क़ुरान और आधुनिक शिक्षा, वो बातें जो आज भी ज़िंदा हैं

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(रईस खान)
जब दुनिया में पहली बार इल्म की रोशनी फैली, तो उसका पहला हुक्म अल्लाह की किताब क़ुरान में आया, “पढ़ो, अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया।” यह वही वाक्य था जिसने जाहिलियत के अंधेरे में इंसान को सोचने, सीखने और समझने की राह दिखाई।

क़ुरान कोई सिर्फ़ धार्मिक किताब नहीं है, बल्कि यह एक ज़िंदगी की गाइड बुक है, जिसमें इंसान को यह बताया गया है कि दुनिया कैसे बनी, समाज कैसे चले, और इंसाफ़ किस तरह कायम हो। अगर गौर से पढ़ा जाए, तो क़ुरान में वो तमाम बातें मौजूद हैं जिन्हें आज हम आधुनिक शिक्षा के अलग-अलग विषयों के रूप में पढ़ते हैं।

विज्ञान और कुदरत की तालीम

क़ुरान बार-बार इंसान को सोचने के लिए कहता है, “क्या तुम आसमान और ज़मीन की रचना पर गौर नहीं करते?” यह दरअसल विज्ञान की बुनियाद है, सवाल करना, समझना और तजुर्बा करना।

क़ुरान में बताया गया कि “हमने आसमान को फैलाया और हम ही उसे फैलाने वाले हैं।” और आज वैज्ञानिक कहते हैं कि ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है।

इसी तरह क़ुरान में लिखा है ,“हमने हर चीज़ को पानी से ज़िंदा किया।” आज साइंस कहती है कि जीवन का मूल तत्व पानी है। यानी जो बातें आज वैज्ञानिक खोज रहे हैं, क़ुरान ने 14 सौ साल पहले कह दी थीं।

क़ुरान में बारिश, नदियों, बादलों और “समुद्र के चक्र’’ का ज़िक्र है, यह जल-चक्र का सबसे पुराना ज़िक्र माना जा सकता है। यहां तक कि इंसान के पैदा होने की प्रक्रिया का ज़िक्र भी बिलकुल वही है जो आज एम्ब्रायोलॉजी यानी भ्रूण-विज्ञान बताती है।

समाज और इंसाफ़ की तालीम

क़ुरान सिर्फ़ प्रकृति पर नहीं, बल्कि इंसान और समाज पर भी तालीम देता है। अल्लाह कहता है,“हमने तुम्हें क़बीलों और बिरादरियों में बाँटा ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो।” इसका मतलब यह नहीं कि कोई ऊँचा या नीचा है, बल्कि यह कि इंसानियत की असली पहचान आपसी इज़्ज़त और मोहब्बत है।

क़ुरान हर समाज के लिए यह नियम देता है, “अल्लाह इंसाफ़, नेकी और रिश्तेदारों को हक़ देने का हुक्म देता है, और ज़ुल्म से रोकता है।” अगर कोई देश या समाज इस एक आयत पर अमल कर ले, तो वहां से भ्रष्टाचार, अन्याय और नफ़रत खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी।

अर्थव्यवस्था और ईमानदारी की तालीम

क़ुरान में बार-बार कहा गया है, “अपने माल को नाजायज़ तरीक़े से मत खाओ।” यह बात आज के अर्थशास्त्र और व्यापारिक नैतिकता की बुनियाद है, कि कमाई सिर्फ़ ईमानदारी और इंसाफ़ से होनी चाहिए। ज़कात और सदक़ा का हुक्म इसीलिए दिया गया कि अमीरों का पैसा गरीबों तक पहुँचे, और समाज में आर्थिक संतुलन बना रहे। यह आज के “वेलफेयर इकॉनमी” का इस्लामी रूप है।

पर्यावरण और प्रकृति की हिफ़ाज़त

क़ुरान कहता है, “ज़मीन में फ़साद न फैलाओ जब अल्लाह ने उसे सुधार दिया हो।”आज की भाषा में यही पर्यावरण सुरक्षा है। क़ुरान सिखाता है कि पेड़-पौधों, पानी, हवा और जानवरों का भी हक़ है, क्योंकि यह सब इंसान के लिए अमानत हैं, मिल्कियत नहीं।

सोचने, समझने और सवाल करने की तालीम

क़ुरान में बार-बार कहा गया,“क्या वे सोचते नहीं? क्या उनके दिलों पर ताले लगे हैं?” यह इंसान को तर्क, विवेक और विचार की आज़ादी देता है।इस्लाम किसी को अंधी मान्यता नहीं सिखाता, बल्कि कहता है,“सोचो, तर्क दो, समझो और फिर मानो।” यही असली शिक्षा है, जो इंसान को जानवर से अलग बनाती है।

स्वास्थ्य और संतुलन की तालीम

क़ुरान सिखाता है,“खाओ और पियो, लेकिन फिज़ूलखर्ची मत करो।” यह आज की स्वास्थ्य शिक्षा की सबसे सरल और गहरी सीख है, संयम रखो, संतुलन में रहो।

इतिहास से सीखने की तालीम

क़ुरान कहता है, “धरती पर चलो फिरो और देखो कि पहले लोगों का अंजाम क्या हुआ।” यानी इतिहास सिर्फ़ कहानी नहीं, बल्कि सबक़ है। जो कौमें दूसरों की गलतियों से नहीं सीखतीं, वो वही गलती दोबारा करती हैं, और मिट जाती हैं।

क़ुरान का पैग़ाम यह है कि इल्म सिर्फ़ पढ़ाई नहीं, बल्कि सोच, अमल और इंसाफ़ की राह है। इसमें धर्म, विज्ञान, समाज, पर्यावरण, चिकित्सा,मनोविज्ञान सबका बीज मौजूद है।

आज जब दुनिया तेजी से बदल रही है, तो क़ुरान हमें याद दिलाता है, “जो सोचता है, वही बढ़ता है। जो सीखता है, वही इंसान बनता है।” क़ुरान की शिक्षा आज भी उतनी ही ज़िंदा है जितनी 1400 साल पहले थी, क्योंकि यह सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए इल्म और अमन की किताब है।

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