मिलिए उस इन्सान से जिसकी 27,500 बेटियाँ हैं। जो उन्हें अप्पा के नाम से पुकारती हैं । उनका असली नाम के.पी. रामास्वामी है। कोयंबटूर में के.पी.आर. मिल्स के मालिक पेशे से कपड़ा व्यापारी और पसंद से पिता समान हैं।
जबकि कॉर्पोरेट जगत के दिग्गज कर्मचारी प्रतिधारण लागत में कटौती और लाभ-हानि की बात करते हैं और यह इन्सान दूसरों का जीवन बदलने में लगा है।
कैसे? मिल मजदूरों को ग्रेजुएट बनाकर। शिक्षा को उनके बेहतर जीवन का आधार बनाकर।
यह सब एक साधारण अनुरोध से शुरू हुआ। एक बार उनकी मिल में काम करने वाली एक युवा लड़की ने उनसे कहा –
“अप्पा, मैं पढ़ना चाहती हूँ। मेरे माता-पिता ने गरीबी के कारण मुझे स्कूल से निकाल लिया, लेकिन मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ।” उस एक वाक्य ने सब कुछ बदल दिया। अपने कर्मचारियों को सिर्फ वेतन देने के बजाय, उन्होंने उन्हें भविष्य देने का निर्णय लिया।
उन्होंने मिल के अंदर ही एक पूर्ण शिक्षा प्रणाली स्थापित की। आठ घंटे की शिफ्ट के बाद चार घंटे की कक्षाएं। कक्षाएँ,शिक्षक, प्रिंसिपल, यहाँ तक कि योग पाठ्यक्रम भी। सभी पूर्णतः वित्तपोषित। कोई शर्त नहीं। और परिणाम? 24,536 महिलाओं ने अपनी 10वीं, 12वीं, यूजी और पीजी डिग्री हासिल की है।
जिनमे कई अब नर्स, शिक्षक, पुलिस अधिकारी हैं। अकेले इस वर्ष तमिलनाडु ओपन यूनिवर्सिटी से 20 स्वर्ण पदक विजेता बनीं।
अब आप उम्मीद करेंगे कि एक व्यवसायी को कर्मचारियों के पलायन की चिंता होगी। अगर ये महिलाएँ नौकरी छोड़ दें तो क्या होगा? कर्मचारियों की स्थिरता के बारे में क्या होगा?
केपी रामास्वामी का कहना है, “मैं उन्हें काम पर लगातार नहीं रखना चाहता और उनकी क्षमता को बर्बाद नहीं करना चाहता। वे अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि गरीबी के कारण यहां हैं। मेरा काम उन्हें भविष्य देना है, पिंजरा नहीं।” और वह ठीक यही करते हैं…।
वे चली जाती हैं। वे अपना कैरियर बनाती हैं। और फिर? वे अपने गाँवों से और लड़कियों को मिल में भेजती हैं। यह चक्र चलता रहता है।
यह सिर्फ एक CSR पहल भर नहीं है। यह सही मायनों में मानव संसाधन विकास है।
हाल ही में आयोजित एक दीक्षांत समारोह में 350 महिलाओं को डिग्री प्रदान की गई और के.पी. रामास्वामी ने एक असामान्य अनुरोध किया,
“यदि आप या आपके मित्र उन्हें नौकरी पर रख सकें, तो इससे अन्य लड़कियों को आगे पढ़ने की उम्मीद बढ़ेगी।”
ज़रा सोचिए। करोड़ों का साम्राज्य चलाने वाला व्यक्ति व्यापार नहीं मांग रहा है। वह नौकरी मांग रहा है , अपने कर्मचारियों के लिए। हम ऐसा कितनी बार देखते हैं? यह कहानी सिर्फ़ के.पी.आर. मिल्स की नहीं है। यह नेतृत्व, कॉर्पोरेट नैतिकता और राष्ट्र निर्माण का सबक है।
बिजनेस स्कूलों को यह पढ़ाना चाहिए। मानव संसाधन पेशेवरों को इसका अध्ययन करना चाहिए और दुनिया को यह जानने की जरूरत है।