(रईस खान)
सोशल मीडिया की दुनिया में एक छोटी-सी बात कभी-कभी बड़ा तूफ़ान खड़ा कर देती है। ऐसा ही कुछ हुआ उत्तर प्रदेश के कानपुर में, जहां एक सादा-सा साइनबोर्ड, जिस पर लिखा था “I Love Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam”, ने न सिर्फ़ शहर में हलचल मचाई, बल्कि पूरे हिंदुस्तान को सोचने पर मजबूर कर दिया। यह साइनबोर्ड बरावफात के मौके पर पैगंबर मुहम्मद साहब की शान में लगाया गया था। मगर पुलिस ने इसे ‘नई रवायत’ और ‘मुश्किल का सबब’ बताकर 25 मुसलमानों पर FIR दर्ज कर दी। सवाल उठता है, क्या अपने मज़हब के लिए मोहब्बत ज़ाहिर करना अब जुर्म है?
क्या हुआ कानपुर में?
16 सितंबर 2025 को कानपुर के रावतपुर में, सैयद नगर के पास, मुसलमान भाइयों ने एक छोटा-सा तंबू और साइनबोर्ड लगाया। उस पर लिखा था, I Love Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam। यह बरावफात का जश्न था, जो पैगंबर साहब की याद में मनाया जाता है। लेकिन यह जगह राम नवमी के जुलूस का रास्ता थी। पुलिस ने कहा कि यह साइनबोर्ड ‘साम्प्रदायिक तनाव’ पैदा कर सकता है। बस, फिर क्या, FIR दर्ज हो गई, 9 लोग नामज़द, बाकी अज्ञात। खबर फैली, और सोशल मीडिया पर #ILoveMuhammad हैशटैग वायरल हो गया। लाखों लोगों ने लिखा, मैं पैगंबर साहब से मोहब्बत करता हूँ। एक शख्स ने पोस्ट किया, “मुझे 1000 कमेंट्स चाहिए #ILoveMuhammad लिखकर। साथ दोगे?” और देखते ही देखते हज़ारों कमेंट्स आ गए। यह सिर्फ़ एक हैशटैग नहीं, बल्कि मोहब्बत और हक़ की आवाज़ बन गया।
मोहब्बत की बात, जुर्म कैसे?
पैगंबर साहब की तालीम हमेशा से रही है, नफरत के दौर में मोहब्बत फैलाओ, औरतों को इज़्ज़त दो, ग़रीबों को हक़ दो। बरावफात का दिन इन्हीं बातों को याद करने का है। मगर कानपुर में इस मोहब्बत के इज़हार को ‘जुर्म’ बता दिया गया। AIMIM के सदर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “यह साइनबोर्ड सिर्फ़ पैगंबर साहब के लिए मोहब्बत का इज़हार था। इसे रोकना हिंदुस्तान के सेक्युलर मिज़ाज पर हमला है।” बाद में पुलिस ने सफाई दी कि FIR साइनबोर्ड की वजह से नहीं, बल्कि ‘अवैध तंबू’ के लिए थी। लेकिन FIR में साफ़ लिखा था कि “I Love Muhammad” लिखा साइनबोर्ड तनाव का सबब बना। यह दोहरा रवैया दिखाता है कि पहले दबाव में कार्रवाई हुई, फिर बैकफुट पर सफाई दी गई।
दिल जीतने वाली मिसालें
इस वाकये के बीच कुछ ऐसा हुआ, जिसने दिल जीत लिया। एक सनातनी हिंदू लड़की ने वीडियो बनाकर कहा, “मैं हिंदू हूँ, मगर I Love Muhammad कहना गुनाह नहीं। जिसे FIR करनी है, कर ले।” यह वीडियो लाखों बार देखा गया। एक और शख्स ने लिखा, “वो जब गए तो नब्ज़-ए-दो-आलम रुकी रही, वो आए तो जान पड़ी कायनात में। #ILoveMuhammad।” लोग संविधान का हवाला दे रहे हैं, अनुच्छेद 25, जो मज़हब की आज़ादी की हिफाज़त करता है। एक पोस्ट में लिखा, “पैगंबर साहब ने नफरत के वक्त मोहब्बत सिखाई। अगर उनका नाम आपको चुभता है, तो आप नफरत के अंधेरे में हैं।” यह दिखाता है कि हिंदुस्तान का दिल अभी भी बड़ा है।
बड़ा सवाल
यह मसला सिर्फ़ कानपुर का नहीं, पूरे मुल्क का है। हिंदुस्तान में ‘लव जिहाद’ जैसे लफ्ज़ों से मुसलमानों को डराया जाता है, मगर मोहब्बत का इज़हार करने पर भी सवाल उठते हैं। राजस्थान में एंटी-कन्वर्जन लॉ की बात हो रही है, जो इस्लाम कबूल करने वालों को रोकेगा। कानपुर में 15 मुसलमानों पर FIR ने डर पैदा किया है। हिंदू त्योहारों पर दुकानें बंद होती हैं, मगर मुसलमानों का जश्न जुर्म बन जाता है। यह नाइंसाफी मुल्क की एकता को कमज़ोर करती है। मीडिया ने भी आग में घी डाला, कुछ ने इसे ‘इस्लामोफोबिया’ कहा, तो कुछ ने पुलिस की बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। मगर सोशल मीडिया ने आवाज़ को दबने नहीं दिया।#ILoveMuhammad अब सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि हक़ और मोहब्बत की जंग है।
आखिरी बात
यह वाकया हमें सोचने पर मजबूर करता है। हिंदुस्तान का संविधान कहता है—हर मज़हब को बराबर हक़। मगर जब मोहब्बत का इज़हार FIR का सबब बन जाए, तो क्या हम वाकई सेक्युलर हैं? कानपुर की यह घटना सिखाती है कि हमें एक-दूसरे के जश्न का एहतराम करना चाहिए, न कि डरना। मुसलमानों की मोहब्बत, हिंदुओं का यकीन,सबका सम्मान हो। अगर हम ऐसा कर सकें, तो #ILoveMuhammad जैसी बहसें नफरत की जगह मोहब्बत की मिसाल बनेंगी। पैगंबर साहब का पैगाम था, नफरत में मोहब्बत बांटो। आज का हिंदुस्तान अगर इसे याद रखे, तो कल का हिंदुस्तान और मज़बूत होगा।