हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल, विश्व प्रसिद्ध देवा मेला

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(फजलुर्रहमान)

उन्नाव। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के देवा शरीफ़ में स्थित सूफी संत हज़रत हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह विश्व प्रसिद्ध है। यह दरगाह गंगा-जमुनी तहज़ीब और हिंदू-मुस्लिम एकता की ऐसी मिसाल है, जो बरसों से अमन, मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम देती आ रही है। यहां हर धर्म और मज़हब के लोग, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, समान श्रद्धा के साथ हाज़िरी देने आते हैं और अपनी मन्नतें व दुआएं मांगते हैं।

हर साल अक्टूबर माह में हज़रत हाजी वारिस अली शाह की याद में एक विशाल देवा मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश के सबसे बड़े मेलों में गिना जाता है। इसमें देश-विदेश से लाखों की तादाद में जायरीन और श्रद्धालु शिरकत करते हैं।

देवा मेला अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। मेले के दौरान ऑल इंडिया मुशायरा, कवि सम्मेलन, कव्वाली, संगीत कार्यक्रम और नाट्य प्रस्तुतियां आयोजित की जाती हैं, जो इस मेले को एक अनूठा सांस्कृतिक संगम बनाती हैं।

मेले में सैकड़ों दुकानों की रौनक देखने लायक होती है। हस्तशिल्प, मिट्टी के बर्तन, घरेलू सामान, खिलौने और स्वादिष्ट देसी व्यंजन यहां आने वाले हर व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मनोरंजन के लिए सर्कस, मौत का कुआं, बैलगाड़ी और ऊंट दौड़, पतंगबाज़ी तथा वॉलीबॉल टूर्नामेंट जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ ही पशु मेला भी यहां का एक अहम आकर्षण होता है, जहां विभिन्न नस्लों के पशुओं की खरीद-बिक्री होती है।

इस वर्ष उर्स-ए-पाक की शुरुआत 8 अक्टूबर से हुई, जिसकी शुरुआत चादरपोशी की रस्म से की गई। 11 अक्टूबर की रात को समा और कव्वाली का आयोजन हुआ, जबकि 12 अक्टूबर की सुबह कुल शरीफ़ की रस्म अदा की जाएगी। उर्स के पूरे दौर में धार्मिक कार्यक्रमों के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन प्रतिदिन जारी रहेंगे।

देवा मेला हर साल यह संदेश देता है कि मोहब्बत, भाईचारा और इंसानियत ही असली मज़हब है। हज़रत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह आज भी उसी पैग़ाम को आगे बढ़ा रही है, जो सदियों पहले उन्होंने दिया था, “सबका मालिक एक है, और सब इंसान एक दूसरे के भाई हैं।”

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