पैग़ंबर-ए-इस्लाम ﷺ की 1500वीं यौम-ए-विलादत : अमन, मोहब्बत और इंसानियत का जश्न

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   (रईस खान)

5 सितम्बर 2025 का दिन इतिहास के पन्नों में एक सुनहरे और नायाब मौके के तौर पर दर्ज हो गया। यह दिन जुमा का था और उसी रोज़ पूरी दुनिया के मुसलमानों ने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ﷺ की 1500वीं सालगिरह-ए-पैदाइश को याद किया। यह संयोग अपने आप में बेहद अहम था कि एक तरफ़ पैग़ंबर ﷺ की यौम-ए-विलादत का दिन आया और दूसरी तरफ़ हिंदुस्तान में यही तारीख़ शिक्षक दिवस के तौर पर भी मनाई गई। यानि इस साल का मिलाद-उन-नबी ﷺ न सिर्फ़ मुसलमानों के लिए बल्कि पूरी इंसानियत के लिए एक नया पैग़ाम लेकर आया,कि असल उस्ताद वही है जिसकी तालीम और सीरत हमेशा रोशनी बिखेरती रहे।

इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक़, हज़रत मुहम्मद ﷺ की पैदाइश 12 रबी-उल-अव्वल को हुई। यह दिन दुनिया भर में मिलाद-उन-नबी या मौलिद-उन-नबी के नाम से जाना जाता है। 2025 में यह तारीख़ 5 सितम्बर को आई और जुमा के मुबारक दिन से मेल खा गई। इस साल की सबसे बड़ी ख़ासियत यह रही कि यह पैग़ंबर ﷺ की पैदाइश का 1500वां साल था। 1500 साल, यानी डेढ़ हज़ार बरस का लंबा अरसा गुज़र चुका है लेकिन आज भी उनकी तालीम और उनका पैग़ाम उतना ही प्रासंगिक है जितना उस दौर में था।

हज़रत मुहम्मद ﷺ जिस समाज में पैदा हुए, वह समाज जहालत, नफ़रत और तफ़रक़े से भरा हुआ था। औरतों को कोई हक़ हासिल नहीं था, ग़रीब और ग़ुलाम इंसान समझे ही नहीं जाते थे और इंसाफ़ की जगह ज़ुल्म का बोलबाला था। मगर आपने इल्म और रहमत की ऐसी रोशनी फैलाई कि वही समाज इंसानियत और इंसाफ़ का मिसाल बन गया।

भारत की सरज़मीं हमेशा से मिलाद-उन-नबी ﷺ के जश्न की गवाह रही है। इस बार भी नज़ारा कुछ अलग नहीं था बल्कि और भी ज्यादा रौनक और जोश देखने को मिला। मुंबई की हाजी अली और महिम दरगाह पर 12 दिनों तक चलने वाले कार्यक्रमों की शुरुआत झंडारोहण और नातख़्वानी से हुई। हर रात महफ़िलें सजती रहीं, जिनमें कुरआन की तिलावत और पैग़ंबर ﷺ की सूरत-ए-हयात पर बयान होते रहे।

लखनऊ में बारावाफ़त का जुलूस निकाला गया, जिसमें हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया। मौलाना खालिद रशीद फ़रंगी महली ने अपने बयान में मोहब्बत, अमन और भाईचारे का पैग़ाम दिया। उनका कहना था कि पैग़ंबर ﷺ की तालीम किसी एक मज़हब तक सीमित नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए है। जमशेदपुर, हैदराबाद और कोलकाता जैसे शहरों में भी भव्य जुलूस निकाले गए, जहां लोग नात पढ़ते और सलाम पेश करते नज़र आए।

देश के कई हिस्सों में बच्चों के लिए मिलाद प्रतियोगिताएं कराई गईं, स्कूलों और मदरसों में पैग़ंबर ﷺ की तालीम पर भाषण और निबंध कार्यक्रम हुए। कई जगह सामाजिक सेवाओं के ज़रिए भी इस दिन को यादगार बनाया गया, गरीबों को खाना खिलाना, मरीजों की मदद करना और बुज़ुर्गों की ख़िदमत करना।

