(रईस खान)
बरसात का मौसम आते ही गंगा का मिज़ाज बदल जाता है। लहरों का उफान और किनारों से बाहर छलकता पानी सिर्फ नदी का रूप नहीं, बल्कि उन हज़ारों लोगों की कहानी है जो हर साल इसकी चपेट में आ जाते हैं। इस बार उन्नाव और हरदोई के गंगा किनारे बसे गाँवों में वही दर्द दोहराया जा रहा है।
गाँव नेतुआ के रामखिलावन बताते हैं, “हम तो घर में रहते हुए भी बेघर हो गए हैं। आँगन से बाहर निकलना है तो नाव चाहिए। खेतों में धान खड़ी थी, लेकिन अब सब पानी में समा गई।”
उन्नाव ज़िले के करीब 130 गाँव डूब की चपेट में हैं। छह हज़ार से अधिक परिवारों को अपना सामान समेटकर सुरक्षित जगह जाना पड़ा है। जिनके पास साधन नहीं हैं, वे ऊँचे चबूतरों या रिश्तेदारों के घरों में शरण लिए हुए हैं।
फसलों पर सबसे बड़ी मार पड़ी है। किसान रामसेवक कहते हैं, “धान और मक्का पर जितना खर्च किया था, सब डूब गया। अब उधारी कैसे चुकाएँगे, यही सोच कर नींद नहीं आती।”
शहर की गलियों में भी हालात अजीब हैं। राजीव नगर और गायत्री नगर जैसे इलाकों में लोग नाव से आना-जाना कर रहे हैं। बच्चे इसे खेल समझ रहे हैं, लेकिन बड़ों के लिए यह मजबूरी और डर का मिश्रण है।
हरदोई में बाढ़ का असर उन्नाव जितना व्यापक नहीं दिखा, लेकिन गर्रा नदी का उफान यहाँ के लोगों को सावधान रहने पर मजबूर कर रहा है। हाल ही में एक युवक घरेलू झगड़े के बाद नदी में कूद गया। लोग समझ बैठे कि अब उसका बचना मुश्किल है। लेकिन चार किलोमीटर बहने के बाद वह ज़िंदा मिल गया। गाँव के बुज़ुर्ग कहते हैं कि यह किसी चमत्कार से कम नहीं।
यह घटना नदी की भयावह ताकत और अनिश्चितता का संकेत है। लोग मानते हैं कि अगर बारिश और तेज़ हुई, तो यहाँ भी हालात उन्नाव जैसे हो सकते हैं।
गाँवों में रोज़मर्रा की ज़िंदगी अस्त-व्यस्त है। महिलाएँ कहती हैं कि चूल्हा-चौका करना मुश्किल है क्योंकि घरों में पानी भरा है। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे। बुज़ुर्ग और बीमार लोग सबसे ज़्यादा परेशान हैं।
प्रशासन की तरफ से नावें और राहत सामग्री पहुँचाई जा रही है, लेकिन गाँव वालों का कहना है कि यह मदद ज़रूरत के हिसाब से बहुत कम है।
गंगा किनारे रहने वाले लोग हर साल यही संकट झेलते हैं। उनकी बातों में एक ही दर्द झलकता है ,“हमारी तकलीफें सिर्फ बारिश में याद की जाती हैं, उसके बाद सब भूल जाते हैं।”
जरूरत सिर्फ राहत बाँटने की नहीं, बल्कि स्थायी समाधान की है , मज़बूत तटबंध, समय पर निकासी की व्यवस्था और वैकल्पिक रोजगार। तभी गंगा किनारे का जीवन सच में सुरक्षित और सम्मानजनक बन सकेगा।
गंगा को हम जीवनदायिनी कहते हैं। लेकिन उन्नाव और हरदोई के इन गाँवों में आज गंगा जीवन से ज़्यादा संघर्ष और जद्दोजहद की कहानी लिख रही है।