मुस्लिम समाज और तालीम: तरक़्क़ी की असली चाबी

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(रईस खान)

मुस्लिम समाज आज दुनिया भर में कई तरह की चुनौतियों से गुज़र रहा है। भारत में भी हाल के दिनों में वक्फ़ क़ानून, धर्मांतरण बिल और सांप्रदायिक राजनीति जैसी ख़बरें चर्चा में रही हैं। लेकिन अगर इन सब मसलों से ऊपर उठकर देखा जाए, तो सबसे अहम मुद्दा है, तालीम यानी शिक्षा। यही वह रास्ता है, जो किसी भी कौम को मज़बूत और तरक़्क़ी की मंज़िल तक पहुँचाता है।

तालीम की कमी तरक्की में सबसे बड़ा रोड़ा

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से लेकर हालिया सर्वे तक, एक बात बार-बार सामने आती है कि मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई में हिस्सेदारी अब भी कम है। सरकारी स्कूलों में दाख़िला तो होता है, लेकिन उच्च शिक्षा यानी कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक बहुत कम बच्चे पहुँच पाते हैं। इसका असर रोज़गार, सामाजिक हैसियत और सियासी ताक़त हर जगह दिखता है।

तालीम से ही बदलेगा समाज

जहाँ भी मुस्लिम समाज ने शिक्षा पर ध्यान दिया, वहाँ तस्वीर बदल गई। केरल, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में मुस्लिम युवाओं ने मेडिकल, इंजीनियरिंग और आईटी सेक्टर में अपनी पहचान बनाई है। विदेशों में बसे भारतीय मुसलमान भी पढ़ाई की बदौलत ही सफल हुए हैं।

सरकार और समाज की ज़िम्मेदारी

सरकार की ओर से “15 बिंदु कार्यक्रम” और स्कॉलरशिप जैसी योजनाएँ हैं, लेकिन उनका फ़ायदा हर ज़रूरतमंद तक नहीं पहुँच पाता। मदरसों और स्कूलों में आधुनिक शिक्षा की पहुँच बढ़ाना, लड़कियों की पढ़ाई पर ख़ास ध्यान देना और स्कॉलरशिप को आसान बनाना समय की ज़रूरत है।

तालीम से तरक़्क़ी, तरक़्क़ी से इज़्ज़त

अगर मुसलमान बच्चे पढ़-लिख कर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, शिक्षक और अफ़सर बनेंगे तो समाज अपने आप मज़बूत होगा। ग़रीबी और बेरोज़गारी कम होगी, और कौम की सियासी आवाज़ भी बुलंद होगी। असली सवाल यह नहीं है कि “कौन मेयर बनेगा या कौन विधायक”, बल्कि यह है कि हमारे बच्चे कितनी तालीम हासिल करेंगे। क्योंकि तालीम ही तरक़्क़ी की असली चाबी है और यही भारत के मुस्लिम समाज को मज़बूत बना सकती है।

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