(शिबली रामपुरी)
मुंबई के मुंबई मराठी पत्रकार संघ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी की प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया .जिसमे उन्होंने मौजूदा समय में पेश आई कई घटनाओं पर गहरा अफसोस जताया .प्रेस कांफ्रेंस में कहा गया कि देश में लोकतांत्रिक मल्यों, पारदर्शी शासन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बढ़ता दवाव है हरियाणा कैडर के आईपीएस अधिकारी वार्ड, पुरन कुमार की सत्य उन्होंने विभाग में व्याप्त अन्याय और जातीय दिखाई दे रहा है. जिससे गंभीर मानवीय और संवैधानिक संकट खड़े हो रहे हैं। इनका एक ताजा और दर्दनाक उदाहरण भेदभाव के खिलाफ साहसपूर्वक आवाज उठाई थी। उनकी अचानक हुई मौत ने शासन में पारदर्शिता, जवाबी न्याय व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इसी दौरान सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की घटना हुई, जिसके पीछे संबंधित व्यक्ति की दलित पहचान से जुडी नाराज़गी को कई विशेषज्ञों ने कारण बताया है। ये दोनों घटनाएँ देश में बढ़ते जातीय पूर्वाग्रह और लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं पर पड़ रहे दबाव के स्पष्ट उदाहरण हैं।
लद्दाख में भी इसी प्रकार का गंभीर प्रसंग सामने आया है। प्रसिद्ध शिक्षाविद और समाजसेवी डॉ. सोनम वांगचुक को केवल अपने लोगों के संवैधानिक अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के कारण गिरफ्तार किया गया है। शांतिपूर्ण आंदोलन के दौरान चार नागरिकों की मृत्यु हो गई, जिससे पूरा देश स्तब्ध है। यह घटनाक्रम साफ़ तौर पर दिखाता है कि सताधारी शक्तियाँ संवैधानिक आवाजों और जनता के अधिकारों को दबाने का प्रयास कर रही हैं।
लद्दाख के लोग वर्षों से संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत विशेष संरक्षण की माँग कर रहे हैं, जिससे उनकी जमीन, रोज़गार, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा हो सके। लेकिन उनकी मांगों को लगातार नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। डॉ. वांगचुक पर लगाए गए देशद्रोह के आरोप पूरी तरह से निराधार हैं, क्योंकि उनका संघर्ष हमेशा शांतिपूर्ण और संवैधानिक दायरे में रहा है।
हमारी मुख्य मांगे निम्नलिखित हैं
जातीय भेदभाव और अन्याय के खिलाफ ठोस और व्यापक नीति सरकार तुरंत लागू करे, ताकि हर नागरिक और अधिकारी को सुरक्षा का भरोसा मिले। यदि ऐसा अन्याय और क्रूरता जारी रही, तो जनता का देश के न्याय और संविधान पर से विश्वास उठ जाएगा; इसलिए दोषियों को तत्काल और सख्त सज़ा दी जाए। डॉ. सोनम वांगचुक की तुरंत और बिना शर्त रिहाई की जाए। आंदोलन के दौरान मारे गए चार नागरिकों की स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी न्यायिक जाँच हो। मीडिया द्वारा चलाए जा रहे अन्यायपूर्ण “मीडिया ट्रायल” और चरित्र हनन के खिलाफ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को हस्तक्षेप करना चाहिए। शासन प्रणाली में पारदर्शिता, कानून का राज और अधिकारियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। 15 दिनों में सार्थक और रचनात्मक संवाद शुरू किया जाए।इस दौरान शुऐब इनामदार.शाकिर शेख .अशरफ खान.सरफराज आरजू .डॉक्टर सलीम खान .एडवोकेट सुरेश माने आदि भी मुख्य तौर पर मौजूद रहे और उन्होंने भी अपने विचार व्यक्त किए .