खिराजे अक़ीदत-बुनकर समाज, आत्मनिर्भरता और मानवीय राजनीति के प्रतीक- जियाउर्रहमान अंसारी

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(रईस खान)
भारतीय राजनीति में ऐसे व्यक्तित्व विरले ही मिलते हैं जिन्होंने सत्ता को साधन बनाया, साध्य नहीं। पूर्व सांसद ज़ियाउर्रहमान अंसारी ऐसे ही जननेता थे, जिनकी राजनीति का केंद्र सत्ता नहीं, बल्कि समाज था। वे उन नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने बांगरमऊ और उन्नाव जैसे ग्रामीण क्षेत्रों को राष्ट्रीय चर्चा में लाने का कार्य किया। आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उस सोच को नमन है जो सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की प्रतीक थी।

उन्नाव जिले की मिट्टी से उठे ज़ियाउर्रहमान अंसारी ने राजनीति को जनसेवा का माध्यम बनाया। कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहते हुए उन्होंने लगातार उन मुद्दों को उठाया जो आम जनता, किसानों और कारीगरों के जीवन से सीधे जुड़े थे।लोकसभा के दौरान उनके द्वारा किए गए कई प्रश्न और वक्तव्य हैंडलूम, पावरलूम, सूत मूल्य नियंत्रण, और छोटे उद्योगों के संरक्षण से संबंधित रहे। उन्होंने कहा था, “जब तक देश के कारीगर सशक्त नहीं होंगे, तब तक आत्मनिर्भर भारत का सपना अधूरा रहेगा।” यह विचार उस दौर में आया जब देश में औद्योगीकरण की दौड़ तेज़ हो रही थी और छोटे कारीगर समुदाय हाशिये पर जा रहे थे।

अंसारी बिरादरी, जो परंपरागत रूप से बुनकरी से जुड़ी रही है, उनके जीवन का सामाजिक केंद्र थी। वे खुद को इस समाज का प्रतिनिधि नहीं, बल्कि “सेवक” मानते थे। उन्होंने बुनकरों के संगठन, शिक्षा और सरकारी सहायता योजनाओं में सहभागिता बढ़ाने के लिए लगातार काम किया। उनकी पहल पर हैंडलूम और लघु उद्योग से जुड़ी कई योजनाओं में सहकारी समितियों की भूमिका पर बल दिया गया। उन्होंने बुनकरों के लिए कच्चे माल, सस्ती बिजली और विपणन सहायता की व्यवस्था पर भी संसद में प्रश्न उठाए।

बांगरमऊ और उन्नाव, जिनसे उनका भावनात्मक रिश्ता था, उनके संसदीय कार्यों का केंद्र रहे। उन्होंने ग्रामीण सड़कें, लघु सिंचाई योजनाएँ, और शिक्षा-संस्थानों की स्थापना के लिए निरंतर प्रयास किया। उनका मानना था कि “छोटे कस्बों का विकास ही बड़े भारत का वास्तविक विकास है।” आज जब सरकारें क्लस्टर-आधारित औद्योगिक क्षेत्र विकसित कर रही हैं, तो यह सोच और भी प्रासंगिक प्रतीत होती है।

ज़ियाउर्रहमान अंसारी का व्यक्तित्व दृढ़ता और विनम्रता का अद्भुत संगम था। वे अपने विचारों में प्रगतिशील और व्यवहार में अत्यंत सरल थे।उनकी सभाओं में राजनीति नहीं, समाज सेवा की झलक मिलती थी। वे हमेशा कहते थे, “नेता का सबसे बड़ा पुरस्कार जनता का विश्वास है, न कि कोई पद या विशेषाधिकार।” उनके जीवन में यह वाक्य केवल शब्द नहीं,आचरण था।

आज जब ‘वोकल फ़ॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे नारे आत्मनिर्भरता की परिभाषा बन चुके हैं, तब यह याद रखना ज़रूरी है कि दशकों पहले ज़ियाउर्रहमान अंसारी जैसे नेताओं ने स्थानीय उत्पादन, कारीगरों के सम्मान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती की वकालत की थी।उनकी सोच आज भी नीति-निर्माताओं के लिए मार्गदर्शक बन सकती है, खासकर तब, जब भारत की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा सूक्ष्म और लघु उद्योगों पर आधारित है।

ज़ियाउर्रहमान अंसारी का जीवन यह संदेश देता है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि समाज सुधार का साधन भी हो सकती है। वे आज भी याद किए जाते हैं क्योंकि उन्होंने नारा नहीं, उदाहरण पेश किया। उनकी यौम ए वफ़ात हमें यह सोचने को प्रेरित करती है कि क्या हम अपने समाज के उन वर्गों के लिए उतना ही संवेदनशील हैं जितना वे थे?

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