मुंबई :पासबान-ए-अदब संगठन के संस्थापक कैसर खालिद ने आगे कहा कि ‘उर्दू का जश्न, मेला या कोई भी बड़ा कार्यक्रम आयोजित करना आसान नहीं होता। इसके लिए बहुत मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है।मुंबई यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग और उर्दू चैनल पत्रिका के संयुक्त आयोजन में आयोजित ‘जश्न-ए-उर्दू के उद्द्घाटन सत्र में महाराष्ट्र के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कैसर खालिद ने अपने अनुभवों और कड़वे लहजे में कहा कि “आज के दौर में उर्दू के नाम पर कोई भी जश्न मनाना एक तरह का पागलपन है, लेकिन उर्दू की तरक्की को रोका नहीं जा सकता।” हालांकि, उन्होंने इस सच्चाई को स्वीकार किया कि उर्दू लिपि में पढ़ने-लिखने का चलन कम हो रहा है, लेकिन दूसरी लिपियों में इसे बढ़ावा मिल रहा है।कार्यक्रम की शुरुआत में अहमद महफूज ने कहा कि आजकल उर्दू के उत्सवों को मनाने की परंपरा आम हो गई है। हाल ही में इलाहाबाद में भी इस तरह के कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। मुंबई का यह जश्न-ए-उर्दू भी बेहद सफल कार्यक्रम बन रहा है, क्योंकि पहले ही दिन बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हैं।उन्होंने बताया कि “पिछले दो-तीन हफ्तों से सोशल मीडिया पर इस कार्यक्रम का प्रचार किया जा रहा था, जिससे लोगों की दिलचस्पी बढ़ी।
‘उर्दू का जश्न, मेला या कोई भी बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने को काफी मेहनत की ज़रूरत :कैसर खालिद
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