फ़ज़ल ए हक़ से कालापानी तक एक क़ौमी सफ़र

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मुंबई: अंधेरी की सुल्तान-ए-हिन्द मस्जिद में जुमा की नमाज़ से पहले दिए गए खिताब में इमाम मौलाना तय्यब ने कहा कि आज़ादी का जश्न मनाना सिर्फ एक रस्म या त्योहार नहीं, बल्कि यह हमारे ईमान, हमारी पहचान और हमारी इतिहास की सबसे बड़ी अमानत है। उन्होंने कहा कि इस मुल्क की आज़ादी हमें किसी ने तोहफ़े में नहीं दी, बल्कि इसके लिए अनगिनत मुजाहिदीन ने अपनी जानों की बाज़ी लगाई, अपने घर-बार छोड़े, जेलों की सख्तियां सही और फांसी के फंदों को चूमा। उनकी कुर्बानियां ऐसी हैं जिनकी मिसाल दुनिया में बहुत कम मिलती है।

मौलाना तय्यब ने ज़ोर देकर कहा कि आज़ादी का जश्न मना कर हम उन शहीदों को खिराज-ए-अक़ीदत पेश करते हैं जिनके खून से यह वतन महक रहा है। उन्होंने विशेष तौर पर अल्लामा फ़ज़ल-ए-हक़ खैराबादी का नाम लिया, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ फतवा जारी किया और इसके नतीजे में उन्हें कालापानी की उम्रकैद की सज़ा दी गई। सख्त से सख्त यातनाओं के बावजूद उन्होंने अपने इरादों में कोई कमी नहीं आने दी।

इमाम साहब ने कहा कि ऐसे जुर्रतमंद और वफ़ादार लोगों की कुर्बानियां हमें हमेशा याद दिलाती हैं कि आज़ादी की कीमत कितनी ऊंची है। उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि 15 अगस्त के मौके पर झंडा लहराने और मिठाई बांटने के साथ-साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इन कुर्बानियों की कहानियां सुनाएं, ताकि उनका ईमान, उनका हौसला और वतन से उनकी मोहब्बत हमेशा ज़िंदा रहे।

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