(सैय्यद अतीक उर रहीम.शिक्षक, राजा महेंद्र प्रताप सिंह ए, एम, यू सिटी स्कूल )
यू तो हिंदुस्तान में बहुत से केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं जो उच्च शिक्षा में बड़ा योगदान दे रहे हैं , और वहां सभी जाती धर्म के छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और वहां से निकल कर देश के महत्पूर्ण पदों पर काम कर रहे हैं उन्हीं विश्वविद्यालय में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित एक शहर अलीगढ़ है जहां अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के नाम से एक केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित है जो भारत के शिक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण संस्थान है, जो न केवल उच्च शिक्षा का माध्यम है, बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी बन चुका है। इस के बावजूद ये विश्वविद्यालय अक्सर विवादों में क्यों घिरा रहता है बल्कि क्यों इसको विवादों से घेरा जाता है इसको निष्पक्ष होकर समझने की ज़रूरत है , एक कारण तो ये हो सकता कि जब हम हिंदुस्तान की सियासत में मुसलमानों का प्रधानितीत्व देखेंगे तो अधिकतर बड़े पदों पर पहुंचने वाले मुस्लिम नेता इसी विश्विद्यालय के पूर्व छात्र रहे हैं , इस में अगर कुछ के नाम का ज़िक्र करें तो उनमें , बिहार के वर्तमान गवर्नर आरिफ़ मोहम्मद खान, सम्भल के वर्तमान सांसद ज़ियाउर रहमान बर्क, गोपालगंज आज़मगढ़ के वर्तमान विधायक नफीस अहमद, हैं, वहीं पूर्व में , मोहम्मद आजम खान, बिहार से अली अशरफ़ फातमी , आदि! ये सभी लोग यहीं के छात्र रहे छात्र संघ से निकले और देश प्रदेश की विभिन्न सियासी पार्टी से असेंबली और पार्लियामेंट में पहुंचे, ये बात स्पष्ट है कि इन लीडरों ने जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैंपस में छात्र संघ की राजनीति की तो उसमें भी मुसलमानों के विकास की बात की और आज देश प्रदेश की राजनीति में भी मुसलमानों के सम्पूर्ण विकास के लिए संघर्ष कर रहे हैं , अब ये समझने की आवश्यकता है की समय समय पर इस विश्वविद्यालय को विवादित बनाने की कोशिश क्यों होती है क्योंकि ये बात सच है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का सीधे तौर पर विवादों से नाता भले ना हो लेकिन हिन्दुस्तानी सियासत से गहरा नाता है , अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को मुस्लिम सियासत का” नब्ज़ सेंटर” भी कहा जाता है, ये अलग बात की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी छात्र संघ हिंदुस्तान की किसी भी यूनिवर्सिटी में पहला छात्रसंघ है जहां के चुनाव में किसी राजनीतिक पार्टी का सिंबल प्रयोग नहीं किया जाता और यहां के छात्रसंघ पदाधिकारी डायरेक्ट किसी राजनीतिक पार्टी से संबंध नहीं रख सकते , लेकिन इस हकीकत से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस कैंपस में 2017 से पहले तक जितने भी गैर भाजपा दल के बड़े लीडर हैं उनको कैंपस के कार्यक्रमों में बुलाया जाता रहा है , अगर बहुत पुरानी बात ना की जाए तो मुलायम सिंह यादव यहां आ चुके हैं , राहुल गांधी आ चुके हैं , लेकिन पूर्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी को यहां आने पर इतना जबरदस्त विरोध भी किया गया कि वो नहीं आ सके , तो ये कहने और लिखने में मुझे बिल्कुल संकोच नहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को गैर भाजपा दल ने वोट के लिए हमेशा इस्तेमाल किया है बल्कि यहां के सियासी पूर्व छात्रों ने अपनी सियासत में मजबूत इंट्री के लिए गैर भाजपा दलों के नेताओं को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मंच दिया है , तो अब समय बदला है , अब संघ और भाजपा के विभिन्न संगठनों से जुड़े नौजवान छात्र भी इस शैक्षिक संस्था की आड़ में ही अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं हालांकि 2017 से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलरों ने कैम्पस को सियासी सरगर्मियों से दूर रखा और बहुत ही दूरदर्शी सोच के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को सुचारू रूप से चलाया है वो चाहे प्रोफ़ेसर तारिक मंसूर हों, या मौजूदा वाइस चांसलर प्रोफेसर नईमा गुलरेज इन लोगों ने कैम्पस को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने दिया है और शैक्षिक माहोल बना हुआ है ,इन्हीं कारणों से ये बात हमें स्पष्ट रूप से समझ में आ जानी चाहिए कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को विवादों के घेरे में कौन लोग लाते? और क्यों लाते हैं, उनका मकसद क्या हो सकता है तो इसका उत्तर साफ है कि जिस विषय पर विवाद किया जाता है उसमें कोई सच्चाई नहीं होती ,और जो लोग विवाद पैदा करते हैं उनकी मंशा भी सियासी तौर पर खुद को मज़बूत करने की ख्वाहिश होती है !
हम सभी जानते हैं कि 2014 के बाद देश की सियासत का पैटर्न बदला है अब मोहल्ले की नाली , सड़कें, साफ कर के किसी गरीब , विधवा की मदद कर के, किसी का राशन कार्ड बनवा कर ना नेता बनने का चलन रहा और ना ही मिडिया इन खबरों को दिखा कर मशहूर करती हैं तो भाजपा और संघ के संगठनों से जुड़े कुछ नौजवानों का ये समय है उनके पास एक आसान रास्ता प्रदेश एवं देश का नेता बनने आसान तरीका है वो ये कि अल्पसंख्यकों पर कटाक्ष करो उनके शैक्षिक संस्था पर आरोप लगाओ सोशल मिडिया , और मेन स्ट्रीम मिडिया के माध्यम से मशहूर हो जाव , बन गए नेता, यही पिछले कुछ सालों से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के साथ हो रहा है इस शिक्षा के मंदिर की आलोचना कुछ नेता बनने की ख्वाहिश रखने वाले नौजवान समय समय पर करते रहते हैं बड़े बड़े न्यूज चैनल और अखबारों में खबरें छपती है और वो बन जाते हैं नेता , जब की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर जो आरोप लगाते हैं उसमें कोई तत्व नहीं होता !
