मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की 17 अगस्त 2025 को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस ने व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। विपक्षी दलों और कई पत्रकारों ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को न केवल अपर्याप्त बल्कि पक्षपातपूर्ण भी करार दिया है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या यह प्रेस कॉन्फ्रेंस चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान के स्तर की थी, और क्या ज्ञानेश कुमार ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ अपने पूर्व संबंधों के कारण सरकार के पक्ष में बयान दिए।
ज्ञानेश कुमार की प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर विपक्ष और कुछ पत्रकारों ने तीखी आलोचना की है। वरिष्ठ पत्रकार दिबांग ने इसे “बचकाना, बेवकूफाना और मूर्खतापूर्ण” करार देते हुए कहा कि यह एक संवैधानिक पद की गरिमा के अनुरूप नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि ज्ञानेश कुमार ने गंभीर सवालों, खासकर वोटर लिस्ट में हेरफेर और फर्जी मतदान के आरोपों, का जवाब देने के बजाय उन्हें टालने या अस्पष्ट तर्क देने की कोशिश की। उदाहरण के लिए, बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के तहत 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त 2025 के आदेश पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया।
विपक्षी नेताओं, जैसे कांग्रेस के राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, ने दावा किया कि आयोग ने उनके द्वारा उठाए गए मतदाता धोखाधड़ी के आरोपों, जैसे महाराष्ट्र में 1 करोड़ “रहस्यमय मतदाताओं” और कर्नाटक के महादेवपुरा में फर्जी मतदाताओं, पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया। इसके बजाय, ज्ञानेश कुमार ने यह दोहराया कि आयोग ने हलफनामे में डेटा पेश किया है, लेकिन सवालों की अनदेखी ने आयोग की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए। कुछ एक्स पोस्ट्स में भी यह भावना दिखी कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में ज्ञानेश कुमार “भाजपा के प्रवक्ता” की तरह व्यवहार कर रहे थे, न कि एक निष्पक्ष संवैधानिक अधिकारी की तरह।
ज्ञानेश कुमार, 1988 बैच के केरल कैडर के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी, ने गृह मंत्रालय और सहकारिता मंत्रालय में सचिव के रूप में अमित शाह के अधीन काम किया था। गृह मंत्रालय में उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि वह अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। उनकी नियुक्ति को लेकर विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह सरकार के प्रभाव का परिणाम है, खासकर क्योंकि चयन समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह शामिल थे, और सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सुनवाई लंबित थी।
राहुल गांधी ने अपनी असहमति दर्ज करते हुए कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश को शामिल न करने से कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ गया है। यह तर्क दिया गया कि ज्ञानेश कुमार का शाह के साथ पूर्व कार्यकारी संबंध उनकी निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके द्वारा सत्तारूढ़ दल के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज करने का तरीका, जैसे सीसीटीवी फुटेज न देने के लिए “महिला मतदाताओं की गोपनीयता” का तर्क, विपक्ष को और संदेहास्पद बना गया।
ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि एफआईआर प्रक्रिया का उद्देश्य वोटर लिस्ट को शुद्ध करना है, जैसे मृतकों या पलायन कर चुके मतदाताओं को हटाना। उन्होंने सवाल उठाया, “क्या हम मृतकों को वोटर लिस्ट में रखें?” आयोग ने यह भी कहा कि उसने 5,000 से अधिक बैठकों में 28,000 लोगों, जिसमें राजनीतिक दलों के नेता शामिल थे, से संवाद किया। हालांकि, विपक्ष ने इस प्रक्रिया को “जल्दबाजी और अपारदर्शी” करार दिया, विशेष रूप से बिहार में बाढ़ के दौरान इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाए।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में ज्ञानेश कुमार ने विपक्ष के आरोपों को “बिना तथ्यों के” बताकर खारिज करने की कोशिश की, लेकिन ठोस सबूत या डेटा साझा नहीं किए। कुछ एक्स पोस्ट्स में यह कहा गया कि उनके जवाब “हास्यास्पद” और “सुप्रीम कोर्ट की आड़” लेने वाले थे, जो एक संवैधानिक संस्थान की विश्वसनीयता को कम करते हैं। उनके बयान मुख्य रूप से आयोग की प्रक्रियाओं का बचाव करने पर केंद्रित थे, लेकिन जवाबों की अस्पष्टता और गंभीर सवालों को टालने की प्रवृत्ति ने यह धारणा बनाई कि वह सत्तारूढ़ दल के प्रति नरम रुख अपना रहे हैं। उनके अमित शाह के साथ पूर्व संबंधों ने इस धारणा को और मजबूत किया। उनके जवाबों में पारदर्शिता की कमी और विपक्ष के गंभीर सवालों को टालने की प्रवृत्ति ने उनकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए। अमित शाह के साथ उनके पूर्व कार्यकारी संबंध और नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार के प्रभाव ने विपक्ष और जनता के एक वर्ग में संदेह को बढ़ाया।
लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है कि चुनाव आयोग न केवल निष्पक्ष हो, बल्कि निष्पक्ष दिखे भी। ज्ञानेश कुमार के सामने चुनौती है कि वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव और अन्य चुनावों में इस विश्वास को बहाल करें।