अब क्रिकेट, फिल्में हैं सांप्रदायिकता और चुनावी जंग के मैदान

Date:

(रईस खान)

भारत में क्रिकेट और सिनेमा हमेशा जनमानस की धड़कन रहे हैं। लेकिन पिछले दो दशकों में यह मनोरंजन मात्र नहीं रहे, बल्कि राजनीति और समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का बड़ा औज़ार बनते गए हैं। खासकर भारत–पाकिस्तान क्रिकेट मैचों ने “राष्ट्र बनाम दुश्मन” की छवि गढ़ी, जिसमें हार-जीत को हिंदू–मुस्लिम चश्मे से देखने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ी है।

भारत–पाक मैच केवल खेल नहीं रहे। स्टेडियम से लेकर सोशल मीडिया तक, एक-एक चौका और छक्का चुनावी नारों, पोस्टरों और टीवी डिबेट्स में ढलने लगे। विज्ञापन कंपनियां “राष्ट्रवादी” कैम्पेन चलाकर दर्शकों की भावनाओं को भुनाती हैं। यही नहीं, खाड़ी देशों में बसे भारतीय और पाकिस्तानी समुदाय भी मैचों के जरिए ध्रुवीकरण की राजनीति में खींचे जाते हैं।

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और भारत के क्रिकेट संगठनों पर लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि सरकारें उन्हें अपनी विदेश नीति और घरेलू राजनीति के हिसाब से इस्तेमाल करती हैं। यही नहीं, खाड़ी देशों की सत्ताएं, खासतौर पर सऊदी अरब और यूएई, अपने यहाँ होने वाले टूर्नामेंट को “सॉफ्ट पावर” के रूप में देखते हैं।

क्रिकेट ही नहीं, फिल्मों में भी “राष्ट्रवाद बनाम अन्य” का नैरेटिव तेज़ हुआ है। हालिया सालों में कुछ फिल्मों ने मुस्लिम समुदाय को नकारात्मक छवि में दिखाया और टिकट खिड़की पर सफलता पाई। इन फिल्मों की रिलीज़ से पहले ही सोशल मीडिया पर माहौल बना दिया जाता है, हैशटैग, बहिष्कार और समर्थन की जंग। नतीजा, दर्शक सिनेमाघर से बाहर भी बंट जाते हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस पूरे खेल का असली मक़सद वोट बैंक की राजनीति है। क्रिकेट मैचों और फिल्मों के बहाने धार्मिक पहचान को हवा दी जाती है। जब जनता भावनाओं में बंटती है, तब राजनीतिक दलों को चुनावी लाभ मिलता है।

आंकड़े कहते हैं कि 2023 एशिया कप और 2024 वर्ल्ड कप मैचों के दौरान सोशल मीडिया पर “भारत बनाम पाकिस्तान” ट्रेंड्स ने रिकॉर्ड तोड़े। 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रिलीज़ हुई राष्ट्रवादी फिल्मों ने ₹100–200 करोड़ का कारोबार किया और चुनावी माहौल में खूब चर्चा बटोरी। एक रिसर्च (2023) के मुताबिक, भारत–पाक मैचों पर ट्विटर-एक्स पर आई 45% पोस्टों में धार्मिक या राष्ट्रवादी टोन था।

क्रिकेट और फिल्में समाज को जोड़ने की ताकत रखते हैं, लेकिन जब इन्हें धार्मिक ध्रुवीकरण के औज़ार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, तो इसका असर सीधे समाज की एकता और लोकतांत्रिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। सवाल है, क्या दर्शक खुद तय करेंगे कि यह खेल और फिल्में मनोरंजन ही बने रहें, या राजनीतिक एजेंडे का शिकार?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_img

पॉपुलर

और देखे
और देखे

तारिक हलाल मीट्स: हलाल मीट की दुनिया में एक नया चैप्टर 

लंदन के बेथनल ग्रीन की हलचल भरी सड़कों पर,...

गुफ्तगू-2025 — रियल एस्टेट की नई राहें तलाशती लखनऊ की अहम बैठक

(रईस खान) लखनऊ के हरदोई रोड स्थित अज़्म इंटरप्राइजेज कार्यालय...

पीएमओ में हंगामा: मोदी के करीबी हीरेन जोशी ‘गायब’, प्रसार भारती चेयरमैन सहगल ने दिया इस्तीफा

(रईस खान) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय (पीएमओ) में अचानक...