(रईस खान)
उत्तर प्रदेश का बिलग्राम शरीफ़ सूफ़ी परम्परा का एक अहम मरकज़ है। यहाँ हज़रत मीर अब्दुल वाहिद बिलग्रामी रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह स्थित है, जो आज भी तसव्वुफ़ और मोहब्बत-ए-इंसानी का पैग़ाम फैलाता है। हर साल यहाँ उर्स-ए-वाहिदी तय्यबी ताहिरी बड़े अदब और अकीदत के साथ मनाया जाता है।
मीर अब्दुल वाहिद बिलग्रामी: शख़्सियत और इल्मी विरासत
हज़रत मीर अब्दुल वाहिद सोलहवीं और सत्रहवीं सदी के एक मक़बूल सूफ़ी बुज़ुर्ग और आलिम-ए-दीन थे। उन्होंने इंसानी मोहब्बत, तसव्वुफ़ और इल्म को जोड़कर समाज में रोशनी फैलाई। उनकी लिखी किताबों में हक़ाइक़-ए-हिन्दी, सब’आ सनाबिल और दीवान शाहिदी अहम मानी जाती हैं।
हक़ाइक़-ए-हिन्दी में उन्होंने हिंदू भक्ति गीतों और प्रतीकों की तफ़्सीर पेश की और बताया कि इंसानियत और रूहानियत मज़हबी सरहदों से ऊपर है। आसान अल्फ़ाज़ में कहा जाए तो भजन और गीत भी इंसान को ख़ुदा से जोड़ सकते हैं।
सब’आ सनाबिल यानी सात बालियाँ, सूफ़ी रास्ते की सात बुनियादी मंज़िलों का बयान है। इसमें तौबा यानी पश्चाताप, ख़ौफ़ और उम्मीद, तवक्कुल यानी ईमानदारी और भरोसा जैसी मंज़िलें शामिल हैं। इसका सीधा मतलब है कि इंसान को अपनी रूह को साफ़ करना चाहिए, बुरी आदतों से बचना चाहिए और ख़ुदा पर यक़ीन रखना चाहिए।
दीवान शाहिदी और अन्य रचनाएँ अशआर और नातों का मजमुआ हैं, जिनमें इश्क़-ए-इलाही और मोहब्बत-ए-इंसानी का पैग़ाम है। शायरी के ज़रिये उन्होंने लोगों को मोहब्बत और अमन का रास्ता दिखाया।
चौदह सितम्बर 2025 तक बिलग्राम शरीफ़ के ख़ानक़ाह वाहिदिया तय्यबिया ताहिरिया में यह उर्स चलेगा। तीन दिन तक चलने वाले इस इज्तिमा में मुल्क के कोने-कोने और विदेशों से भी जायरीन शिरकत करेंगे।
दरगाह पर चादरपोशी होगी, बुज़ुर्गान-ए-दीन की दुआएँ पढ़ी जाएँगी, नात और क़व्वाली की महफ़िलें सजेंगी। एक दिन का क़ौमी सेमिनार भी होगा जिसमें मीर अब्दुल वाहिद की तालीमात और सूफ़ी तहरीक पर बातचीत की जाएगी। रूहानी नशिस्तें होंगी, जहाँ मुरीद और आग़ाज़ीन अपने तजुर्बात और सीख साझा करेंगे।
हर साल दूर-दराज़ से हज़ारों जायरीन आते हैं। रहाइश, सफ़ाई और ट्रैफ़िक कंट्रोल बड़े चैलेंज बन जाते हैं। कई बार उर्स सिर्फ़ चादर और मेलों तक सिमट जाता है, जबकि असल मक़सद बुज़ुर्ग की तालीमात को समझना और अपनाना है।
नौजवान नस्ल को इस सिलसिले से जोड़ना बेहद ज़रूरी है ताकि मोहब्बत और अमन का पैग़ाम आगे बढ़े।
उर्स-ए-वाहिदी तय्यबी ताहिरी सिर्फ़ एक मज़हबी इज्तिमा नहीं, बल्कि मोहब्बत, इल्म और इंसानियत का पैग़ाम है। मीर अब्दुल वाहिद बिलग्रामी की तालीमात हमें याद दिलाती हैं कि इंसानियत सबसे बड़ा मज़हब है और सूफ़ी रास्ता अमन, यक़ीन और मोहब्बत का रास्ता है।