(रईस खान)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय (पीएमओ) में अचानक हलचल मच गई है। 17 साल से मोदी के साए की तरह चिपके रहे विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) हीरेन जोशी रातोंरात ‘गायब’ हो गए। उधर, प्रसार भारती के चेयरमैन नवनीत कुमार सहगल ने भी अचानक इस्तीफा दे दिया। विपक्ष ने इसे ‘मोदी सरकार की आंतरिक सफाई’ बताते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन बीजेपी और पीएमओ की ओर से अब तक कोई सफाई नहीं आई है।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोशी पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा, “हीरेन जोशी पीएमओ में बैठकर मीडिया को कंट्रोल करते थे और लोकतंत्र की हत्या करने का काम कर रहे थे।” खेड़ा ने दावा किया कि जोशी के विदेशी बिजनेस कनेक्शन हैं, बेटिंग ऐप्स (जैसे महादेव ऐप) में उनकी हिस्सेदारी है और उन्होंने चैनलों में ‘चुनिंदा पत्रकारों’ को जगह दिलाई। एक आरोप यह भी है कि जोशी के बेटे को रिलायंस इंडस्ट्रीज से सालाना 3 करोड़ रुपये की सैलरी मिल रही है।
जोशी 2008 से मोदी के साथ हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय से शुरू होकर वे पीएमओ तक पहुंचे और मीडिया व डिजिटल कम्युनिकेशन संभालते थे। सोशल मीडिया पर अफवाहें उड़ीं कि पीएमओ ने उन्हें हटा दिया है। पीएमओ की वेबसाइट से उनका नाम गायब हो चुका है और उनकी जिम्मेदारियां रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को सौंप दी गई हैं। एक आंतरिक ज्ञापन में भी यही लिखा है। लेकिन पीएमओ ने इसे नकारा नहीं।
खेड़ा ने आगे कहा कि जोशी व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिए न्यूज चैनलों को निर्देश देते थे- किसे गाली देनी है, किसे चुप रहना है। उन्होंने एक महिला हिमानी सूद का जिक्र किया, जो चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी की प्रो वाइस चांसलर हैं। दावा है कि जोशी ने सूद के लिए ‘इंडिया माइनॉरिटीज फेडरेशन’ बनाया और मोदी को इस्लामिक देशों के राजदूतों से मिलवाया। सूद को हिमाचल से टिकट और मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की कोशिश में जोशी ने जेपी नड्डा से टकराव किया, जिसके बाद अमित शाह ने मोदी को बताया और जोशी बाहर हो गए।
इधर, प्रसार भारती के चेयरमैन नवनीत सहगल ने 3 दिसंबर को इस्तीफा सौंप दिया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इसे तुरंत मंजूर कर लिया। सहगल मार्च 2024 में तीन साल के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन 20 महीने में ही पद छोड़ दिया। मंत्रालय ने कहा, “इस्तीफा 2 दिसंबर का है और तत्काल प्रभाव से स्वीकार।” वजह स्पष्ट नहीं बताई गई। सोशल मीडिया पर इसे जोशी मामले से जोड़ा जा रहा है। कुछ यूजर्स कह रहे हैं कि सहगल सरकारी मीडिया के ‘मुखिया’ थे और सुधीर चौधरी जैसे एंकर्स को फायदा पहुंचा रहे थे।
यह सब तब हो रहा है जब रुपया डॉलर के मुकाबले 90 के पार चढ़ गया। कुछ अफवाहें हैं कि पीएमओ ने चैनलों को ’90 पार पर डिबेट न करने’ का आदेश दिया था, जिसके बाद जोशी गायब हुए। लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं। विपक्ष का कहना है कि ‘गोदी मीडिया’ की व्यूअरशिप गिर रही है और मोदी के एक्स फॉलोअर्स 40 लाख कम हो गए। कांग्रेस ने इसे ‘मोदी की गिरती साख’ से जोड़ा।
बीजेपी ने अभी चुप्पी साध रखी है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को भी इस चेन से जोड़ा जा रहा। क्या यह मोदी सरकार की ‘स्प्रिंग क्लीनिंग’ है या बड़ा स्कैंडल? संसद सत्र में यह मुद्दा गरमाएगा। फिलहाल, दिल्ली के मीडिया गलियारों में कयासों का दौर चल रहा है।

