(मुफ़्ती मो. इनामुल्लाह)
क़ुरआन ए करीम, इंसानी ज़िंदगी के हर पहलू पर मुहीत एक मुकम्मल ज़ाबता-ए-हयात है। यह वो इल्मी मोजिज़ा है जिसकी रौशनी क़यामत तक आलमे इंसानियत को राह दिखाती रहेगी।
इसका एजाज़ सिर्फ़ मानवी नहीं बल्कि उस्लूबियाती, इल्मी और क़ानूनी पह्लुओं में भी नुमायाँ है।
यह ऐसा ज़िंदा मोजिज़ा है जिसने फ़साहत व बलाग़त के दावे-दारों को आजिज़ कर दिया और जिसकी दलीलें हर दौर में अपनी सच्चाई साबित करती रही हैं।
❣️अदबी एजाज़❣️
क़ुरआन ए करीम का उस्लूब, बे-नज़ीर और नामुमकिन-उत-तम्सील है। इसकी ज़बान में ऐसा रब्त, हुस्न-ए-बयान और मआनी की गहराई है कि अरब के फ़सीह व बलीग़ शायर और खतीब भी इसके सामने झुक गए।
इसके अल्फ़ाज़ दिलों में उतरने वाले, इसकी तरतीब मुहय्यर-उल-ऊक़ूल और इसके जुमले एक मुनफ़रिद कशिश की हामिल हैं।
अरबों के अदबी उरूज के दौर में, जब्कि ज़बान व बयान के माहिरीन अपने कमालात के झंडे गाड़ चुके थे, क़ुरआन ए करीम ने उन्हें चैलेंज किया:
“وَإِن كُنتُمْ فِي رَيْبٍ مِّمَّا نَزَّلْنَا عَلَىٰ عَبْدِنَا فَأْتُوا۟ بِسُورَةٍ مِّن مِّثْلِهِ” (البقرہ: 23)
“अगर तुम्हें इस (क़ुरआन ए करीम) में शक है तो इस जैसी कोई एक सूरह ही ले आओ।”
अल्लाह तआला के इस चैलेंज के बाद अरब के फ़सीह व बलीग़ शायर , जो( अपनी ज़बानदानी पर नाज़ाँ थे, क़ुरआन करीम के मुनफ़रिद उस्लूब और मोजिज़ाती फ़साहत व बलाग़त के सामने बेबस नज़र आए।
जब्कि अरब का मुआशरा शेर व अदब के उरूज पर था, और वो नस्र व नज़्म के माहिर समझे जाते थे,
लेकिन जब क़ुरआन ए करीम की आयात उनके सामने आईं, तो उनकी तमाम फ़न्नी व लिसानी बरतरी मांद पड़ गई।
और तमामतर लिसानी महारत के बावजूद कोई शख़्स इस जैसा कलाम पेश करने की हिम्मत न कर सका।
चुनांन्चे जाहिली शायर और अदीबों का रद्द-ए-अमल हैरानी, एतेराफ़-ए-अज्ज़ और बाज़ औक़ात हसद व इनकार की सूरत में सामने आया।
▪️वलीद बिन मुग़ीरा की आजिज़ी▪️
मशहूर अरब शायर और फ़सीह व बलीग़ ख़तीब वलीद बिन मुगीरा, जो नबी करीम ﷺ का शदीद मुख़ालिफ़ था, जब उसने क़ुरआन -ए-करीम को सुना तो दंग रह गया और उसने क़ुरैश के सरदारों से कहा:
“وَاللَّهِ إِنِّي لَسَمِعْتُ مِنْ مُحَمَّدٍ كَلَامًا مَا هُوَ مِنْ كَلَامِ الْإِنْسِ، وَلَا مِنْ كَلَامِ الْجِنِّ، وَإِنَّ لَهُ لَحَلَاوَةً، وَإِنَّ عَلَيْهِ لَطَلَاوَةً، وَإِنَّهُ لَمُثْمِرٌ أَعْلَاهُ، مُغْدِقٌ أَسْفَلُهُ، وَإِنَّهُ لَيَعْلُو وَلَا يُعْلَى عَلَيْهِ.”
