(रईस खान)
नेपाल के इतिहास से लेकर वर्तमान तक मुस्लिम समुदाय ने हमेशा एक शांत, सहयोगी और उत्पादक भूमिका निभाई है। ताज़ा बगावत के दौर में भी उन्होंने न तो अलगाव का रास्ता चुना और न ही अस्थिरता को बढ़ावा दिया। नेपाल का भविष्य तभी सुरक्षित होगा जब हर समुदाय,चाहे वह बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक,एक साथ मिलकर लोकतंत्र और विकास की राह पर चले। मुस्लिम समुदाय इसी दिशा में एक अहम साझेदार साबित हो सकता है।
पिछले कुछ दिनों में नेपाल हिंसक प्रदर्शनों से गुज़रा। सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार विरोधी नाराज़गी ने युवाओं, को सड़कों पर ला दिया। सरकार डगमगा गई और सेना को हालात संभालने उतारना पड़ा। इस उथल-पुथल में मुस्लिम समुदाय ने कोई अलग या साम्प्रदायिक रुख नहीं अपनाया। न तो उन्होंने विरोध को धार्मिक रंग दिया और न ही किसी तरह का अलगाव दिखाया। यह अपने आप में महत्वपूर्ण है कि मुस्लिमों ने नेपाल की मुख्यधारा की स्थिति को ही साझा किया और चुपचाप हालात पर नज़र रखी।
नेपाल एक बहुजातीय और बहुधार्मिक देश है। यहाँ बहुसंख्यक हिंदू और बौद्ध जनसंख्या के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय भी अपनी पहचान रखता है। आबादी का लगभग 4–5% हिस्सा होने के बावजूद मुस्लिमों ने नेपाल की संस्कृति, व्यापार और सामाजिक जीवन में हमेशा से योगदान दिया है।
मुस्लिमों का नेपाल में आगमन मध्यकाल में हुआ। व्यापारी, शिल्पकार और सैनिक भारत और तिब्बत के बीच व्यापारिक मार्गों से यहाँ पहुँचे। कश्मीरी मुस्लिम कारीगरों की कारीगरी काठमांडू घाटी में मशहूर रही। तराई क्षेत्र में कृषि और व्यापार करने वाले मुस्लिम परिवार स्थायी रूप से बस गए। इस तरह मुस्लिम समुदाय नेपाल की सामाजिक विविधता का हिस्सा बना।
मुस्लिमों ने नेपाल की काष्ठकला, धातुकला और हस्तशिल्प को नई पहचान दी। व्यापार के क्षेत्र में उन्होंने सेतु का काम किया। खानपान, संगीत और पहनावे में भी उनका प्रभाव देखने को मिलता है। उनकी मौजूदगी ने नेपाल को और अधिक बहुलतावादी बनाया।
लोकतंत्र की स्थापना के बाद मुस्लिम समुदाय ने भी अपने अधिकारों की आवाज उठाई। संविधान 2015 ने उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता और समान अवसर की गारंटी दी। हालांकि प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित है, फिर भी मुस्लिम नेता संसद और स्थानीय राजनीति में सक्रिय हुए हैं।
आज भी तराई क्षेत्र के मुस्लिम किसान और व्यापारी स्थानीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभा रहे हैं। खाड़ी देशों और मलेशिया में काम कर रहे मुस्लिम प्रवासी बड़ी मात्रा में रेमिटेंस भेजते हैं, जो नेपाल की अर्थव्यवस्था के लिए जीवनरेखा है।
हालांकि शिक्षा और रोजगार में समुदाय अब भी पीछे है, लेकिन अवसर मिलने पर यह नेपाल की तरक्की में और बड़ी भूमिका निभा सकता है।