इस्लाम में नहीं है धर्मांतरण और न ही इसका कोई कॉन्सेप्ट, न मुसलमान बनने की कोई विधि-ज़फर सरेशवाला

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इस्लाम के नाम पर कुछ चीजें चल रही हैं। वह गलत हैं। जैसा कि हाल ही में यूपी में धर्मांतरण के नाम पर दो लोगों को पकड़ा गया है। इसके पहले भी उमर गौतम व अन्य को पकड़ा गया है। इस्लाम में कन्वर्जन नहीं है। इसका कॉन्सेप्ट ही नहीं है। ज्यादा से ज्यादा आप दावत दे सकते हैं। कुरान में कहा गया है कि तुम बेहतरीन उम्मत हो कि तुम लोगों के नफे के लिए पैदा किए गए हो। क्योंकि तुम लोगों को अच्छाई की दावत देते हो और बुराई से रोकते हो। इस्लाम में ये है कि ज्यादा से ज्यादा दावत दे सकते हो। ये सही है और ये गलत है।इस्लाम में अगर किसी को कोई बोलता है कि मुझे मुसलमान होना है। तो हो जाओ… ये तुम्हारे और खुदा के बीच की बात है। इस्लाम में ये है कि एक आदमी को विश्वास हो गया कि परमात्मा सिर्फ एक है। पैगंबर मोहम्मद(स.अ.) अल्लाह के मैसेंजर हैं। तो इस बात को मान लो। मुसलमान होने के लिए कोई सेरेमनी नहीं है।

ये जो देश में जगह-जगह धर्मांतरण करने वाला गैंग फैला हुआ है। ये इस्लाम में कुछ नहीं है। ये लोग आए कहां से हैं? अगर कोई लालच और धोखे से इस्लाम में आता है तो वह मुसलमान ही नहीं रहा। पहली बात ये है कि इस्लाम में धोखा मान्य ही नहीं है। अगर कोई लालच देता है कि तुम इस्लाम अपनाओगे तो तुम्हें ये मिलेगा वो मिलेगा… तो ये इस्लाम कहां से हुआ?

किसी को पैसे देकर अपने धर्म में लाना तो ये इस्लाम ही नहीं रहा है। ये सब गलत चल रहा है। पहली बात ये है कि धर्मांतरण क्रिश्चियन समुदाय में होता है। जब कोई दूसरे धर्म से क्रिश्चियन बनता है तो उसकी एक विधि होती है। इसको बैपटिज्म कहते हैं। ब्राह्मण में जनेऊ संस्कार होता है। इस्लाम में तो ऐसा कुछ है ही नहीं।

आज से 12-15 साल पहले वाशिंगटन डीसी की एक मस्जिद में था। जो कि व्हाइट से बिल्कुल सटी हुई है। मैं वहां नमाज पढ़ने गए थे। नमाज पढ़ने के बाद देखा कि दो गोरे आए हुए थे। उन्होंने इमाम से बात की वह खुद मुस्लिम होना चाहते हैं। इसपर मस्जिद के इमाम ने कहा कि ओके…। यानी इस्लाम में मुसलमान बनने की कोई विधि नहीं है।इस्लाम में ईमान है। खुदा बोलो, अल्लाह बोलो, भगवान बोलो या गॉड बोलो…। हिंदू जो है ये बोलता है कि ऊपर वाला, यानी ऊपर वाला कौन? वहां एक ही ईश्वर है। यानी जो मुसलमानों का भगवान अल्लाह है। वही हिंदू का भगवान है। वही क्रिश्चियन का गॉड है। कहने का मतलब ये है कि सब पर्सनल विश्ववास की बाते हैं। इसके बाद किसी भी तरह के नाम और धर्म बदलने की भी जरूरत नहीं है। ये दिखावे का विषय ही नहीं है।

