जमीयत उलेमा हिन्द के नेता मौलाना महमूद मदनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर कोई विदेशी यहां पाया जाए, तो उन्हें बाहर किया जाए, हमारी संवेदना उनके साथ नहीं है, लेकिन जो भारत के नागरिक बेदखल किए गए हैं, उन्हें फिर से बसाया जाए। जहां पर बेदखली अपरिहार्य हो, वहां सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार कार्रवाई की जाए और मानवीय संवेदना को प्राथमिकता दी जाए। विदेशियों के विरुद्द भी विधि संगत कार्रवाई होनी चाहिए। मौलाना मदनी ने उदाहरण देते हुए बताया कि व्यवस्था से बाहर किया गया अच्छा काम भी जवाबदेही योग्य और अपराध बन जाता है।
उन्होंने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति ने असम में जारी उत्पीड़न और दमन को लेकर मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी और यह मांग एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा संवैधानिक अधिकार है। हमने इस अधिकार का प्रयोग किया है और आगे भी करते रहेंगे। हमें किसी भी धमकी की परवाह नहीं है, हालांकि दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मुख्यमंत्री जैसे उच्च पद पर आसीन व्यक्ति कहता है कि वह ‘मुझे बांग्लादेश भेज देंगे’। मैं कल से असम में हूं, अगर वह चाहें तो मुझे बांग्लादेश भेज दें। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब मेरे जैसा व्यक्ति, जिसके पूर्वजों ने स्वतंत्रता संग्राम में 6 अलग-अलग जेलों की यातनाएं सहन कीं और दशकों तक कुर्बानियां दीं, उसके बारे में यह कहा जा सकता है, तो आम मुसलमानों के प्रति उनका रवैया कैसा होगा?जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने असम की राजधानी गुवाहाटी के होटल आरकेडी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए राज्य में हुई हालिया कार्रवाइयों पर गहरी चिंता और खेद व्यक्त किया। इसके साथ ही कहा कि यह कार्रवाइयां न केवल मानवीय सिद्धांतों के विरुद्ध हैं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी उल्लंघन हैं।