(तफ़्सीर इब्ने कसीर)
“अल्लाह की क़सम! मैंने मुहम्मद (ﷺ) से एक ऐसा कलाम सुना है जो न इंसान का कलाम मालूम होता है न किसी जिन्न का। इसकी मिठास बे-मिसाल है, इसकी रौशनी दरख़्शाँ है, यह ग़ालिब है, कोई इस पर ग़ालिब नहीं आ सकता।”
लेकिन हसद और ज़िद की वजह से क़ुरैश ने इसे जादू क़रार दे दिया, हालाँकि वो खुद इसकी फ़साहत व बलाग़त से मग़लूब हो चुके थे।
🔸लबीद बिन रबीआ का एतेराफ़-ए-हक़🔸
लबीद बिन रबीआ जाहिलियत के सबसे बड़े शायरों में शुमार होते थे और उनके अश्आर मक्का की दीवारों पर आवेज़ाँ किए जाते थे। जब उन्होंने कुरान-ए-करीम सुना तो उन पर इतना असर हुआ कि उन्होंने शाइरी को छोड़ दिया और इस्लाम क़बूल कर लिया।
एक मौके़ पर जब उनसे कहा गया कि कुछ अश्आर सुनाएँ, तो उन्होंने जवाब दिया:
“ما كنت لأقول شعرًا بعد أن قرأت القرآن.”
(अल-इस्तिआब फ़ी मारिफ़तुल-अस्हाब – इब्ने अब्दुल बर्र)
“क़ुरआन ए करीम पढ़ने के बाद मैंने शाइरी को छोड़ दिया है, क्यूँकि अब शाइरी की कोई ज़रूरत नहीं रही।”
(रज़ियल्लाहु तआला अन्हु)
▪️उमय्या बिन अबी सल्त की हैरानी▪️
उमय्या बिन अबी सल्त जाहिली दौर का मशहूर शाइर था जो तौहीद और आख़िरत पर यक़ीन रखता था।
उसका ख़याल था कि नबी आख़िरुज़्ज़माँ वो खुद होगा।
लेकिन जब नबी ए करीम ﷺ की बेअसत हुई और उसने क़ुरआन ए करीम सुना तो इसकी फ़साहत व बलाग़त से मुतअस्सिर हुए बिना न रह सका, मगर हसद और एनाद की वजह से ईमान से महरूम रहा।
नबी- ए – करीम ﷺ उसके अश्आर को पसंद फ़रमाते थे और सहाबा ए कराम से सुनते थे।
सहीह मुस्लिम की रिवायत है:
“ردفت رسول الله ﷺ يوما، فقال لي: «هل معك من شعر أمية بن أبي الصلت شيء؟» قلت: نعم. قال: «هيه». فأنشدته بيتا، فقال: «هيه». ثم أنشدته بيتا، فقال: «هيه». حتى أنشدته مائة بيت.”
(सहीह मुस्लिम, किताब-उश-शिअर)
“एक दिन मैं रसूलुल्लाह ﷺ के पीछे सवार था, तो आपने मुझसे फ़रमाया: ‘क्या तुम्हारे पास उमय्या बिन अबी सल्त के कुछ अशआर हैं?’
मैंने अर्ज़ किया: जी हाँ।
आप ﷺ ने फ़रमाया: ‘सुनाओ।’ मैंने एक शेर सुनाया, तो आप ﷺ ने फ़रमाया: ‘और सुनाओ।’ यहाँ तक कि मैंने आपको सौ शेर सुनाए।”
▪️क़ुरैश की मुख़ालफ़त और बेबसी▪️
क़ुरैश के सरदारों ने देखा कि लोग क़ुरआन ए करीम की तासीर से मसहूर हो रहे हैं, तो उन्होंने लोगों को क़ुरआन ए करीम सुनने से मना किया और लोगों को रोकने के लिए मुख़्तलिफ़ हरबे इस्तेमाल किए,
मगर क़ुरआन ए करीम की तासीर ऐसी थी कि खुद उनके बड़े सरदार रात की तारीकी में छुप कर रसूलुल्लाह ﷺ की तिलावत सुनते थे।
तारीख़ में है कि अबू सुफ़ियान, अबू जहल और अख़नस बिन शुरैक रात के वक़्त छुप कर क़ुरआन करीम सुनते थे और एक दूसरे से मिलने पर अहद करते थे कि दुबारा ऐसा नहीं करेंगे, मगर फिर भी वो अपनी ख़्वाहिश पर क़ाबू न पा सके और दुबारा क़ुरआन ए करीम सुनने आ जाते थे।
(सीरत इब्ने हिशाम)
▪️नज़र बिन हारिस का एतेराफ़▪️
नज़र बिन हारिस, जो रसूलुल्लाह ﷺ की मुख़ालिफ़त में पेश पेश था, क़ुरआन करीम सुन कर बेइख़्तियार कह पड़ा:
“لقد سمعت منه كلامًا ما هو من كلام الإنس ولا من كلام الجن، وإن له لحلاوة، وإن عليه لطلاوة.”
