एजुकेशनल मॉडल क्या हो..?–गाँव में बच्चों की पढ़ाई

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              (रईस खान)

छोटे बच्चों को प्रि प्राइमरी और प्राइमरी शिक्षा उन्हें जितना घर के नजदीक मिले उतना ही बेहतर है। उनके मां बाप भी अपने बच्चे की परेशानी और शिक्षा की क्वालिटी समझ सकते हैं। बच्चों को लाने ले जाने और उनके आने जाने की समस्या का भी बेहतर समाधान हो सकता है स्थानीय स्तर पर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा व्यवस्था हो जाने से और यह शिक्षा कम खर्चीली भी साबित होगी। भारी बैग लाने ले जाने, वाहन व्यवस्था और समय की भी काफी बचत हो सकती है।

हालांकि सरकारी प्राइमरी स्कूल ज्यादातर गाँव में बनाए गए हैं लेकिन सरकारी स्कूलों में उचित देखभाल और सरकारी सिलेबस के चलते शिक्षा का उद्देश्य नहीं पूरा हो पा रहा है। एक डायनामिक, एप्लीकेबल और गुणवत्ता पूर्ण सिलेबस निजी स्कूलों के माध्यम से बच्चों को परिपूर्ण बना सकता है। वर्चुअल और डिजिटल माध्यम से स्थानीय प्रशिक्षित महिला टीचर के माध्यम से बच्चों को बेहतर तरीके से शिक्षित किया जा सकता है।

इसके लिए गाँव/मोहल्ला कमेटी के जरिये बेहतर शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है। ये कमेटी गाँव के पढ़े लिखे और समर्पित लोगों को साथ लेकर बनाई जा सकती है। गाँव से शहर और कस्बों में नौकरी और व्यापार करने वाले लोगों को इस कमेटी में शामिल किया जाना चाहिए। और उन्हें त्रैमासिक,छमाही परिणाम के अनुसार सुझाव और निष्कर्ष में शामिल किया जाना चाहिए।सुपर विजन और नियंत्रण तहसील और जिला कमेटी के जरिये होना चाहिए। सिलेबस का चयन सरकारी सिलेबस, व्यवहारिक प्रशिक्षण सामग्री और उपयोगी धार्मिक विषयों से एक कमेटी द्वारा सरकारी नियमानुसार चयन किया जाना चाहिए। और उन पुस्तकों और सामग्री को बच्चों के लिए संकलित किया जाना चाहिए। सरकारी नई तालीम का अध्ययन करके उपयोगी सामग्री सिलेबस में शामिल की जा सकती है।

गाँव और उसके आसपास के कस्बों से शिक्षित लड़कियों/ महिलाओं को इस तरह के प्रि प्राइमरी और प्राइमरी प्रशिक्षण /शिक्षण केंद्र के लिए चयन किया जा सकता है। टिकाऊ और सुशिक्षित इन महिलाओं को उसी केंद्र पर हर सप्ताह अनुभवी और प्रशिक्षित अध्यापकों के माध्यम से उन्हें लगातार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उनका मानदेय भी सम्मान जनक होना चाहिए।

इन स्थानीय प्रशिक्षित महिलाओं को स्वरोजगार और स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर उनका और स्थानीय लोगों का जीविकोपार्जन बेहतर बनाया जा सकता है। सरकारी योजनाओं का लाभ इस तरह से हरेक के लिए आसान हो सकता है। इस तरह के जीविकोपार्जन के साधनों की हर माह समीक्षा की जा सकती है। और निष्कर्ष के आधार पर उन योजनाओं में फेरबदल किया जा सकता है और समस्याओं का समाधान भी। खाद्य प्रसंस्करण, आचार, सिलाई- कढ़ाई- बुनाई, मसाले, कंप्यूटर नर्सरी और फल फूल आदि उपयोगी कार्य जीविकोपार्जन को बेहतर बनाने हेतु अपनाए जा सकते हैं।

शुरुआती तौर पर स्थान का चयन स्थानीय लोगों की इच्छानुसार मंदिर – मस्जिद का प्रांगण, निजी कमरे और बरामदे जिनका नामिनल किराया भी दिया जा सकता है। आगे चलकर कमेटी स्थान और भवन में दान, चंदे और निजी सहयोग से निवेश कर सकती है। टीचर्स की सैलरी और दूसरे खर्च बच्चों की फीस, दान, चंदे और निवेश से हासिल रकम से दी जाएगी। इसके लिए रिजर्व फंड भी स्थापित किया जाना चाहिए।

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