अमन, इंसाफ़ और तरक़्क़ी की राह पर, महाराष्ट्र में अल्पसंख्यकों की आवाज़

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(निहाल सगीर)

महाराष्ट्र की गंगा-जमुनी तहज़ीब हमेशा से देशभर में एक मिसाल रही है, जहाँ अमन, भाईचारे और इंसाफ़ की परंपरा ने समाज को जोड़े रखा है। लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ती नफ़रत और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों ने इस साझा संस्कृति को चुनौती दी है। ऐसे माहौल में नागपुर से एक सकारात्मक पहल की ख़बर सामने आई, जब जमाअत इस्लामी हिन्द, महाराष्ट्र ज़ोन और फेडरेशन ऑफ़ महाराष्ट्र मुस्लिम्स के एक प्रतिनिधिमंडल ने महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री प्यारे ख़ान से मुलाक़ात की।

इस मुलाक़ात का मक़सद सिर्फ़ शिकायतें दर्ज कराना नहीं था, बल्कि राज्य में अमन, इंसाफ़ और सामाजिक संतुलन की बहाली के लिए ठोस और रचनात्मक सुझाव देना था। प्रतिनिधिमंडल ने श्री प्यारे ख़ान के सामने राज्यभर में हो रही घटनाओं का ब्यौरा रखते हुए यह बताया कि कैसे कुछ तत्व “गौ-रक्षा” और अन्य बहानों के ज़रिए समाज में नफ़रत का ज़हर घोल रहे हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि यदि इन घटनाओं पर समय रहते सख़्ती से रोक नहीं लगाई गई, तो भय और अविश्वास का माहौल गहराता चला जाएगा, जो न सिर्फ़ अल्पसंख्यकों के लिए बल्कि पूरे राज्य की शांति और विकास के लिए घातक साबित हो सकता है।

बैठक में यह बात भी उभरकर सामने आई कि अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए सरकारी योजनाएँ, जैसे प्रधानमंत्री का 15-सूत्रीय कार्यक्रम, ज़मीनी स्तर तक पूरी प्रभावशीलता से नहीं पहुँच पा रही हैं। ज़रूरत इस बात की है कि जिला स्तर पर सक्रिय अल्पसंख्यक कल्याण समितियाँ गठित की जाएँ, जो इन योजनाओं की निगरानी करें और लाभार्थियों तक उन्हें पहुँचाने में सेतु का काम करें।

श्री प्यारे ख़ान ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरता से सुना और भरोसा दिलाया कि आयोग की ओर से पहले से ही कई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे इन सुझावों को सरकार तक प्रभावी ढंग से पहुँचाएँगे और कोशिश करेंगे कि राज्य स्तर पर एक स्थायी मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया जाए, जो सीधे अल्पसंख्यक आयोग के संपर्क में रहकर काम करे।

प्यारे ख़ान ने मुलाक़ात के दौरान यह भी कहा कि मुसलमानों को इस नाज़ुक दौर में भावनाओं में बहने के बजाय संयम और सकारात्मकता के साथ समाज में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि “हमारी पहचान हमारी शांति और भलाई में है, नफ़रत के जवाब में नफ़रत नहीं, बल्कि इंसाफ़ और अच्छाई का जवाब ही हमें मज़बूत बनाएगा।”

इस रचनात्मक संवाद का माहौल यह एहसास दिलाता है कि बातचीत और आपसी समझ के ज़रिए ही समाज में स्थायी अमन और भरोसा स्थापित किया जा सकता है। प्रतिनिधिमंडल में शामिल अब्दुल हसीब भाटकर, शेख़ अब्दुल मजीब, फ़रीद शेख़, डॉ. अनवार और उमर ख़ान जैसे ज़िम्मेदार लोगों की यह पहल इस बात का प्रमाण है कि समाज के भीतर से भी नेतृत्व उभर रहा है, जो न सिर्फ़ समस्याओं की पहचान कर रहा है बल्कि उनके समाधान की राह भी सुझा रहा है।

नागपुर की यह मुलाक़ात, अपने भीतर एक नई उम्मीद समेटे हुए है, एक ऐसी उम्मीद जो बताती है कि महाराष्ट्र की गंगा-जमुनी तहज़ीब अब भी ज़िंदा है, और अगर मिलजुलकर कोशिश की जाए तो यह राज्य फिर से अमन, इंसाफ़ और तरक़्क़ी की राह पर मजबूती से आगे बढ़ सकता है।

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