हलीम अरबी ज़ुबान का लफ्ज़ है जिसका मिनिंग ” नरम” होता है
बर्रे सगीर की मशहूर डिश हलीम की लज़्ज़त में लश्करी मज़ा और शाही लज़्ज़त ओ नफ़ासत का जो अहसास है , वह किसी और में कहाँ ।
उर्दू के मशहूर शायर ” इब्न ए इंशा ” इस क़दर अडिक्ट थे कि सदर कराची के मारूफ हलीम फरोश ” घसीटे खान ” पर उन्होंने कॉलम तक लिखे थे ।
अरब में हलीम को ” हरीष ” , अनातोलिया , ईरान में ” डिस्क ” कहते हैं ,
मिडल ईस्ट से फौज और ताजिरो के साथ जब हरीष भारत आया तब यहाँ दालों और मसालों की भरमार थी , जिसके ऐड होने के बाद बर्रे सगीर का हलीम या दलीम तशकील हुआ ।
हरीष ऐसी डिश है जिसका जिक्र अरब कुकिंग की मकबूल और क़दीम किताब ” किताब अल तबिक ” में मिलता है ।
किताब अल तबिक को 10th सेंचुरी में इब्न ए सैयर अल बराक ने लिखा था ।
हलीम या हरीष की तशकील जंगी जरूरत के तहत हुई थी , जिसमें बड़ी फौज को अलग अलग रोटी , सालन , चावल बनाने के बजाए तमाम अनाजों और दालों में गोश्त को मिक्स करके इन्नोवेट किया गया ,,,
इस डिश ने फौज को भरपूर प्रोटीन , फाइबर , ताक़त और लज़्ज़त दिया ही साथ ही शाहाना नफासत भरी खुश्बू ने ऐसा जादू डाला कि यह डिश आजतक हर खास ओ आम के सर चढ़ कर बोलती है ।
हलीम के साथ बिरियानी का कॉम्बो उफ़्फ़ ❤️…….. अल्फाज़ नहीं बचते
प्रॉमिनेंट डिशेज के नाम पर वेज डिश ,, एक इल्यूजन , मोह माया है ब्रो .
तसनीम ग़ाज़ी