मालेगांव 2008 विस्फोट मामले में आज दिनांक 31 जुलाई 2025 को आए न्यायालय के फैसले के बाद, न्याय, पारदर्शिता और शहीद अधिकारियों की जांच की पुनः समीक्षा हेतु अपील।
सेवा में,
मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट
महोदय
मैं, भारत का एक चिंतित और जागरूक नागरिक, यह पत्र अत्यंत पीड़ा और गहरी नैतिक चिंता के साथ लिख रहा हूँ। आज 31 जुलाई 2025 को, विशेष एनआईए न्यायालय ने मालेगांव 2008 विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
यह केवल एक न्यायिक निर्णय नहीं है—यह हमारे न्यायिक और सुरक्षा संस्थानों की सामूहिक विफलता का प्रतीक बन गया है। यह उन 6 निर्दोष नागरिकों की मृत्यु, उन दर्जनों घायलों, और उन शहीद अधिकारियों की स्मृति के साथ अन्याय है, जिन्होंने सच की खोज में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
हेमंत करकरे ,महाराष्ट्र एटीएस प्रमुख और उनके सहयोगी अधिकारियों ने मालेगांव विस्फोटों की जांच में ऐसे ठोस साक्ष्य एकत्र किए थे, जिन्होंने उस समय आतंकवाद की समझ को एक नया आयाम दिया।इसके बावजूद, राजनीतिक और वैचारिक दबावों के बीच, उनके निष्कर्षों को धीरे-धीरे दरकिनार कर दिया गया।
26/11 मुंबई हमलों में करकरे, अशोक कामटे और विजय सालसकर की दुखद शहादत ऐसे समय पर हुई जब वे मालेगांव की जांच को निर्णायक रूप देने की कगार पर थे। इस तैनाती और उनकी मृत्यु की परिस्थितियों को लेकर आज भी गंभीर सवाल अनुत्तरित हैं।
उनकी मृत्यु के बाद जांच एनआईए को स्थानांतरित की गई, और धीरे-धीरे प्रारंभिक जांच के अधिकांश निष्कर्षों को या तो बदला गया या खारिज कर दिया गया।आज के फैसले में यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि “प्रॉसिक्यूशन आरोप सिद्ध करने में असफल रहा” — यह 17 वर्षों की प्रक्रिया के बाद एक अत्यंत चिंताजनक निष्कर्ष है।
हमारी मांग हैं कि एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग का गठन किया जाए जो करकरे और उनकी टीम द्वारा की गई जांच और प्रस्तुत साक्ष्यों की समीक्षा करे। 26/11 हमले में उनकी तैनाती और मृत्यु की परिस्थितियों का विश्लेषण करे। यह जांचे कि NIA द्वारा प्रारंभिक जांच के साक्ष्यों को किन आधारों पर दरकिनार किया गया।
हेमंत करकरे, अशोक कामटे और विजय सालसकर की जांच रिपोर्टों को सार्वजनिक दस्तावेज घोषित किया जाए और उनकी डिजिटल सुरक्षित प्रतिलिपि राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखी जाए। पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने के लिए मामला पुनः खोला जाए या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पुनः जांच की जाए।संसद की स्थायी समिति (गृह मामलों पर) इस पूरे प्रकरण पर विशेष रिपोर्ट तैयार करे।
हम न केवल उन अधिकारियों के ऋणी हैं जिन्होंने अपने कर्तव्य की वेदी पर प्राण न्यौछावर किए, बल्कि उस सत्य और न्याय के विचार के भी ऋणी हैं जिसके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी।
यदि आज हम चुप रहे, तो यह न केवल एक ऐतिहासिक भूल होगी, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक चेतना पर भी एक अमिट दाग होगा।
आपसे निवेदन है कि इस प्रकरण को राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर, राष्ट्रहित, न्याय और शहीदों की विरासत के दृष्टिकोण से देखें और ठोस कार्यवाही करें।
आपका आभारी,
रईस खान
923/25, गोरेगांव पूर्व, मुंबई -63
ईमेल -qaumifarman@gmail.com
31/07/2025