हज़रत मुहम्मद ﷺ – रहमतुल्लिल-आलमीन और इंसानियत के सबसे बड़े उस्ताद

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    (रईस खान)

दुनिया की तारीख़ इंसानियत को राह दिखाने वाले अज़ीम शख़्सियतों से भरी पड़ी है, लेकिन इनमें सबसे रोशन और रहनुमा हस्ती हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ की है। आप न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि तमाम इंसानियत और पूरी मख़लूक़ात के लिए रहमत बनकर आए। कुरआन करीम में अल्लाह तआला ने फ़रमाया:
“व मा अरसल्नाक इल्ला रहमतल्लिल आलमीन”
(यानी ऐ नबी ﷺ! हमने आपको सारी कायनात के लिए रहमत बनाकर भेजा है।)

पैग़ंबर ﷺ – एक बेहतरीन शिक्षक- हज़रत मुहम्मद ﷺ को दुनिया का सबसे बड़ा मुअल्लिम (शिक्षक) कहना बिल्कुल दुरुस्त है। आपने जिस दौर में तालीम और इल्म की बुनियाद रखी, उस वक़्त अरब की सरज़मीं जहालत, तफ़रक़े और नफ़रत से भरी हुई थी। आपने न केवल उस समाज को बदल दिया बल्कि आने वाली तमाम नस्लों को भी इंसाफ़, मोहब्बत, बराबरी और इंसानियत का सबक़ दिया।

आपकी तालीम सिर्फ़ ज़बानी उपदेशों तक सीमित नहीं रही, बल्कि आपकी पूरी ज़िंदगी उसका अमली नमूना बन गई। आपने ग़ुलाम और आ़ज़ाद, अमीर और ग़रीब, मर्द और औरत—सबको बराबरी का दर्जा दिया। यह वही पैग़ाम है जिसकी आज की दुनिया को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

सबर और रहमत: ताइफ़ में जब आपको पत्थरों से लहूलुहान कर दिया गया, तो बदले की जगह आपने दुआ की: “ऐ अल्लाह! इन्हें हिदायत अता फ़रमा।” यह सबक़ देता है कि असली उस्ताद तकलीफ़ सहकर भी अपने शागिर्दों के लिए भलाई चाहता है।

बराबरी और इंसाफ़: आपने स्पष्ट किया: “सब इंसान आदम की औलाद हैं। किसी अरबी को अजरबी पर और किसी गोरे को काले पर कोई फ़ज़ीलत नहीं।” यह इंसानियत के लिए सबसे बड़ा लोकतांत्रिक संदेश है।

ख़िदमत-ए-ख़ल्क़: आपने सिखाया: “सबसे बेहतर इंसान वह है जो इंसानों के लिए सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद हो।” यही शिक्षा आज की सामाजिक ज़िंदगी का आधार बन सकती है।

इस साल 5 सितंबर एक अनूठा इत्तेफ़ाक़ लेकर आया है। हिंदुस्तान में यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। और यही दिन पैग़ंबर-ए-इस्लाम ﷺ की 1500वीं सालगिरह-ए-पैदाइश का भी है। यह संयोग हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि असली “उस्ताद” और रहबर वही है जिसकी तालीम ने पूरी इंसानियत को राह दिखाई। और वह हैं – हज़रत मुहम्मद ﷺ।

आज की दुनिया नफ़रत, तफ़रक़ा और ख़ुदग़र्ज़ी में बंटी हुई है। ऐसे दौर में पैग़ंबर ﷺ की तालीम और भी अहम हो जाती है।अमन और मोहब्बत की तालीम, इंसाफ़ और बराबरी का पैग़ाम, इल्म और अख़लाक़ की रहनुमाई। अगर इन उसूलों को तालीमी, सामाजिक और व्यक्तिगत ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया जाए तो इंसानियत एक नई रोशनी की तरफ़ बढ़ सकती है।

इस तरह 5 सितंबर हमें यह याद दिलाता है कि हज़रत मुहम्मद ﷺ सिर्फ़ मुसलमानों के ही नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के सबसे बड़े उस्ताद और रहनुमा हैं। उनकी तालीम और उनकी सीरत आज भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी 1500 साल पहले थी।

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