उमर गौतम को बहुत अच्छी तरह जानता हूं। वह अभी धर्मांतरण को लेकर अंदर हैं। हालांकि, वह बहुत अच्छा आदमी है। वह कन्वर्टेड मुस्लिम है। मैंने साल 2008 में कहा था कि क्यों उमर भाई आप को क्यों किसी को मुस्लिम में कन्वर्ट करना है? ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस्लाम की बातें बता दो बस। इसके आगे किसको क्या बनना है क्या नहीं बनना है? ये सब आप क्यों करते हो?’ उमर को ये बातें तब कहीं थी, जब न बीजेपी की सरकारें थी न कोई इसको लेकर कोई कानून था।

मैं साल 1992 और 1993 की बात कर रहा हूं। मौलाना इनामुर हसन थे, जो तब्लीगी जमात में अमीर थे। अब वो तब्लीगियत में नहीं है। तब उनको ये भूत चढ़ा था कि गैर मुस्लिमों में तब्लीगियत करनी चाहिए। तब मैं 26-27 साल का था।

दिल्ली के निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात का मर्कज है। उस वक्त उसके जो अमीर थे, मौलाना इनामुर हसन साहब उन्होंने बोला कि पहले अपने जिस्म में तो इस्लाम ले आओ… हमारे अंदर तो इस्लाम है नहीं। आप की आँख का इस्तेमाल गलत हो रहा है। आप गलत देख रहे हो, गलत सुन रहे हो। आपके हाथ का गलत इस्तेमाल हो रहा है। झूठ हमारी जुबान से निकलता है। धोखा हम देते हैं। पहले हम तो मुसलाम बनें। जिस दिन मेरी जिंदगी और करेक्टर बन जाएगा। उसे देखकर लोग कहेंगे कि ये कौन है?

मौलाना हसन साहब ने ये भी कहा कि हमको गैर मुसलमानों को तब्लीगियत में लाने का काम नहीं करना है। उन्होंने गैर मुस्लिम को तब्लीगियत करने से भी रोक दिया था। उन्होंने कहा कि पहले मुसलमान तो सही मायने में मुसलमान बन जाए।

यदि और पीछे जाएं तो सन 1946 में जब पाकिस्तान बनने वाला था। तब उस जमाने के बहुत बड़े इस्लामिक स्कॉलर मौलाना यूसुफ साहब थे। जो इसके खिलाफ थे। जो ये कहते थे कि भाई पहले 2X6 के जिस्म में इस्लाम लाओ पहले। फिर मुल्क में इस्लाम लाना। 2X6 के जिस्म में इस्लाम लाने का मतलब ये है कि क्या झूठ तुम्हारी जिंदगी से निकला? धोखा क्या तुम्हारी जिंदगी से निकला? चोरी निकली, गलत निगाह से देखना निकला… तो पहले अपने 2X6 के जिस्म को तो ठीक कर बाद में मुल्क में इस्लाम लाने की बाद करना।

अपनी जिंदगी में इस्लाम तो लाना नहीं है। झूठ भी तुम बोल रहे हो, दोखा भी तुम दे रहे हो। चोरी भी तुम कर रहे हो, मिलावट भी कर रहे हो। फिर अपने को कहते हो तुम मुसलमान हो। इसलिए पहले अपनी जिंदगी में इस्लाम लाओ, मुल्क में तो अपने आप आ जाएगा। इसका उदाहरण पड़ोसी देश है। पाकिस्तान मुल्क पूरी तरह फेल हो गया। इस्लाम तो कुछ आया नहीं है।

इसलिए इसका साफ मतलब है कि धर्मांतरण जो है, इसका कॉन्सेप्ट इस्लाम में नहीं है। इस्लाम में दावत है। लोगों को दावत दो, सही कही, अच्छाई की, लोगों को बुराई से रोकना, लोगों को अच्छाई की दावत देना ये इस्लाम में है।

(लेखक मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व चांसलर हैं) साभार इंडिया टीवी

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