आर्थिक संकट के दौर से गुज़रने को मजबूर हैं उर्दू पत्रकार

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(शिबली रामपुरी)

पत्रकारिता का क्रेज़ या फिर पत्रकारिता की दिलचस्पी इस हद तक है कि लोग पत्रकारिता करते समय कठिनाईयां बर्दाश्त कर लेते हैं लेकिन पत्रकारिता को छोड़कर वह कोई दूसरा काम नहीं कर सकते अधिकतर लोगों का तो यही हाल है. प्रिंट मीडिया का जो सुनहरा दौर था उसमें तो पत्रकारों के आर्थिक हालत काफी बेहतर थे लेकिन मौजूदा वक्त में तो हालात काफी खराब नजर आते हैं.
मुंबई में उर्दू मीडिया से जुड़े कई पत्रकारों से इस संबंध में बात हुई तो यही बात निकल कर सामने आई कि सबसे अधिक परेशानी के दौर से आज उर्दू मीडिया /अखबार से जुड़े पत्रकारों को गुजरना पड़ रहा है.
मैं अक्सर यह बात तजुर्बे के आधार पर लिखता भी रहा हूं कि ग्रामीण क्षेत्रों में जो पत्रकार हैं वह चाहे हिंदी के हो या फिर उर्दू के उनको आर्थिक संकट के दौर से बहुत ज्यादा गुजरने को मजबूर होना पड़ता है और पड़ रहा है. कुछ बड़े शहरों में पत्रकारिता करके वह अपना और अपने परिवार का गुजर बसर बेहतर तरह से तो कर लेते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पत्रकारिता करना जहां काफी कठिन है तो वहीं आर्थिक हालात का सामना भी पत्रकारों को लगातार करना पड़ रहा है.
बहरहाल बात उर्दू पत्रकारों की हो रही थी तो उर्दू पत्रकारों के सामने आज सबसे बड़ी समस्या रोजी-रोटी का संकट है और इस संकट से सिर्फ उर्दू पत्रकार ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार गुजरता है. यदि पत्रकार बीमार हो जाए तो फिर वह बेहतर तरह से अपना इलाज भी नहीं कर सकता है यह एक कड़वा सच है जिसका सामना अक्सर करना पड़ता है और ऐसी खबरें लगातार सामने आती हैं कि किसी पत्रकार के बीमार होने पर पत्रकारों के संगठन ने पैसा जमा करके उसकी आर्थिक मदद की. जो लोग वास्तविक तौर पर पत्रकार हैं और लंबे समय से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं और वह प्रिंट मीडिया से ताल्लुक रखते हैं तो आज प्रिंट मीडिया के पत्रकारों के क्या हालात हैं यह किसी से छुपा हुआ नहीं है . जब इस समस्या की बात आती है तो अक्सर लोग यह मांग करते हैं कि सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए यह बात सही है कि सरकारी स्तर पर ऐसे पत्रकारों की सहायता होनी चाहिए लेकिन जो पत्रकारों के बड़े-बड़े संगठन हैं उनको चाहिए कि वह भी ऐसे पत्रकारों के आर्थिक हालात मजबूत करने के बारे में गंभीरता से ध्यान दें और उनकी सहायता करें. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने के बावजूद भी आज आर्थिक संकट के दौर से पत्रकारों का गुजरना बेहद अफसोसनाक है.

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