(دلائل النبوية للبیہقی)
“मैंने मुहम्मद (ﷺ) से ऐसा कलाम सुना है जो न इंसानों का कलाम मालूम होता है और न जिन्नों का। इसमें बेमिसाल मिठास है और इसकी चमक दमक बहुत दिलकश है।”
▪️क़ुरैश के अदीबों का इज्तिमाई एतेराफ़▪️
क़ुरआन ए करीम के इस चैलेंज के बाद कि अगर तुम क़ुरआन ए करीम को इंसानी कलाम समझते हो तो इस जैसी एक सूरह बना कर ले आओ, तो अरब के बड़े-बड़े फ़ुह़सा और शायर ने जमा हो कर तबा’आज़माई की, मगर सब के सब आजिज़ रहे और बोल पड़े:
“والله ما هذا بكلام بشر.”
(الطبري)
“अल्लाह की क़सम! यह किसी बशर का कलाम नहीं है।”
और यह चैलेंज आज भी बदस्तूर क़ायम है, मगर सदियाँ गुज़र जाने के बावजूद कोई इस के हमपल्ला कलाम पेश न कर सका।
🔷अक़्ली व सायंसी दलाइल🔷
क़ुरआन ए करीम, अक़्ल-ए-इंसानी को ग़ौर व फ़िक्र की दावत देता है।
यह सिर्फ़ अकीदा व अहकाम बयान नहीं करता, बल्कि काइनात और इंसानी तख़्लीक़ के ऐसे राज़ भी बयान करता है जो सदियों बाद जदीद साइंस के ज़रिए साबित हुए।
मिसाल के तौर पर:
▪️तख़्लीक-ए-इंसानी के मराहिल▪️
क़ुरआन ए करीम ने माँ के रहेम में बच्चे की तख़्लीक के मराहिल का तफ़सीली ज़िक्र किया है:
“ثُمَّ خَلَقْنَا النُّطْفَةَ عَلَقَةً فَخَلَقْنَا الْعَلَقَةَ مُضْغَةً فَخَلَقْنَا الْمُضْغَةَ عِظَامًا فَكَسَوْنَا الْعِظَامَ لَحْمًا” (المؤمنون: 14)
“फिर हमने नुत्फ़े को जमे हुए ख़ून की शक्ल दी, फिर ख़ून के लोथड़े को गोश्त का टुकड़ा बनाया, फिर गोश्त के टुकड़े को हड्डियों में बदला, फिर हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया।”
यह जदीद एम्ब्रियोलॉजी (جنینیات) के मुताबिक़ है, जिसे डॉ कीथ मूर जैसे माहिरीन ने तस्लीम किया।
🔻काएनात की तौसीअ🔻
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाते हैं:
“وَالسَّمَاءَ بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ” (الذاریات: 47)
“और आसमान को हमने क़ुव्वत से बनाया और हम ही उसे वुसअत देने वाले हैं।”
▪️जदीद फ़लकीयात के मुताबिक़ काइनात मुसलसल फैल रही है,
काएनात का यह फैलाव (Expanding Universe) के सायंसी नज़रिए के ऐन मुताबिक़ है, जिसे 20वीं सदी में एडविन हबल (Edwin Hubble) ने दरयाफ़्त किया था।
जबकि क़ुरआन करीम 1400 साल पहले ही इस हक़ीक़त को बयान कर चुका था।
♦️ पहाड़ों का किरदार ♦️
क़ुरआन ए करीम बयान करता है कि पहाड़ ज़मीन को इस्तिहकाम देते हैं:
“وَجَعَلْنَا فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَن تَمِيدَ بِهِمْ” (الأنبیاء: 31)
“और हमने ज़मीन में मज़बूत पहाड़ रख दिए ताकि वो उन्हें लेकर डगमगा न जाए।”
यह नज़रिया जदीद प्लेट टेक्टॉनिक्स (Plate Tectonics) से मुताबिक़त रखता है, जो ज़मीन की सतह पर मौजूद प्लेटों और पहाड़ों के इस्तिहकाम में उनके किरदार को साबित करता है।
🔷पानी में ज़िंदगी की इब्तिदा🔷
साइंस साबित कर चुकी है कि ज़िंदगी की इब्तिदा पानी में हुई, जब कि क़ुरआन करीम ने सदियों पहले फ़रमा दिया था:
“وَجَعَلْنَا مِنَ الْمَاءِ كُلَّ شَيْءٍ حَيٍّ” (الأنبیاء: 30)
“और हमने हर जानदार चीज़ को पानी से बनाया।”
यह हयातियात (Biology) के बुनियादी उसूलों में शामिल है कि तमाम ज़िंदा ख़ुलियात का बड़ा हिस्सा पानी पर मुश्तमिल होता है।
