हज़रत ख़दीजा रज़ि, जिनके घर को अल्लाह ने पहला मदरसा बना दिया

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(रईस खान)

अरब की रेत पर जब जहालत की आँधियाँ चल रही थीं,तब मक्का की एक औरत अपने इल्म, समझ और किरदार से इतिहास में रौशनी की तरह चमक उठी। वो थीं, हज़रत ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद रज़ियल्लाहु अन्हा। इस्लाम की पहली मोमिना, रसूलुल्लाह ﷺ की पहली अहलिया, और इल्म व तालीम की पहली शख़्सियत।

इल्म, जो तिजारत में ईमान बन गया

हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) अरब की सबसे समझदार और इल्म-याफ़्ता औरतों में से थीं। वो एक कामयाब ताजिरा (व्यवसायी) थीं, मगर उनका कारोबार सिर्फ़ माल का नहीं, अख़लाक़ का भी था। आप तिजारत को सीखने और सिखाने का जरिया मानती थीं। उनकी समझदारी, दूरदर्शिता और इंसाफ़ ने मक्का के मर्दों को भी हैरान कर दिया था।

आपने अपने कारोबार को ईमान के साथ जोड़ा, हर सौदे में सच्चाई, भरोसा और अमानत को तालीम बनाया। यानी उन्होंने दिखा दिया कि असली तालीम वह है जो कमाई को भी इबादत में बदल दे।

पहली तालीम, यक़ीन और हौसले की

जब रसूलुल्लाह ﷺ पर पहली वही (ईशवाणी) उतरी, तो आप घबराए हुए घर आए। उस वक्त दुनिया में पहली तालीम देने वाली वही थीं, हज़रत ख़दीजा (रज़ि.)। उन्होंने नबी ﷺ का हाथ थामा, और पूरे यक़ीन के साथ कहा, “ख़ुदा की क़सम, आप अपने रब के पैग़म्बर हैं। आप रिश्ते निभाते हैं, कमजोरों का सहारा बनते हैं, और किसी का हक़ नहीं मारते।” यह अल्फ़ाज़ सिर्फ़ तसल्ली नहीं थे, बल्कि ईमान की पहली तालीम थे। उन्होंने हमें सिखाया कि असली इल्म वही है जो मुसीबत में भी यक़ीन को मज़बूत रखे।

तालीम का नज़रिया, औरतों को इल्म और अख़लाक़ की बुलंदी देना

हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) उस दौर की पहली औरत थीं जिन्होंने अपनी दौलत, अपना वक़्त, और अपना इल्म इस्लाम की तालीम फैलाने में लगा दिया। आप औरतों को यह सिखाती थीं कि इल्म और इमान एक-दूसरे के साथी हैं। उन्होंने समाज को यह दिखाया कि एक पढ़ी-लिखी, समझदार औरत भी नबी की मददगार और उम्मत की रहनुमा हो सकती है। उनकी कोशिशों से कई औरतों ने इस्लाम कबूल किया, और उनकी दी हुई “तालीमी समझ” ने बीबी फ़ातिमा (रज़ि.) की परवरिश को मुकम्मल बनाया।

बीबी ख़दीजा, इल्म की वह मिसाल जो घर को मदरसा बना गईं

उनके घर में रसूलुल्लाह ﷺ की पहली तालीम हुई। वही घर इस्लाम की पहली “दारुल-इल्म” (मदरसा) बन गया। वहीं क़ुरान की पहली आयतें सुनी गईं, वहीं से इस्लामी समाज की नींव पड़ी। बीबी ख़दीजा (रज़ि.) ने बच्चों, नौकरों और आस-पास की औरतों को क़ुरान और ईमान की बातों से रौशन किया। वो कहती थीं, “इल्म वह अमानत है जो दिल में उतरती है, और जिसे खर्च करने से वह बढ़ती है।”

इल्म का असर, पीढ़ी दर पीढ़ी रोशनी

उनका असर उनके बच्चों और पूरी उम्मत में दिखा। बीबी फ़ातिमा (रज़ि.), इमाम हसन, इमाम हुसैन, सबकी तालीम की बुनियाद उसी इल्मी माहौल में पली। हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने साबित किया कि एक पढ़ी-लिखी, समझदार और नेक औरत पूरे समाज को इल्म की राह पर डाल सकती है। उनका हर अमल यह सिखाता है कि इल्म सिर्फ़ किताबों में नहीं, बल्कि रिश्तों में, हिम्मत में, और ईमान में छिपा है।

आज का सबक़

हज़रत ख़दीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) हमें यह सिखाती हैं कि तालीम का असली मक़सद रुतबा नहीं, असर है। जो इल्म इंसान को सच्चा, भरोसेमंद और रहमदिल बना दे, वही इल्म अल्लाह को पसंद है। अगर आज की औरत ख़दीजा की तरह इल्म और अमल को साथ लेकर चले, तो उसका घर भी “मदरसा-ए-नूर” बन सकता है, जहाँ से अगली नस्लें रौशनी लेकर निकलें।

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