(रईस खान)
सहारनपुर की ग्लोकल यूनिवर्सिटी के संस्थापक हाजी इकबाल और उनके चार बेटों जावेद, अफजाल, अलीशान और वाजिद को सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में मिली जमानत ने न सिर्फ कानूनी, बल्कि सियासी और मज़हबी सवाल भी खड़े किए हैं। अवैध खनन, फर्जी डिग्रियां और संपत्ति हड़पने के इल्ज़ामात ने इस परिवार को चर्चा में ला दिया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 4400 करोड़ की संपत्ति कुर्क की, मगर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मुकदमों को खारिज कर जमानत दी। क्या ये मामला सिर्फ कानूनी है, या इसके पीछे भेदभाव की सियासत है? ये सवाल मुस्लिम लीडरशिप और तालीम के लिए अहम सबक देता है।
मुस्लिम लीडरशिप को चाहिए कि वो सियासत में पारदर्शिता लाए। अगर इल्ज़ामात गलत हैं, तो कानूनी लड़ाई और सबूतों से जवाब देना होगा। अगर गलतियां हुई हैं, तो उनसे सबक लेकर सुधार जरूरी है। हाजी इकबाल का मामला दिखाता है कि कोर्ट से हक हासिल किया जा सकता है, मगर इसके लिए एकजुट और तार्किक सियासत चाहिए। समाज को जोड़ने वाली लीडरशिप ही भरोसा जीत सकती है।
ग्लोकल यूनिवर्सिटी जैसे इदारे तालीम का ज़रिया बन सकते थे, मगर फर्जी डिग्रियों के इल्ज़ाम ने साख को ठेस पहुंचाई। मुस्लिम लीडरशिप को साफ-सुथरे इदारे बनाने होंगे। साइंस, टेक्नोलॉजी और बिजनेस जैसे कोर्सेज पर ज़ोर देकर नौजवानों को रोज़गार के काबिल बनाना होगा। सरकारी मदद लेते वक्त भेदभाव से बचने के लिए पॉलिसी और कानूनी स्तर पर काम करना ज़रूरी है।
अगर सरकारी कार्रवाई में भेदभाव है, तो इसका मुकाबला कोर्ट में और समाज में ठोस तर्कों से करना होगा। मुस्लिम कम्युनिटी को अपने इदारों को इतना मज़बूत करना चाहिए कि वो ऐसी कार्रवाइयों का डटकर सामना कर सकें।
ग्लोकल यूनिवर्सिटी का मामला एक सबक है। मुस्लिम लीडरशिप को इमानदारी, मेहनत और एकजुटता से काम करना होगा। क्वालिटी तालीम और सही सियासत ही कम्युनिटी को ताकत दे सकती है। सहारनपुर के इस केस से हमें ये सीख मिलती है कि हक की लड़ाई कानून और ईमान से जीती जा सकती है।

