(रईस खान)
आज हम स्कूलों, यूनिवर्सिटियों और कॉलेजों की बात करते हैं, मगर क्या आपने सोचा है कि दुनिया की पहली “ओपन यूनिवर्सिटी” किसने बनाई थी।वो थी, पैग़ंबर मुहम्मद ﷺ की तालीम की जमात। न कोई बड़ी इमारत, न डेस्क-कुर्सियाँ, बस सादा फ़र्श, खुला आसमान,और दिल से सीखने वाले लोग।
रसूलुल्लाह ﷺ का तालीम देने का तरीका इतना असरदार था कि जंगली कबीलों को इंसाफ़पसंद समाज में बदल दिया। आपने तालीम को सिर्फ़ पढ़ने-लिखने तक नहीं रखा, बल्कि उसे ज़िंदगी का तरीका बना दिया।
इल्म की बुनियाद, प्यार और समझ से
आप ﷺ हमेशा कहते,“सबसे अफ़ज़ल अमल है इल्म हासिल करना।” लेकिन ये इल्म सिर्फ़ किताबों का नहीं,बल्कि अख़लाक़ और अमल का भी था।आप हर सवाल को सुनते, फिर सरल उदाहरण से जवाब देते। कभी किसी को नीचा नहीं दिखाया, बल्कि उसके दिल का दरवाज़ा खोलते। आप कहते, “जो नर्मी से पढ़ाएगा, उसके दिल में अल्लाह रहमत डालेगा।” यानी आपकी तालीम डर से नहीं, मोहब्बत से चलती थी।
औरतों की तालीम, बराबरी का हक़
जब उस दौर में औरत को पढ़ने की इजाज़त तक नहीं थी, आप ﷺ ने औरतों के लिए अलग तालीमी हलक़े बनाए। हज़रत आयशा रज़ि. खुद एक बड़ी अलिमा बनीं , सैकड़ों सहाबा उनसे हदीस और फिक़्ह सीखते थे। आप ﷺ ने फ़रमाया, “इल्म हासिल करना हर मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है।” यह वो इंकलाब था जिसने औरत को समाज की तालिबा और आलिमा बना दिया।
तालीम का मैदान, मस्जिद से बाज़ार तक
आप ﷺ की “क्लासरूम” सिर्फ़ मस्जिद नहीं थी।आप सड़कों, खेतों, घरों, बाज़ारों में भी इल्म बाँटते।आपका अंदाज़ यह था कि जो जहाँ है, वहीं से सीख ले। कभी आप खजूर के पेड़ की जड़ से उदाहरण देते, कभी आसमान के तारों से, हर चीज़ आपके लिए एक “ब्लैकबोर्ड” थी।
बच्चों और नौजवानों की तालीम
आप ﷺ बच्चों को प्यार से बुलाते, उनकी गलतियों पर हँसकर समझाते। कभी सज़ा नहीं देते थे, बल्कि अच्छाई की मिसाल बनकर सिखाते थे। एक बार एक बच्चे ने खजूर खा ली जो ज़कात की थी। आपने कहा, “यह तुम्हारे लिए नहीं था, मगर तुम नहीं जानते थे।” यानी सज़ा नहीं, सलीका सिखाया। इससे बच्चों में इल्म की चाह और भरोसा दोनों बढ़ता गया।
इल्म का असर, अँधेरे से उजाले तक
पैग़ंबर ﷺ की तालीम ने अरब की अंधेरी ज़मीन पर रोशनी फैलाई। जहाँ कभी अज्ञान, नफ़रत और कबीलाई जंगें थीं, वहाँ अब क़लम, इंसाफ़ और मोहब्बत की तहज़ीब थी।सिर्फ़ 23 साल में वो समाज ऐसा बना जहाँ क़ाज़ी, डॉक्टर, ताजिर, आलिम और सिपाही, सब इल्म और अमल में बराबर थे।
आप ﷺ ने कहा, “अल्लाह उस शख्स का दर्जा ऊँचा करता है जो इल्म सीखता है।” इसका असर ये हुआ कि मुसलमानों ने विज्ञान,चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, और तर्जुमा के नए दरवाज़े खोल दिए। बग़दाद, दमिश्क और कुर्तबा जैसे शहर ज्ञान के मरकज़ बन गए, जहाँ औरतें भी पढ़ाती थीं और मर्द भी सीखते थे।
आज का सबक
पैग़ंबर ﷺ की तालीम आज भी हमें यही सिखाती है, इल्म वह है जो दिल को नरम करे, अमल को बेहतर बनाए, और समाज को रोशन करे।आपकी यूनिवर्सिटी में दाख़िला आज भी खुला है, शर्त बस यही है कि हम अपने दिल को पढ़ने के लिए खोलें।