(शिबली रामपुरी)
बांगरमऊ, उन्नाव में शांति मिल मैदान की फ़िज़ाओं में नौ अक्टूबर की शाम को जब नात, ग़ज़ल और तरन्नुम की आवाज़ें गूंजीं, तो माहौल में मोहब्बत और एकता की ख़ुशबू घुल गई। अवसर था “एक शाम नेताजी के नाम” ऑल इंडिया मुशायरा व कवि सम्मेलन का, जो बांगरमऊ की ज़मीन पर ऐतिहासिक रूप से सफल रहा। इस कार्यक्रम ने जहां अदब की रौनक बिखेरी, वहीं समाजवादी आंदोलन की ज़मीन से उठे नेता जी को याद करते हुए राजनीतिक सौहार्द और साझा संस्कृति का शानदार पैग़ाम दिया।
मुशायरे में कई नामवर शायरों ने अपनी नज़्मों और ग़ज़लों के ज़रिए नेता जी को याद किया। मशहूर शायरा शबीना अदीब ने जब अपना पहला शेर पढ़ा – “जो सियासत में भी इंसानियत निभा ले जाए, वही सच में नेता जी कहलाए” – तो समूचा मैदान वाह-वाह की आवाज़ों से गूंज उठा। उनकी आवाज़ में दर्द भी था और मोहब्बत भी। उसके बाद हाशिम फिरोज़ाबादी ने अपने मख़सूस अंदाज़ में जो कलाम पेश किया, उसने महफ़िल में जज़्बातों का एक सैलाब ला दिया। शेर था , “वो चला गया जो हर ज़ुबान पर याद बन कर रहेगा, मुलायम था लहजा मगर असर लोहे-सा कर गया।”
रात बढ़ती गई और महफ़िल अपने उरूज पर पहुँची। सबा बलरामपुरी, डॉ. अजय अटल, आज़ाद प्रतापगढ़ी, शहज़ादा कलीम, यासिर सिद्दीकी और विकास बौखल जैसे शायरों ने भी अपने अशआर से शाम को यादगार बना दिया। हर शेर पर वाह-वाह और मुकम्मल की गूंज माहौल में रूहानी सुकून घोल रही थी।
कार्यक्रम में साहित्य, कला और सियासत का अनूठा संगम देखने को मिला। समाजवादी पार्टी के नेताओं ने कहा कि नेताजी की याद में ऐसे आयोजनों से समाज में मोहब्बत, भाईचारा और इंसानियत का पैग़ाम मज़बूत होता है। बांगरमऊ विधानसभा में पार्टी के कार्यकर्ताओं की बड़ी मौजूदगी ने भी यह संकेत दिया कि संगठनात्मक स्तर पर समाजवादी पार्टी यहां सक्रिय और मज़बूत हो रही है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे माननीय अरविंद कुमार सिंह ‘गोप’ जी, पूर्व कैबिनेट मंत्री, जिनकी मौजूदगी ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। मंच की अध्यक्षता माननीय शकील खान नदवी जी, प्रदेश अध्यक्ष समाजवादी अल्पसंख्यक सभा एवं पूर्व मंत्री ने की। उनके साथ मंच पर माननीय राजपाल कश्यप जी (प्रदेश अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ एवं पूर्व मंत्री), माननीय सुधीर कुमार रावत जी (पूर्व राज्य मंत्री), माननीय मुनीर अहमद जी (पूर्व राज्य मंत्री) और माननीय राजेश कुमार यादव जी (जिला अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी, उन्नाव) जैसे समाजवादी आंदोलन के वरिष्ठ चेहरों ने शिरकत की।
“एक शाम नेताजी के नाम” सिर्फ़ एक मुशायरा नहीं था, बल्कि यह उस तहज़ीब और विचारधारा का इज़हार था जो बांगरमऊ की मिट्टी में रची-बसी है। शेर, नज़्म और कविता के ज़रिये जब नेताजी के योगदान को याद किया गया, तो हर जुबान पर यही दुआ थी, “इरादे नेक हों, तो हर शाम यादगार बन जाती है।