🔸 दो समंदरों का न मिलना 🔸
क़ुरआन बयान करता है कि दो मुख़्तलिफ़ समंदर आपस में नहीं मिलते, बल्कि उनके दरमियान एक रुकावट होती है:
“مَرَجَ الْبَحْرَيْنِ يَلْتَقِيَانِ بَيْنَهُمَا بَرْزَخٌ لَّا يَبْغِيَانِ” (الرحمن: 19-20)
“उसने दो समंदरों को छोड़ दिया कि वो मिलते हैं, मगर उनके दरमियान एक पर्दा है, वो एक-दूसरे से आगे नहीं बढ़ते।”
यह समंदरियात (Oceanography) में दरयाफ़्त शुदा हक़ीक़त है कि मुख़्तलिफ़ समंदरों में पानी की कसाफ़त, नमकियत, और दर्जा हरारत के फ़र्क़ की वजह से वो अलग रहते हैं।
क़ुरआन करीम के यह साइंसी चैलेंजेज़ उस की इल्हामी हैसियत का वाज़ेह सबूत हैं।
एक ऐसे दौर में जब सायंसी इल्म महदूद था, इन हक़ीक़ात का बयान होना किसी इंसानी तस्नीफ़ का काम नहीं हो सकता।
यही वजह है कि क़ुरआन ए करीम ने बारहा इंसान को तहक़ीक़ और तदब्बुर की दावत दी है:
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाते हैं:
“سَنُرِيهِمْ آيَاتِنَا فِي الْآفَاقِ وَفِي أَنفُسِهِمْ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ” (فصلت: 53)
“हम उन्हें अपनी निशानियाँ आफ़ाक़ में भी दिखाएँगे और खुद उनके नफ़्स में भी, यहाँ तक कि उन पर वाज़ेह हो जाएगा कि यही हक़ है।”
🔻साइंसदान , जिन्होंने क़ुरआन ए करीम से मुतअस्सिर होकर इस्लाम क़बूल किया🔻
(1) प्रोफेसर कीथ एल मूरे
मशहूर एम्ब्रियोलॉजिस्ट – कनाडा।
Dr. Keith L. Moore (Professor of Embryology, Canada)
“The descriptions of the human embryo in the Qur’an cannot be based on scientific knowledge in the 7th century… It is inconceivable that this information could have come from a human source.”
“क़ुरआन ए करीम में इंसानी जनीन की जो तफ़सीलात हैं, वो सातवीं सदी के साइंसी इल्म पर मबनी नहीं हो सकतीं…
ये नामुमकिन है कि ये मालूमात किसी इंसानी ज़रिये से आई हों।”
(2) प्रोफेसर ई. मार्शल जॉनसन
Dr. E. Marshall Johnson (Professor of Anatomy & Developmental Biology, USA)
“As a scientist, I can only deal with things which I can specifically see… If I were to transpose myself into that era… I could not describe the things that were described in the Qur’an.”
“एक साइंसदान के तौर पर, मैं सिर्फ़ वही चीज़ें जान सकता हूँ जो मैं देख सकता हूँ… अगर मैं अपने आप को उस दौर में रखूँ, तो मैं क़ुरआन में दी गई तफ़सीलात को बयान नहीं कर सकता।”
(3) डॉ हेनरी लारसन
Dr. Henry Larson (Harvard Professor & Stem Cell Researcher, USA)
“When I studied the Qur’an and compared it with modern scientific findings, I was amazed at its accuracy. This led me to accept Islam.”
“जब मैंने क़ुरआन ए करीम का मुतालआ किया और उसे जदीद साइंसी दरयाफ़्तों से मिलाया, तो मैं इसकी दुरुस्ती से हैरान रह गया।
यही वजह बनी कि मैंने इस्लाम क़बूल किया।”
(4) डॉ ओकुडा – जापानी साइंसदान
Dr. Okuda (Japanese Scientist, Japan)
“The statement in the Qur’an about human creation from ‘altered black smooth mud’ (Surah Al-Hijr) intrigued me. This aligns perfectly with our findings in genetics and embryology.”