मुस्लिम दुनिया के तक़रीबन हर मुल्क में इस दिन को बेहद उत्साह और जश्न के साथ मनाया गया। गलियां, मस्जिदें और बाज़ार हरे झंडों और रोशनियों से सजे रहे।

दुबई और अबू धाबी में सरकार ने लोगों की सहूलियत के लिए खास इंतज़ाम किए। मेट्रो की सेवाएं देर रात तक बढ़ा दी गईं और पार्किंग मुफ्त कर दी गई। यह कदम वहां के लाखों लोगों के लिए सहूलियत का सबब बना। तुर्किये में सरकार ने इस पूरे साल को पैग़ंबर ﷺ के नाम कर दिया और ऐलान किया कि पूरे साल अलग-अलग तालीमी, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम होते रहेंगे।

सोमालिया की राजधानी मोगादिशु में सूफ़ी समुदायों ने भव्य जुलूस निकाले और महफ़िलें सजाईं। वहां इसे सार्वजनिक छुट्टी के तौर पर मनाया गया। यमन की राजधानी सना, पाकिस्तान के कराची, मिस्र के क़ाहिरा और मोरक्को के रबात की गलियां भी हरे रंग की रोशनी से जगमगाती रहीं। मस्जिदों में कुरआन की तिलावत और नातों की गूंज सुनाई देती रही।

इस साल का मिलाद सिर्फ़ धार्मिक रस्मों तक महदूद नहीं रहा, बल्कि इसमें कई नए आयाम जुड़े। जगह-जगह इंटरफ़ेथ संवाद आयोजित किए गए जिनमें गैर-मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी हिस्सा लिया और इंसाफ़, मोहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम दिया। कई शहरों में ब्लड डोनेशन कैंप, गरीबों को खाना खिलाना और बच्चों के लिए विशेष मिलाद प्रोग्राम आयोजित हुए।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नात, कव्वाली और इस्लामी कला के प्रदर्शन शामिल थे। कई शहरों की इमारतों को हरे और सफेद रंग की लाइटों से सजाया गया। सोशल मीडिया पर भी #1500YearsOfMercy और #MiladUnNabi2025 जैसे हैशटैग ट्रेंड करते रहे।

पैग़ंबर-ए-इस्लाम ﷺ का पैग़ाम किसी मज़हब या सरहद तक सीमित नहीं। आपने सिखाया कि सब इंसान बराबर हैं, किसी को उसकी नस्ल, रंग या क़बीले की वजह से दूसरे पर कोई श्रेष्ठता हासिल नहीं। आपने यह भी सिखाया कि सबसे अच्छा इंसान वही है जो दूसरों के लिए सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद हो।

आज की दुनिया जब तफ़रक़ा, नफ़रत और ख़ुदग़र्ज़ी में उलझी हुई है, तब पैग़ंबर ﷺ की तालीम अमन, इंसाफ़ और मोहब्बत की ओर लौटने की पुकार है। डेढ़ हज़ार साल पहले दिया गया यह पैग़ाम आज भी उतना ही ज़रूरी है जितना उस दौर में था।

5 सितम्बर 2025 का दिन न सिर्फ़ मुसलमानों बल्कि पूरी इंसानियत के लिए एक यादगार दिन था। पैग़ंबर ﷺ की 1500वीं यौम-ए-विलादत के जश्न ने यह साबित कर दिया कि उनकी तालीम आज भी रोशनी का सबसे बड़ा ज़रिया है। यह दिन सिर्फ़ खुशी का दिन नहीं था, बल्कि आत्ममंथन का भी दिन था कि क्या हम अपनी ज़िंदगी में उनकी तालीम को अपनाते हैं या नहीं।

यह जश्न हमें यह याद दिलाता है कि पैग़ंबर ﷺ की ज़िंदगी और उनका पैग़ाम किसी मज़हबी दायरे तक महदूद नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए है। अगर उनकी तालीम को अपनाया जाए तो यह दुनिया मोहब्बत, अमन और इंसाफ़ से भर सकती है। यही असल मायने हैं पैग़ंबर-ए-इस्लाम ﷺ की 1500वीं यौम-ए-विलादत के वैश्विक जश्न के।

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