(रईस खान)
कुर्सी पर बैठने से लोग बड़ा बनते हैं या बड़ा बनने के बाद दूसरों को उस कुर्सी का मान देना ही असली बड़प्पन है — इस सवाल का भावुक जवाब हाल ही में सामने आया, जब थानेदार शबाना आजमी ने अपने माता-पिता और परिजनों को थाने बुलाकर उन्हें अपनी कुर्सी पर बैठाया और परिवार के प्रति सम्मान जताया।
शबाना ने इस मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं, जिनमें उनके माता-पिता गर्व से थाने की कुर्सी पर बैठे नज़र आ रहे हैं, और उनके चेहरे पर संतोष और भावनात्मक जुड़ाव की झलक देखी जा सकती है। यह क्षण पुलिस की कठोर छवि के बीच एक मानवीय तस्वीर पेश करता है, जो समाज में सकारात्मक संदेश दे रहा है।
हालाँकि, कुछ हलकों में इसे पुलिस मैन्युअल के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है, और DIG स्तर पर इस पर विचार-विमर्श की बात भी सामने आ रही है। लेकिन आम जनता और पुलिस महकमे के कई अधिकारियों ने इसे एक साहसिक और सजीव उदाहरण बताया है — जिसमें एक पुलिस अधिकारी ने यह दिखाया कि कुर्सी पर बैठाने से पहले अपनों को दिल में बैठाना ज़रूरी होता है।
शबाना आजमी ने न केवल एक अफसर के तौर पर बल्कि एक बेटी, पत्नी और माँ के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए यह स्पष्ट किया कि वर्दी के पीछे एक संवेदनशील इंसान भी होता है जो रिश्तों को निभाना जानता है।