मौलाना महमूद मदनी का सुप्रीम कोर्ट पर तीखा प्रहार, ‘जिहाद’ शब्द के दुरुपयोग पर केंद्र सरकार को लताड़

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जमीअत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने शनिवार को भोपाल में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार और मीडिया पर तीखे प्रहार किए। उन्होंने ‘जिहाद’ शब्द को बदनाम करने, अल्पसंख्यक समुदाय पर हो रहे कथित उत्पीड़न और न्यायिक स्वतंत्रता के हनन जैसे मुद्दों पर खुलकर बोला। उनकी यह स्पीच सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है, जहां फेसबुक पर साझा किए गए वीडियो को अब तक 3 लाख से अधिक व्यूज मिल चुके हैं।

बैठक में मौलाना मदनी ने मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि देश में एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, जबकि संविधान की रक्षा करने वाले संस्थान सरकार के दबाव में आ गए हैं। “सुप्रीम कोर्ट तभी सुप्रीम कहलाने लायक है जब वह संविधान को माने। बाबरी मस्जिद और तीन तलाक जैसे फैसलों के बाद कोर्ट का कैरेक्टर सवालों के घेरे में आ गया है,” उन्होंने जोर देकर कहा।

‘जिहाद’ को गाली बनाने का आरोप: लव जिहाद से थूक जिहाद तक

स्पीच का केंद्र बिंदु ‘जिहाद’ शब्द का दुरुपयोग रहा। मदनी ने आरोप लगाया कि इस्लाम के दुश्मन इस शब्द को हिंसा और आतंक से जोड़कर मुसलमानों की छवि खराब कर रहे हैं। कुरान में ‘जिहाद’ को फर्ज, समाज कल्याण और जुल्म के खिलाफ संघर्ष के रूप में वर्णित किया गया है, न कि हिंसा के। उन्होंने ‘लव जिहाद’, ‘लैंड जिहाद’, ‘एजुकेशन जिहाद’ और ‘थूक जिहाद’ जैसे शब्दों की कड़ी निंदा की, जो उनके अनुसार मुसलमानों की आस्था का अपमान हैं। “जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा। लेकिन दुश्मन इसे गाली बना देते हैं। सरकार और मीडिया के जिम्मेदार लोग बिना शर्म के इनका इस्तेमाल करते हैं,” मदनी ने कहा।

उन्होंने धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर भी सवाल उठाए। संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ये कानून मुसलमानों को डराते हैं, जबकि ‘घर वापसी’ के नाम पर जबरन धर्मांतरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। “एक तरफ धर्म बदलने पर सजा, दूसरी तरफ घर वापसी को खुली छूट। इससे मुसलमान सड़कों पर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं,” उन्होंने जोड़ा।

बुलडोजर से मॉब लिंचिंग तक

अल्पसंख्यक उत्पीड़न का माहौल
मदनी ने देश के मौजूदा हालात को “संवेदनशील और चिंताजनक” बताया। बुलडोजर एक्शन, मॉब लिंचिंग, वक्फ संपत्तियों पर कब्जा और मदरसों के खिलाफ नेगेटिव कैंपेन जैसे मुद्दों पर उन्होंने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, 2015 से 2023 के बीच गौ-रक्षा के नाम पर 50 से अधिक हत्याएं हुईं, जिनमें अधिकांश पीड़ित मुसलमान थे। उत्तर प्रदेश में 2022-2025 के दौरान 10,000 से अधिक संपत्तियां ध्वस्त की गईं, जो मुस्लिम बहुल इलाकों को प्रभावित करती हैं।

राजनीतिक तूफान: बीजेपी की नाराजगी, वीएचपी की मांग

स्पीच के तुरंत बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई। बीजेपी ने इसे “मुस्लिम युवाओं को भड़काने” वाला बयान करार दिया, जबकि विश्व हिंदू परिषद ने सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की मांग की। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के प्रमुख मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा, “करोड़ों मुसलमान इससे सहमत नहीं।”

मौलाना मदनी, जो दारुल उलूम देवबंद से शिक्षित हैं और 2006-2012 तक राज्यसभा सदस्य रहे, सद्भावना संसद जैसे अंतरधार्मिक मंचों पर सक्रिय रहे हैं। जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने स्पीच को अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा का आह्वान बताया है।

क्या यह विवाद ध्रुवीकरण को नई ऊंचाई दे सकता है, खासकर 2025 के राजनीतिक परिदृश्य में..? ज़ाहिर है आने वाले समय में ही तय होगा।

क़ौमी फरमान डिजिटल मीडिया नेटवर्क

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