उड़ान  ___ मिसबह अशरफ की जिंदगी, जो असफलताओं से सीखकर ‘जार’ बना चुकी

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बिहार के नालंदा जिले के बिहार शरीफ जैसे छोटे शहर में पलने वाले मिसबह अशरफ की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगती।मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे मिसबह के पिता एक स्कूल शिक्षक थे, जिनकी जिंदगी संघर्षों से भरी थी। बचपन में मिसबह को अपने पिता को सड़क पर तेज कदमों से चलते देखना अजीब लगता था। एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया, “अब्बा, आप इतनी जल्दी क्यों चलते हो? धीरे चलो न!” पिता मुस्कुराए और बोले, “बेटा, अगर धीमे चलोगे तो लोग तुम्हें रौंद देंगे। जिंदगी में तेजी रखो, वरना पीछे छूट जाओगे।” यह ‘पीईपी टॉक’ मिसबह के जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गई। आज, जब वे भारत के सबसे तेजी से बढ़ते फिनटेक स्टार्टअप ‘जार’ के सह-संस्थापक हैं, तो यह पिता की सीख ही उनकी सफलता का मूल मंत्र लगती है।

मिसबह का सफर आसान नहीं था। नालंदा जैसे ऐतिहासिक जिले के इस शहर में, जहां प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय की यादें आज भी ताजा हैं, मिसबह का परिवार आर्थिक तंगी से जूझता रहा। पिता की शिक्षक की नौकरी से घर चलता था, लेकिन सपनों के लिए कुछ और चाहिए था। मिसबह ने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन पहले साल में ही पढ़ाई छोड़ दी। “डिग्री से ज्यादा जरूरी था कुछ बड़ा करने का जुनून,” वे कहते हैं। कॉलेज छोड़ते ही उन्होंने उद्यमिता की राह पकड़ी, लेकिन रास्ता कांटों भरा निकला।

पहली कोशिश थी ‘सिबोला’ (2013)। दिल्ली के आईआईटी के दोस्तों के साथ मिलकर मिसबह ने एक सोशल पेमेंट प्लेटफॉर्म बनाया। एमवीपी (मिनिमम वायबल प्रोडक्ट) तैयार किया, एंजेल फंडिंग जुटाई, लेकिन एक साल बाद सब कुछ बंद हो गया। वजह? पेमेंट लाइसेंस न मिलना, बड़े प्रतिस्पर्धियों का दबाव और बाजार की गति का गलत अनुमान। “मैंने सही भविष्यवाणी की थी कि बाजार कैसे बनेगा, लेकिन बदलाव की रफ्तार का आकलन गलत कर दिया,” मिसबह आज हंसते हुए बताते हैं। असफलता ने उन्हें तोड़ा, लेकिन पिता की सीख याद आई, धीमे मत चलो। उन्होंने सबक लिया: बाजार को समझो, लेकिन धैर्य रखो।

 

चार साल बाद, 2017 में आई दूसरी चुनौती, ‘मार्सप्ले’। फैशन और ब्यूटी के लिए कम्युनिटी-ड्रिवन कॉमर्स प्लेटफॉर्म। यह वेंचर तेजी से बढ़ा। 10 लाख से ज्यादा यूजर्स, दो फंडिंग राउंड्स। लेकिन 2020 में कोरोना महामारी ने सबकुछ उलट-पुलट कर दिया। फंडिंग रुक गई, रिटेल मॉडल की गति कम हो गई। आखिरकार, फरवरी 2021 में कंपनी को ‘फॉक्सी’ नामक ब्यूटी शॉपिंग ऐप को बेचना पड़ा। “हमने सोचा था कि कॉमर्स रिटेल से तेजी से शिफ्ट हो जाएगा, लेकिन रफ्तार का ओवरएस्टीमेट कर दिया,” मिसबह स्वीकार करते हैं। यह ‘असफलता’ नहीं थी, एक एग्जिट थी, लेकिन दर्द वैसा ही। दो वेंचर्स, दो सबक: उद्यमी आशावादी होते हैं, जो भविष्य को तेजी से लाना चाहते हैं, लेकिन लॉन्ग-टर्म विजन जरूरी है।

 

फिर भी, मिसबह रुके नहीं। मार्सप्ले बिकने के महज एक महीने बाद, मार्च 2021 में उन्होंने तीसरा वेंचर लॉन्च किया, ‘जार’। सह-संस्थापक निशचय अग्रवाल के साथ मिलकर बनाया गया यह ऐप फिनटेक की दुनिया में क्रांति लाया। विचार सरल था: भारत के आम आदमी को निवेश का डर भगाओ। “हम इस पीढ़ी को फिर से ‘पिगी बैंक’ की आदत डालना चाहते हैं, ताकि बचत की संस्कृति बने,” मिसबह कहते हैं। जार सोने में माइक्रो-इन्वेस्टमेंट पर फोकस करता है, भारतीयों का सबसे भरोसेमंद एसेट।

 

कैसे काम करता है जार? यूजर रोजाना महज 10 रुपये से शुरू कर सकते हैं। ऐप ट्रांजेक्शन को राउंड-अप करता है, जैसे 98 रुपये का रिचार्ज हो तो 2 रुपये ऑटोमैटिक सोने में इन्वेस्ट। यूजर कंट्रोल में है: डेली लिमिट सेट करो, कभी भी रोक दो, निकाल लो या फिजिकल गोल्ड में कन्वर्ट करो। कोई फीस नहीं, बस पार्टनर्स से कमीशन। लॉन्च के 12 महीनों में ही जार ₹2,463 करोड़ की वैल्यूएशन वाली कंपनी बन गई। आज, 2025 तक, इसने 1 करोड़ से ज्यादा यूजर्स जोड़े हैं, रोज 3 लाख ट्रांजेक्शन प्रोसेस होते हैं। फंडिंग में $111 मिलियन से ज्यादा जुटाए, टाइगर ग्लोबल, आर्कम वेंचर्स जैसे निवेशकों से।

 

20% मासिक ग्रोथ रेट के साथ, यह भारत का सबसे तेज बढ़ता सेविंग्स ऐप है। मिसबह की सफलता सिर्फ नंबर्स नहीं, लाखों जिंदगियों का बदलाव है। छोटे शहरों के युवा, जो कभी सोने के बिस्किट खरीदने का सपना भी न देख पाते, आज मोबाइल से रोज थोड़ा-थोड़ा जमा कर रहे हैं। “भारत का आम आदमी निवेश कर सकता है, बस आसान रास्ता चाहिए,” उनकी सोच यही थी। फोर्ब्स की 30 अंडर 30 लिस्ट (2023) में जगह, $20 मिलियन की नेट वर्थ, ये सब बोनस हैं। असली जीत तो वह जुनून है, जो असफलताओं से ताकतवर बना। आज बिहार शरीफ में मिसबह के पिता को देखकर लगता है, उनका बेटा सड़क पर नहीं, आसमान में तेजी से दौड़ रहा है। मिसबह की कहानी चीख-चीखकर बताती है: डिग्री न सही, हार न सही, बस जिद हो तो कोई सीमा नहीं रोक सकती। “उद्यमी बनो, लेकिन धैर्य रखो। असफलता अंत नहीं, शुरुआत है,” वे युवाओं से कहते हैं। बिहार के इस बेटे ने साबित कर दिया,सपना छोटे गली से निकलकर भी बड़ा साम्राज्य खड़ा कर सकता है।

(स्रोत: फोर्ब्स इंडिया, फिनोविंग्स, और विभिन्न इंटरव्यूज पर आधारित।)

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