(रईस खान)
अल्हम्दुलिल्लाह, वस्सलातु वस्सलामु अला रसूलल्लाह…
मेरे अज़ीज़ भाइयों! जुमा का दिन हफ्ते का सबसे अफज़ल दिन है। इस दिन अल्लाह तआला ने मुसलमानों पर जुमा की नमाज़ फर्ज़ की है। इसलिए हम सब पर लाज़िम है कि इस नमाज़ की पूरी अहमियत करें और वक्त से पहले तैयारी में लग जाएं।
भाइयों! सफर करना अपने आप में जाइज है, मगर अगर सफर की वजह से जुमा की नमाज़ छूट जाए, तो यह गुनाह होगा। बेहतर यही है कि जुमा की नमाज़ पढ़कर सफर पर निकला जाए। हां, अगर कोई मजबूरी हो और इंसान मुसाफिर हो जाए, तो उस पर जुमा की नमाज़ वाजिब नहीं रहती, बल्कि ज़ुहर की नमाज़ अदा करेगा।
और जहां तक तिज़ारत का ताल्लुक है, कुरआन करीम में अल्लाह तआला का साफ हुक्म है: “जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाए तो अल्लाह की याद की तरफ दौड़ पड़ो और कारोबार छोड़ दो। यही तुम्हारे लिए बेहतर है। फिर जब नमाज़ पूरी हो जाए तो जमीन में फैल जाओ और अल्लाह का फज़्ल तलाश करो।”
यानी अज़ान-ए-जुमा के बाद कारोबार करना हराम है। उस वक्त सिर्फ अल्लाह की इबादत की तरफ ध्यान देना चाहिए। मगर नमाज़ खत्म होने के बाद रोज़ी-रोटी के लिए मेहनत करना जाइज़ ही नहीं, बल्कि अल्लाह का फज़्ल तलाश करना है।
मेरे भाइयों! खुलासा यही है कि जुमा के दिन सफर और तिज़ारत जाइज हैं, मगर जुमा की नमाज़ हर हाल में क़ायम करनी है। अज़ान के बाद कारोबार छोड़ देना है और नमाज़ के बाद ही दुनियावी कामों में लगना है।
अल्लाह तआला हम सबको जुमा की नमाज़ की हिफ़ाज़त करने और दीन व दुनियावी कामों को सही तरीके से निभाने की तौफ़ीक़ अता फरमाए।
वमा अलैना इल्ला अल्बलाग़।