(रईस खान)
“इल्म और हिकमत छोड़कर केवल सियासत से समाज मज़बूत नहीं बन सकता।” यह जुमला आज के हालात पर बिल्कुल सटीक बैठता है। भारतीय मुस्लिम समाज की पहचान केवल उसके मकबरों, मस्जिदों या मुग़लई खानपान से नहीं है। असली विरासत वह इल्म , हिकमत , तिजारत और तहज़ीब है जिसने सदियों तक उसे समाज का एक मजबूत और सम्मानित हिस्सा बनाए रखा। सवाल यह है कि क्या आज का मुस्लिम समाज इस विरासत को थामकर सियासत में नई बुलंदी हासिल करेगा या इसे छोड़कर महज़ वोट बैंक बनकर रह जाएगा?
शिक्षा, ताक़त की असली चाबी
किसी भी समाज की असली मजबूती उसकी तालीम से आती है। मुस्लिम समाज को आने वाले दस सालों में शिक्षा को अपना सबसे बड़ा एजेंडा बनाना होगा। हर मोहल्ले और कस्बे में ऐसे मॉडल स्कूल बनने चाहिए जहाँ आधुनिक साइंस और टेक्नोलॉजी भी पढ़ाई जाए और दीनी तालीम भी दी जाए।
जब नए डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पत्रकार और उद्यमी निकलेंगे तो समाज को न केवल रोज़गार मिलेगा बल्कि सियासत में भी मज़बूत पहचान बनेगी।
तहज़ीब, पहचान को ताक़त बनाना
मुस्लिम समाज की गंगा-जमुनी तहज़ीब उसकी सबसे बड़ी पूँजी है। मुशायरे, कव्वाली, उर्दू शायरी, सूफ़ी परंपरा और मुग़लई खानपान, ये सब केवल अतीत की बातें नहीं, बल्कि आज भी समाज की “सॉफ्ट पावर” बन सकते हैं।
जैसा कि कहा गया है, “जो तहज़ीब को छोड़ दे, वो अपनी पहचान खो देता है।” अगर पंजाब ने भांगड़ा और गुजरात ने गरबा को वैश्विक पहचान दिलाई है, तो मुस्लिम समाज भी अपनी कला और संस्कृति को गर्व से सामने रखकर सियासी ताक़त में बदल सकता है।
तिजारत,आत्मनिर्भरता की राह
आर्थिक मज़बूती के बिना सियासत स्थायी नहीं हो सकती। वक़्फ़ की अरबों की संपत्तियाँ अगर सही तरीके से इस्तेमाल हों, तो उनसे स्कूल, अस्पताल, स्किल डेवलपमेंट सेंटर और बिज़नेस हब बन सकते हैं।
मुस्लिम नौजवानों को छोटे कारोबार और स्टार्टअप की दुनिया में प्रोत्साहन देकर समाज को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। वहीं मुस्लिम महिलाओं को नर्सिंग, टीचिंग, आईटी और छोटे व्यापारों में आगे लाकर पूरे समाज को दोगुनी रफ़्तार से आगे बढ़ाया जा सकता है।
सियासत, सेवा और साझेदारी
मुस्लिम समाज की सियासत का भविष्य केवल पहचान की राजनीति में नहीं, बल्कि सेवा और साझेदारी में है। पंचायत से लेकर संसद तक ऐसे चेहरों को आगे लाना ज़रूरी है जो साफ-सुथरी छवि रखते हों और शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर काम करें।
दलितों, पिछड़ों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ गठबंधन बनाना ही असली हिकमत होगी। इससे मुस्लिम राजनीति अलग-थलग नहीं बल्कि भारत की मुख्यधारा की राजनीति में एक सकारात्मक ताक़त बनेगी।
चार स्तंभों पर खड़ी मजबूती
मुस्लिम समाज को आने वाले सालों में चार स्तंभों पर अपनी मजबूती खड़ी करनी होगी। इल्म , हिकमत , तिजारत और तहज़ीब ही सियासी मजबूत देंगे। यही वह फ़ॉर्मूला है जो मुस्लिम समाज को न सिर्फ़ उसकी विरासत बचाने में मदद करेगा बल्कि भारत की तरक़्क़ी में बराबरी का साझेदार भी बनाएगा।