(शिब्ली रामपुरी)
हम अक्सर ऐसे लोगों को देखते हैं जिनमें एक बड़ी संख्या महिलाओं की भी होती है कि जो यह बताने का प्रयास करती हैं कि इस्लाम में महिलाओं को सम्मान के तौर पर विशेष अधिकार हासिल नहीं है और उनकी स्वतंत्रता पर इस्लाम पाबंदी लगाता है. दरअसल यह आधा अधूरा ज्ञान है जो बेहद नुकसानदायक है और ऐसी बातें गलतफहमियों को पैदा करती हैं और उनमें बढ़ोतरी करती हैं.
जरा सोचिए कि लड़की पैदा होते ही उसको जिंदा दफ़न कर दिया जाता हो और महिलाओं को इंसान के बराबर दर्जा ही ना दिया जाता हो तो फिर वह कितना घिनौना अत्याचार होता होगा. महिलाओं के साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता हो.
पैगंबर ए इस्लाम के दुनिया में आने से पहले महिलाओं के साथ और मासूम बच्चियों के साथ यही अत्याचार होता था और ऐसा करना उस दौर के लोग अपनी शान समझते थे. जब पैगंबर ए इस्लाम ने ये अत्याचार देखा यह जुल्म देखा तो उन्होंने न सिर्फ उस पर रोक लगाई बल्कि बच्चियों को महिलाओं को वह सम्मान दिलाया कि जिसकी उस दौर में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
टीवी के स्टूडियो में बैठकर या सोशल मीडिया पर कुछ भी लिख देने से सच्चाई को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है और सच यह है कि पैगंबर ए इस्लाम ने महिलाओं को समाज में वह स्थान दिलाया कि जिसकी वह वास्तविक तौर पर हकदार थीं. महिलाओं को जुल्म और अत्याचार की दलदल से निकाल कर उनको सम्मान के बुलंद मक़ाम तक पहुंचा दिया.