शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने प्राकृतिक तरीकों से एक ऐसी दवा (जेल) तैयार की है जो त्वचा कैंसर को कुछ हद तक रोक सकती है. ओडिशा के ये दो शोधकर्ता एनआईटी राउरकेला के जीवन विज्ञान विभाग के शोध स्नातक डॉ. बिस्मिता नायक और डॉ. देबाशीष नायक हैं. डॉ. बिस्मिता नायक और डॉ. देबाशीष नायक के नेतृत्व में यह खोज की गई है.
कैंसर दुनिया भर में एक आम बीमारी बन गई है. हालांकि कैंसर कई प्रकार के होते हैं, लेकिन त्वचा कैंसर अनोखा है. त्वचा कैंसर त्वचा कोशिकाओं में उत्पन्न होता है, जो इसे अन्य आंतरिक अंगों में होने वाले कैंसर से अलग करता है. कैंसर एक जानलेवा और बेहद दर्दनाक बीमारी है. कैंसर-रोधी दवाओं के विकास के लिए कई वैज्ञानिक अध्ययन चल रहे हैं. प्राकृतिक उत्पादों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और नैनोकैरियर तकनीकों सहित विभिन्न स्रोतों से कैंसर-रोधी दवाओं के विकास के लिए सक्रिय वैज्ञानिक अनुसंधान चल रहा है. ऐसे में एनआईटी-राउरकेला के दो शोधकर्ताओं ने कमाल कर दिया है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, एनआईटी राउरकेला के दो शोधकर्ताओं ने त्वचा कैंसर के इलाज के लिए एक पर्यावरण-अनुकूल नैनो-फॉर्मूला विकसित और पेटेंट कराया है. यह पूरी तरह से प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल है. इसमें किसी भी केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है.एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं ने बताया कि इसके लिए कीमोथेरेपी की आवश्यकता नहीं होती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इसे विशेष रूप से कद्दू की पंखुड़ियों और रेशम के कीड़ों के रेशम प्रोटीन से पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से तैयार किया गया है. यह नॉन टॉक्सिक, नॉन इम्यूनोजेनिक, बायोडिग्रेडेबल, ब्लड कंपलीटेबल और एंटी माइक्रोबियल प्रॉपर्टी वाला मिश्रण, स्किन पर लगाने के लिए एक मरहम के रूप में तैयार किया गया है. जिससे इसे आसानी से लगाया जा सकता है. आजकल, कैंसर, एचआईवी, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर दुनिया भर में प्रमुख जानलेवा बीमारियों में गिने जाते हैं. कई बार, हमारी जीवनशैली में बदलाव के कारण ऐसे बदलाव देखे जा रहे हैं. हालांकि, विभिन्न प्रकार के कैंसरों में, गैर-मेलेनोमा त्वचा कैंसर (एनएमएससी) के मामलों में दुनिया भर में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है.एनआईटी-राउरकेला की एसोसिएट प्रोफेसर बिस्मिता नायक ने बताया कि इस अध्ययन की शुरुआत 2012 में की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य कद्दू की पंखुड़ियों (pumpkin flower petals) से सिल्वर नैनोकण (AgNPs) के synthesis की क्षमता का पता लगाना था, बिना किसी हानिकारक और खतरनाक केमिकल्स का उपयोग किए. उन्होंने आगे कहा कि प्राचीन काल से ही, कुकुर्बिता मैक्सिमा (कोहड़ा) भारतीय घरों में पाककला के व्यंजनों में एक प्रमुख स्थान रखता है. कुकुर्बिता मैक्सिमा जिसे कोहड़ा या कद्दू भी कहा जाता है भारत में खाने-पीने और औषधि के रूप में पुरानी परंपरा रखता है.