भिवंडी के अंधेरे में पढ़ते बच्चे और बुझते सपने

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भिवंडी, जिसे कभी “भारत का मैनचेस्टर” कहा गया था, आज शिक्षा के मामले में गहरे संकट से गुज़र रहा है। यह शहर पावरलूम और कपड़ा उद्योग के लिए मशहूर है, लेकिन यहाँ की नई पीढ़ी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहकर अंधेरे में पढ़ने को मजबूर है।

मनपा क्षेत्र के कुल 154 स्कूल भवनों में से 78 इतने जर्जर हैं कि किसी भी समय हादसा हो सकता है। कई कक्षाओं में रोशनी की व्यवस्था तक नहीं है। बच्चों को अंधेरे कमरों में पढ़ना पड़ता है। शौचालय या तो बने ही नहीं या बदहाल स्थिति में हैं। लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट नहीं और विकलांग बच्चों के लिए रैम्प जैसी सुविधाएँ पूरी तरह गायब हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हर स्कूल में शौचालय, पानी, बिजली और सुरक्षित भवन की व्यवस्था अनिवार्य की थी, लेकिन भिवंडी में इन आदेशों की खुली अनदेखी हो रही है।

आँकड़े भी यही बताते हैं। महाराष्ट्र की औसत साक्षरता दर 82 प्रतिशत है, ठाणे ज़िले की 84 प्रतिशत, लेकिन भिवंडी मनपा क्षेत्र में यह घटकर 66–68 प्रतिशत रह जाती है। मुस्लिम लड़कियों की साक्षरता दर तो 55 प्रतिशत से भी नीचे है। आठवीं कक्षा के बाद हर पाँच में से एक बच्चा पढ़ाई छोड़ देता है और ग्रेजुएशन स्तर तक पहुँचने वाले मुस्लिम युवाओं की संख्या दस प्रतिशत से कम है। यानी जिस समाज की यहाँ आबादी सबसे ज़्यादा है, वही शिक्षा में सबसे पीछे खड़ा है।

हर साल महाराष्ट्र प्राथमिक शिक्षा परिषद और सरकार से करोड़ों रुपये शिक्षा के नाम पर आते हैं। काग़ज़ों में सब खर्च भी हो जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि बच्चों तक इन पैसों का लाभ नहीं पहुँचता। यदि फंड का सही इस्तेमाल होता, तो बच्चों को अंधेरे और गंदगी में पढ़ने की नौबत नहीं आती। स्थानीय अभिभावक सवाल करते हैं कि आखिर वह पैसा कहाँ गया जिसका हिसाब आज तक किसी ने नहीं दिया।

भिवंडी में मुस्लिम समाज बहुसंख्यक है। यह जनसांख्यिक ताक़त शिक्षा सुधार में बदल सकती थी, लेकिन स्थानीय नेतृत्व कारगर साबित नहीं हुआ। चुनावों के वक्त नेता सक्रिय नज़र आते हैं, मगर स्कूल और कॉलेज की स्थिति सुधारने के लिए न तो दबाव बनाया, न योजनाओं की निगरानी की। यही कारण है कि नई पीढ़ी भी पावरलूम और मज़दूरी तक सीमित होती जा रही है।

शिक्षा की कमी का असर रोजगार और तरक्क़ी पर सीधा पड़ता है। भिवंडी का मुस्लिम समाज सरकारी नौकरियों, प्रशासनिक सेवाओं और प्रोफेशनल क्षेत्रों में बेहद कम दिखाई देता है। तकनीकी और उच्च शिक्षा से दूरी ने आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन और गहरा कर दिया है।

इस अंधेरे से निकलने के लिए सरकार को फंड का पारदर्शी इस्तेमाल सुनिश्चित करना होगा और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करना होगा। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। संपन्न वर्ग को आगे आकर अच्छे स्कूल और कॉलेज स्थापित करने चाहिए। अभिभावकों को बच्चों, ख़ासकर बेटियों की शिक्षा को प्राथमिकता बनाना होगी और नेताओं से वोट बैंक की राजनीति छोड़कर शिक्षा पर ठोस काम की माँग करनी होगी।

भिवंडी के बच्चों की आँखों में उजाला तभी लौटेगा जब यह शहर शिक्षा को अपनी असली ताक़त बनाएगा। वरना आने वाली पीढ़ियाँ भी अंधेरे में ही भटकती रहेंगी।

साभार – क़ौमी तदबीर

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