वक़्फ़ बिल पर पढ़िए मशहूर पत्रकार अज़ीज़ बर्नी का विशेष लेख

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बेशक पार्लियामेंट में वक्फ़ तरमीमी बिल पर वोटिंग में बीजेपी की जीत हुई लेकिन इसने बहुत हद तक सेक्युलर पार्टियों की एकता को फ़ायदा पहुंचाया इंडिया गठबंधन को फ़ायदा पहुंचाया। लोकसभा में 288 के मुकाबले 232 की फिगर बहुत कम नहीं है सिर्फ 56 का फासला है उसमें भी 32 नीतीश कुमार चंद्रा बाबू नायडू और चिराग़ पासवान के वोट हैं अगर वो 232 में जोड़ लिए जाएं तो या तादाद 264 हो जाती है और अगर ये 288 से 32 कम हो जाएं तो वो तादाद 256 रह जाती है। यानी एन डी ए की तादाद इंडिया गठबंधन से 6 कम हो जाती और ये सरकार खतरे में पड़ जाती इसलिए अपनी जीत सुनिश्चित करना भाजपा के लिए बहुत जरूरी था। आपको याद होगा कि अटल बिहारी वाजपेई की 13 दिन की सरकार अकेले प्रोफेसर सैफुद्दीन सोज़ के एक वोट से गिर गई थी।

 

नितीश कुमार चंद्रा बाबू नायडू चिराग़ पासवान और जयंत चौधरी की जो भी मजबूरिया रही हों लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इन पार्टियों का बैकग्राउंड सेकुलर है और इन्हें मुस्लिम वोट मिलता रहा है। जिस तरह का रिएक्शन सामने आया है इन पार्टियों के प्रति मुसलमानों की नाराज़गी सामने आई है उससे ये अंदाजा तो इन चारों पार्टियों के नेताओं को हो गया होगा कि मुस्लिम वोट उनसे दूर हुआ है जिसका उन्हें नुक्सान होगा। अब आने वाले वक्त में वो भले ही इंडिया गठबंधन में लौटने की कोशिश करें लेकिन मुसलमानों के भरोसे को ठेस जो पहुंची है उसकी भरपाई आसान नहीं है। ये समझना भी इन सबके लिए मुश्किल नहीं है कि यूपी बिहार और आंध्रा प्रदेश में भाजपा खुद प्रमुख पार्टी है और हिन्दू वोट बैंक की प्राथमिकता भाजपा है इनमें से कोई पार्टी नहीं मुस्लिम वोट ही इनकी एक बड़ी ताक़त थी जो सेक्युलर हिंदू वोट के साथ मिलकर इनको सरकार में लाता या सरकार का हिस्सा बनाता रहा है।

 

अगला लोक सभा चुनाव 2029 में है अगर ये सरकार 2029 तक चलती है तो, जिसमें अभी 4 साल से ज़्यादा का वक्त बाक़ी है इस दरम्यान ऊंट किस करवट बैठेगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता सियासत कभी भी रंग बदल सकती है। इसी लिए मैंने कहा था कि इन सब से फासले का रिश्ता रखें लेकिन इन सबको ये अहसास दिलाते रहें कि उनसे बहुत बड़ी चूक हुई है उनकी सियासी बका सेक्युलरिज्म में ही है, बीजेपी का पिछलग्गू बनने में नहीं। वो लोग सोचें उनको जो भी लालच या डर था वो बीजेपी सरकार से था अब वो चाहे अपनी स्टेट्स केलिए पैकेज की शक्ल में हो या ई डी और सी बी आई का डर हो। अगर सरकार ही ना होती तो ये डर काहे का,,,

 

बिहार में विधानसभा चुनाव नज़दीक है नीतीश कुमार की पार्टी की जीत मुश्किल है बीजेपी के साथ गठबन्धन में जाना उनकी मजबूरी है और बीजेपी नीतीश कुमार को सी एम फेस यानी मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर पेश करे इसकी उम्मीद कम ही है। अभी से ये आवाज़ें आने लगीं हैं कि नीतीश कुमार उप मुख्यमंत्री हो सकते है यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी पक्की नहीं है। उधर आर जे डी और कांग्रेस का गठबन्धन होना तय है अगर इस गठबन्धन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और नीतिश कुमार को मिला कर बीजेपी को बाहर रखने की सूरत बनी तो मिस्टर पलटू राम के नाम से मशहूर नितीश कुमार फिर से पलट सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो बिहार सिर्फ़ राज्य स्तर पर ही नहीं केंद्र में भी एक बड़ा खेला करने की पोजीशन में हो सकता है।

