(राजेश सिंह)
देश की जनता आज अडानी इलेक्ट्रिसिटी की लूट के जाल में फँसकर त्रस्त है, जहाँ बिजली जैसी जीवनरेखा को हथियार बनाकर जेबें काटी जा रही हैं। सन् 2020 से मुंबई में 48 हज़ार से अधिक शिकायतें दर्ज हुईं, जहाँ लॉकडाउन के नाम पर औसत बिलों के बहाने वास्तविक खपत से दुगुने-तिगुने बिल थोपे गए। महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (एम.ई.आर.सी.) ने 2018 में आदेश दिया था कि चार लाख उपभोक्ताओं को गलत औसत बिलों का रिफंड दिया जाए, लेकिन हुआ कुछ नहीं! यह लूट का सिलसिला जारी है, जहाँ गरीब घरों में एक पंखा और बल्ब चलाने पर भी लाखों का बिल आ जाता है।
उन्नाव के एक युवक की दर्दनाक कहानी बताती है कि 1.9 लाख रुपये के बिजली बिल से तंग आकर उसने अपनी जान दे दी। 2024 में मुंबई में स्मार्ट मीटर लगने के बाद बिलों में औसतन 50 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई। बी.ई.एस.टी. के उपभोक्ताओं ने शिकायत की कि मीटर लगाने की दर 1,200 से घटकर केवल 250 प्रतिदिन रह गई, क्योंकि लोग मीटर हटाने की धमकी दे रहे हैं। एक उपभोक्ता ने ‘एक्स’ पर लिखा, “बिना ए.सी. के बिल 10,000 पार, अडानी का जवाब, गर्मी की वजह!” यह सेवा नहीं, अत्याचार है, एक ऐसा सिस्टम जो गरीबों को कंगाली की ओर धकेल रहा है, जबकि अडानी का मुनाफा 2025 में 40 प्रतिशत बढ़ गया।
स्मार्ट मीटर को तकनीकी क्रांति बताकर थोपा गया यह जाल अब जनता का सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुका है। बिहार से गुजरात तक, जब स्मार्ट मीटर सर्वर से कनेक्ट नहीं होते तो औसत बिल थोप दिए जाते हैं, जो कुछ ही दिनों में हज़ारों में बदल जाते हैं। 2024 में तमिलनाडु सरकार ने अडानी का 82 लाख मीटर का टेंडर रद्द कर दिया, क्योंकि प्रति मीटर 10 हज़ार रुपये की ऊँची कीमत और संदिग्ध डिलीवरी शेड्यूल पाया गया। उत्तर प्रदेश में भी 25 हज़ार करोड़ रुपये का अडानी टेंडर रद्द हुआ, लेकिन केंद्र की आर.डी.एस.एस. योजना के तहत 25 करोड़ मीटर थोपे जा रहे हैं, जिससे हर उपभोक्ता पर लगभग 30 हज़ार रुपये का बोझ पड़ रहा है।
स्मार्ट मीटर से एक सप्ताह की देरी पर बिजली काट देना, यह तो खुला अत्याचार है! अडानी की नीति में डिस्कनेक्शन का प्रावधान है, लेकिन एम.ई.आर.सी. के नियमों के बावजूद बिना नोटिस के बिजली ठप कर दी जाती है। 2025 में आंध्र प्रदेश में गठबंधन सरकार ने 30 हज़ार रुपये प्रति मीटर का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल दिया, जिससे 100 प्रतिशत टैरिफ बढ़ोतरी हुई। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने 2024 में बी.के.सी. में मार्च निकाला, पर पुलिस ने रोका; फिर भी शिकायतें 48 हज़ार पार कर गईं। यह सिर्फ बिजली नहीं, बल्कि जीवन की डोर पर हमला है, बच्चों की पढ़ाई, मरीजों का इलाज, सब ठप!
भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारें अडानी के लिए दलाल बन चुकी हैं! 2020 से 2022 के बीच अडानी को 48 हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज मिले, जिनमें 40 प्रतिशत सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक से। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि वित्त मंत्रालय ने भारतीय जीवन बीमा निगम को अडानी में 3.9 अरब डॉलर का निवेश करने को मजबूर किया, जबकि विदेशी बैंक रिश्वत आरोपों के चलते पीछे हट रहे थे। 2025 में अडानी का कुल कर्ज 20 प्रतिशत बढ़कर 2.6 लाख करोड़ हो गया, जिसमें आधा अब भारतीय बैंकों से है।
बैंकों में जनता का जमा पैसा अडानी को लोन के रूप में दिया जाता है, लेकिन रिकवरी में ‘हेयरकट’ का खेल चलता है। कांग्रेस के अनुसार, 10 कंपनियों के 62 हज़ार करोड़ के दावों को अडानी ने मात्र 16 हज़ार करोड़ में सेटल कराया, यानी 74 प्रतिशत का नुकसान जनता का! एल.आई.सी. का निवेश मिडिल क्लास की सेविंग्स से गया, और फायदा कॉर्पोरेट्स को।
कोयला घोटाले ने इस लूट की आग में घी डाल दिया।फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अडानी ने इंडोनेशिया से 28 डॉलर प्रति टन पर लो-ग्रेड कोयला खरीदा और 92 डॉलर प्रति टन की कीमत पर एन.टी.पी.सी. को हाई-ग्रेड बताकर बेचा। नतीजा, प्रदूषण, महंगी बिजली और जनता की जेब पर भार। 2024–25 में मुंबई में टैरिफ 9.52 से बढ़कर 24.09 प्रतिशत तक पहुँच गया, एम.ई.आर.सी. ने अडानी के प्रस्ताव से भी ज़्यादा हाइक मंज़ूर किया!
अब सवाल है, सरकारें चुप क्यों हैं? क्योंकि यह ‘स्मार्ट’ लूट के साझेदार हैं!
देश की जनता को अब चुप नहीं रहना चाहिए। आंध्र से केरल तक, हर राज्य में जनता पर स्मार्ट मीटर का बोझ डाला जा रहा है। कांग्रेस, वाम दल और बी.एस.पी. जैसे दल विरोध कर रहे हैं, लेकिन असली ताकत जनता की एकजुटता में है।
उठो, जागो, और इस जनलूट के खिलाफ संघर्ष करो! भारत को अडानी-अंबानी, शाह-मोदी की ‘स्मार्ट लूट’ से बचाना ही अब असली आज़ादी की लड़ाई है।

