(रईस खान)
ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने अब फलस्तीन को एक आज़ाद रियासत के तौर पर तस्लीम कर लिया है। यह फ़ैसला उस लंबे और दर्दनाक तनाज़े में एक नया मोड़ है, जिसे दुनिया फलस्तीन–इस्राईल मसला कहती है।
इस तस्लीम से यह पैग़ाम साफ़ है कि अब दुनिया दो-मुल्क हल को ही मसले का इकलौता रास्ता समझ रही है। फलस्तीन की आवाज़ अब आलमी मंचों पर बुलंद होगी और इस्राईल पर भी दबाव बढ़ेगा कि वह बिलअख़िर बातचीत और अमन की कोशिशों को तरजीह दे।
मगर इस तस्लीम के साथ फलस्तीन पर भी ज़िम्मेदारियाँ हैं, इंतिख़ाबात कराना, हुकूमत और निज़ाम को मज़बूत बनाना, और हथियारबंद तन्ज़ीमों को हुकूमत से अलग रखना।
बावजूद इसके, मसला आसान नहीं। ज़मीनी हक़ीक़तें , क़ब्ज़ा, बस्तियाँ और बेएतिमादी अब भी क़ायम हैं। लेकिन यह क़दम एक नए दौर का आग़ाज़ कर सकता है। अगर सियासी इरादा और अमली कोशिश साथ दें, तो शायद यह तस्लीम ख़ून और आँसुओं से लिपटी सरज़मीं पर अमन की नयी सुबह साबित हो।