मौजूदा विवाद मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैंपस में होली खेलने की आज्ञा मांगने का है , हालांकि 1920 में यूनिवर्सिटी का दर्ज प्राप्त होने के बाद 105 साल से अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में हिन्दू मुस्लिम छात्रों और छात्राओं के दरमियान जो छुट्टियों में घर नहीं जा पाते होली भी खेली जा रही है दीपावली और ईद भी मनाई जा रही है , फिर इजाज़त के पीछे सियासत तो नहीं ?!
ऐसे में ज़रूरी है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास को जानना जो हिंदू मुस्लिम एकता की प्रतीक है इस की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा की गई थी, और तब से यह संस्थान सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक बना हुआ है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने हमेशा एकता, सहिष्णुता और सहयोग के सिद्धांतों को महत्व दिया है, जो आज भी विश्वविद्यालय के मूलमंत्र के रूप में जीवित हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज में शिक्षा के माध्यम से सुधार लाना था। सर सैयद अहमद खान ने इस विश्वविद्यालय की नींव रखते समय यह सुनिश्चित किया कि यहाँ पर सभी धर्मों और जातियों के लोग एक साथ शिक्षा प्राप्त करें। उनका मानना था कि शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है जिसके माध्यम से भारतीय समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा दिया जा सकता है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिन्दू और मुस्लिम छात्रों का एक साथ अध्ययन करना और साथ मिलकर कार्य करना सदैव एक उदाहरण रहा है। यहां पर न केवल मुस्लिम छात्रों को शिक्षा दी जाती है, बल्कि हिन्दू छात्रों को भी समान अवसर दिए जाते हैं। विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों में दोनों समुदायों के लोग मिलकर भाग लेते हैं। इस प्रकार, विश्वविद्यालय न केवल एक शैक्षिक केंद्र है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को प्रोत्साहित करने वाला स्थल भी है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने न केवल मुस्लिम समुदाय को शिक्षा दी है, बल्कि यहाँ से कई हिन्दू छात्र भी निकलकर देश और विदेश में उच्च पदों पर कार्यरत रहे हैं। उनके योगदान से यह स्पष्ट होता है कि विश्वविद्यालय ने सभी धर्मों के छात्रों के बीच सामूहिकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाया है। कुछ प्रमुख हिन्दू पूर्व छात्रों के नाम निम्नलिखित हैं:
. रामधन यादव – रामधन स्वयादव, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध छात्र रहे, भारत सरकार में उच्च पदों पर कार्यरत थे। वे एक प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी थे और उनके योगदान के लिए वे हमेशा याद किए जाते हैं।
प्रोफेसर सतीश कुमार – सतीश कुमार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की और बाद में विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के तौर पर कार्य किया। उनका योगदान शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहा और उन्होंने हमेशा धार्मिक सद्भावना को बढ़ावा दिया।
राकेश कुमार शर्मा – राकेश कुमार शर्मा ने एएमयू से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की और बाद में एक प्रमुख कंपनी में उच्च पद पर कार्य किया। उनकी सफलता ने यह साबित किया कि एएमयू में शिक्षा प्राप्त करने से न केवल व्यक्तिगत विकास होता है, बल्कि यह समाज में योगदान देने के लिए भी प्रेरित करता है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यहां पर सभी धर्मों, जातियों और संस्कृतियों का सम्मान किया जाता है। यहाँ की शिक्षा पद्धति में यह हमेशा सुनिश्चित किया गया कि हर छात्र को अपने धर्म और संस्कृति के आधार पर समान अवसर मिलें। इस विश्वविद्यालय में हिन्दू और मुस्लिम छात्रों के बीच एक साथ बैठकर पढ़ाई करने, विचारों का आदान-प्रदान करने और आपसी संबंधों को मजबूत करने का अवसर मिलता है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम, सेमिनार और वार्षिक उत्सवों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग भाग लेते हैं। इन कार्यक्रमों में विभिन्न धर्मों के उत्सवों का आयोजन किया जाता है, जिससे विद्यार्थियों को एक-दूसरे की संस्कृतियों को समझने और सम्मानित करने का अवसर मिलता है। इन समागमों से समाज में एकता और अखंडता को बढ़ावा मिलता है, जो भारतीय लोकतंत्र की असली ताकत है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने समाज में हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विश्वविद्यालय के स्नातक और शोधार्थी समाज में लौटकर न केवल अपनी शिक्षा का लाभ उठाते हैं, बल्कि वे एकता, सहिष्णुता और भाईचारे के संदेश को भी फैलाते हैं। यह विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों को यह सिखाता है कि भिन्न-भिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग एक साथ रहकर एक मजबूत और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय न केवल एक शैक्षिक संस्थान है, बल्कि यह हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी है। यहाँ की विविधता, समानता और सहयोग की संस्कृति भारतीय समाज के लिए एक आदर्श है। इस विश्वविद्यालय ने हमेशा यह सिद्ध किया है कि शिक्षा केवल ज्ञान का माध्यम नहीं होती, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक सौहार्द का भी एक महत्वपूर्ण साधन बन सकती है। इस प्रकार, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारतीय समाज में हिन्दू-मुस्लिम एकता का मजबूत उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।