(रईस खान)
मुंबई, 8 सितंबर को समंदर की लहरों के साथ रफ़्तार में बहता यह शहर आज भाईचारे की धड़कन से भी गूँज उठा। ईद-ए-मिलाद का जुलूस, जो इस बार 5 सितंबर के बजाय 8 सितंबर को निकाला गया, सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं रहा,यह शहर के सामाजिक सौहार्द का संदेश बन गया।
सुबह से ही महिम दरगाह, धारावी और नवी मुंबई की गलियों में रौनक फैल गई। नात-ख़्वानी की धुन, सजावटी झांकियाँ और हज़ारों की भीड़ ने उत्सव को रंगीन बना दिया। सड़क किनारे लगे लंगर, बच्चों की टोलियाँ और सामूहिक जयकारों ने माहौल को जीवंत कर दिया।
इस बार ईद-ए-मिलाद 5 सितंबर को था, लेकिन 6 सितंबर को अनंत चतुर्दशी यानी गणेश विसर्जन का पर्व भी पड़ रहा था। दोनों बड़े आयोजनों के चलते भीड़ और प्रशासनिक दबाव बढ़ सकता था। इसलिए मुस्लिम समुदाय और प्रशासन ने आपसी समझदारी से फैसला लिया कि जुलूस 8 सितंबर को निकाला जाए। यह बदलाव एक मिसाल बना—त्योहार भी सुरक्षित रहे और सौहार्द भी।
मुंबई का ईद-ए-मिलाद जुलूस हमेशा से सिर्फ धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक नहीं रहा। यह विविधता और साझेदारी का उत्सव है।हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई—सब इसमें शामिल होकर अपनेपन का अहसास कराते हैं।प्रशासन और समाज की साझी योजना से ट्रैफिक, सुरक्षा और व्यवस्था बिना तनाव के संभल जाती है।और सबसे खास,यह जुलूस सेवा और साझेपन का मंच है, जहाँ मुफ्त भोजन, दवाइयाँ और राहत सबको समान रूप से मिलती हैं।
आखिरकार मुंबई ने एक बार फिर साबित किया कि त्योहार सिर्फ तारीख़ों से नहीं, दिलों से मनाए जाते हैं।आज का जुलूस हमें याद दिलाता है कि जब धर्म और संस्कृति हाथ थामकर चलें, तो समाज की रफ़्तार और भी मज़बूत हो जाती है।