“क़ुरआन में ‘बदली हुई काली चिकनी मिट्टी’ से इंसान की तख़लीक़ के बयान ने मुझे हैरान कर दिया। ये हमारी जेनेटिक्स और एम्ब्रियोलॉजी की दरयाफ़्तों से मुकम्मल तौर पर मुताबक़त रखता है।”
(5) दर्द के एहसास पर रिसर्च करने वाले साइंसदान
Unidentified Professor (USA/Germany)
“We discovered that pain sensation is only possible due to nerve endings in the skin. The Qur’an mentioned this fact over 1400 years ago in Surah An-Nisa (4:56)… I embraced Islam after learning this truth.”
“हमने दरयाफ़्त किया कि दर्द का एहसास सिर्फ़ जि़ल्द में मौजूद नसों की वजह से मुमकिन होता है।
क़ुरआन ए करीम ने 1400 साल पहले ही सूरह अन-निसा (4:56) में इस हक़ीक़त को बयान किया था।
इस सच्चाई को जानने के बाद मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया।”
📜तशरीई निज़ाम:
▪️मब्नी बर-इंसाफ़
क़ुरआन ए करीम एक जामे क़ानूनी और समाजी निज़ाम भी पेश करता है, जो फ़र्द और समाज दोनों की इस्लाह करता है। चाहे वो अद्ल व इंसाफ़ का मामला हो, तिजारत व मआश का उसूल हो या इज़देवाजी और खानदानी ज़िंदगी के ज़वाबित ।
हर पहलू पर क़ुरआन ए करीम की तालीमात मुकम्मल और मुतवाज़िन हैं।
♦️अद्ल व इंसाफ़
“إِنَّ ٱللَّهَ يَأْمُرُ بِٱلْعَدْلِ وَٱلْإِحْسَانِ” (النحل: 90)
“बेशक, अल्लाह तआला अद्ल और एहसान का हुक्म देते हैं।”
इस उसूल ने इस्लामी क़ानून और अदालती निज़ाम की बुनियाद रखी, जिसने दुनिया को एक ग़ैर जानिबदार और मुनसिफ़ अदालत का तसव्वुर दिया।
♦️मआशी उसूल
“أَحَلَّ ٱللَّهُ ٱلْبَيْعَ وَحَرَّمَ ٱلرِّبَوٰا۟” (البقرہ: 275)
“अल्लाह तआला ने तिजारत को हलाल किया और सूद को हराम करार दिया।”
जदीद मआशियात में भी सूदी निज़ाम के नुक़सानात को तस्लीम किया जाने लगा है, जबकि क़ुरआन ए करीम ने बहुत पहले ही इससे बचने की तल्क़ीन कर दी थी।
🔻क़ुरआन ए करीम – एक ज़िंदा मोजिज़ा 🔻
क़ुरआन करीम का एजाज़ हर दौर में आशकार होता रहा है। इसकी फ़साहत व बलाग़त ने अदीबों को मांद कर दिया, इसके सायंसी हक़ायक़ ने साइंसदानों को हैरान कर दिया और इसके क़वानीन ने समाज में अद्ल व इंसाफ़ की शमा रौशन कर दी।
ये एक ऐसा कलाम है जिसके अल्फ़ाज़ में रौशनी है, मआनी में गहराई है और पैग़ाम में ज़िंदगी के तमाम जेहतों का इहाता है। यही वजह है कि ये आज भी ज़िंदा व जावेद है, इंसानियत के लिए चराग़-ए-राह है और क़यामत तक हर शोबा-ए-ज़िंदगी में रहनुमाई का सरचश्मा रहेगा।
🔸अबदी हिदायत🔸
क़ुरआन ए करीम का पैग़ाम हर ज़माने के इंसानों के लिए यकसां मुनासिब और क़ाबिल-ए-अमल है।
इसकी तालीमात सिर्फ़ रूहानी ही नहीं बल्कि अक़ली, सायंसी और क़ानूनी बुनियादों पर भी ना-क़ाबिल-ए-तर्दीद हैं।
अल्लाह तआला हम सब को क़ुरआन ए करीम की अहमियत को समझने का शऊर अता फ़रमाएं।
आमीन।
(मुफ़्ती) मो. इनामुल्लाह
अल-हिरा फ़ाउंडेशन, मुंबई
📞 9324081144