब ऊंचे उड़ो!! आएगा वह समय जब तुम किसी ऊंचे पद पर बैठोगी; और हम मुंगेलिहा लोग्स गर्व से कहेंगे- “अबे, वही नोनी त हवय जेन ह मुंगेली मां काम करत रहिस! बिलासपुर के रहैया।