 

बीजेपी वक्फ़ तरमीमी बिल को पास कराने और कानून बनवाने में तो कामयाब हो गई लेकिन हिंदुत्व की लहर पैदा करने में कामयाब नहीं हुई जो बीजेपी की कुल जमा पूंजी है। देशभर में कहीं भी ऐसा माहौल देखने का मौका नहीं मिला के मुसलमानों को हरा कर बीजेपी ने हिंदुत्व का किला फतह कर लिया हो पार्लियामेंट में ये लड़ाई हिंदू बनाम मुसलमान बनी ही नहीं अगर कुछ देखने को मिला तो एन डी ए बनाम इंडिया अलाइंस यानी सेक्युलर अलाइंस। पार्लियामेंट लोक सभा और राज्य सभा दोनों की 12 घंटे और 17 घंटे की कार्रवाई और तमाम तकरीरें उठा कर देख लें बहस वक्फ़ तरमीमी बिल पर है हिन्दू मुस्लिम पर नहीं। अब रहा सवाल पार्लियामेंट के बाहर का माहौल तो आर्टिकल 370 हटाने के वक्त हरियाणा के भाजपाई मुख्यमंत्री ने ये माहौल बनाने की कोशिश की थी जैसे हरियाणा के नौजवान अब कश्मीरी दुल्हनिया ले कर आने वाले हैं या कश्मीर की ज़मीन पर बसने वाले हैं बड़े पैमाने पर ख़रीद करने वाले हैं । ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मतलब जो माहौल आर्टिकल 370 से बना था वो माहौल वक्फ़ तरमीमी एक्ट से नहीं बना। ये बीजेपी के लिए नेक शगुन नहीं है उसकी कामयाबी हिंदुत्व की लहर में है वरना सेक्युलर पार्टियां उस पर भरी पड़ सकती हैं।

 

एक बड़ा नुकसान असदुद्दीन ओवैसी को भी हुआ क्योंकि 2012 के बाद उनकी राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ सेक्युलरिज्म के खिलाफ़ ही रही, कांग्रेस के खिलाफ़ रही, सेक्युलर पार्टियों के खिलाफ रही वो सेक्युलरिज्म को जिंदा लाश बताते रहे। मुसलमान अब ये बोझ नहीं उठा सकता ये ऐलान करते रहे अपने जलसों में मुसलमानों की भीड़ इकठ्ठा करते रहे भले ही वो वोट में नहीं बदली लेकिन एक माहौल तो बनता रहा। अपनी क़यादत अपना कायद अपना लीडर ये आवाज़ें तो उठती रहीं। अब सबने देख लिया कि पार्लियामेंट में तादाद मायने रखती है जज़्बात नहीं। बिल फाड़ने से अपने जज़्बात का इज़हार तो किया जा सकता है लेकिन क़ानून बनने से नहीं रोका जा सकता। जज़्बाती तकरीर तो इमरान प्रतापगढ़ी ने भी की औरों ने भी की लेकिन ये तकरीरें बिल को एक्ट बनने से नहीं रोक पाईं।

 

अब रहा सवाल क़ानूनी लड़ाई का, सुप्रीम कोर्ट में पेटीशन दाख़िल करने का तो इसमें भी सेक्युलर पार्टियों की अक्सरियत हो सकती है। कांग्रेस की तरफ़ पेटीशन दाख़िल किया गया है।शायद जावेद खान और इमरान प्रतापगढ़ी ने उम्मीद है समाजवादी पार्टी के किसी नुमाइंदे और तृण मूल कांग्रेस की जानिब से भी कोई पेटीशन दाख़िल किया जाएगा आर जे डी को इसका सियासी फायदा होगा लिहाज़ा वो भी पीछे नहीं रहेगी। कुलमिला कर वक्फ़ तरमीमी एक्ट को सुर्पीम कोर्ट में चैलेंज करने में भी सेक्युलर लोगों की तादाद ज़्यादा होगी और मुस्लिम इदारे भी दीगर माइनारटीज और हिन्दू भाइयों को साथ लेकर चलेंगे मतलब इस लडाई का बेस भले ही मुस्लिम वक्फ़ इमलाक हों लेकिन ये लड़ाई हिंदू बनाम मुस्लिम नहीं है और हिंदुस्तान की सियासत के लिए मैं इसे खुश आइंद पैग़ाम मानता हूं और अगर ये लड़ाई जीत ली गई खुदा करे के ऐसा ही हो कि हम ये कानूनी लड़ाई जीतें तो ये बीजेपी की बहुत बड़ी हार होगी,,,।

अज़ीज़ बर्नी

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