(रईस खान)
आज, 11 अगस्त 2025 को, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी एवं INDIA ब्लॉक के लगभग 300 सांसदों ने संसद के द्वार से शुरू होकर करीब एक किलोमीटर दूरी तय कर चुनाव आयोग कार्यालय तक मार्च निकाला। यह मार्च विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) और 2024 लोकसभा चुनावों में कथित मतदाता सूची हेरफेर का विरोध था।दिल्ली पुलिस ने मार्च को रोकते हुए कहा कि इसके लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी, और विभिन्न स्थानों पर बैरिकेडिंग लगाई गई।मार्च के दौरान, राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी वाड्रा, शिवसेना (UBT) के संजय राउत, TMC की सागरिका घोष जैसे वरिष्ठ नेता हिरासत में लिए गए।समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पुलिस बैरिकेडिंग पार करते हुए हाई-ड्रामा को और अधिक तीखा कर दिया।INDIA ब्लॉक के सांसद इस मार्च के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।प्रधानमंत्री कार्यालय और चुनाव आयोग को कोर्ट-कचहरी या सदन के बजाय सड़कों पर आकर जवाब देना पड़े, यह विपक्ष की रणनीति का हिस्सा है।आज का यह आयोजन—राहुल गांधी की अगुवाई में संसद से चुनाव आयोग तक आंदोलन—सिर्फ एक राजनीतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के स्थायित्व और पारदर्शिता के प्रति एक प्रतिरोध भी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि “वोट चोरी” विवाद अब सड़क से सदन तक, और सियासी बहस से कानूनी बहस तक फैल चुका है। अगली चुनौतियाँ यह होंगी कि चुनाव आयोग और न्यायपालिका इस दबाव पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं—क्या सुधार के रास्ते खुलेंगे या फिर यह लड़ाई केवल आक्षेप तक सीमित रहेगी?