सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगा दी-जानिए क्या हैं यह प्रावधान और इससे जुड़ी बारीकियां

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वक्फ क्या है? 

वक्फ एक इस्लामी परंपरा है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी चल/अचल संपत्ति (जमीन, इमारत, दुकान आदि) समाज या धार्मिक कार्यों के लिए ‘अल्लाह के नाम’ समर्पित कर देता है। इस संपत्ति की देखरेख वक्फ बोर्ड करता है।

वक्फ संपत्ति क्या है?

वक्फ संपत्ति वह संपत्ति होती है जिसे कोई व्यक्ति (आम तौर पर मुसलमान) अपनी चल या अचल संपत्ति (जैसे ज़मीन, मकान, दुकान, खेत, पैसा आदि) समाज, धर्म, शिक्षा, ग़रीबों की मदद या धार्मिक स्थानों के रख-रखाव के लिए ‘अल्लाह के नाम’ हमेशा के लिए समर्पित (Dedicate) कर देता है।

Waqf की 1.2 लाख करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी

अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने 2022 में लोकसभा में जानकारी दी थी जिसके अनुसार वक्फ बोर्ड के पास 8,65,644 एकड़ अचल संपत्तियां हैं। वक्फ की इन जमीनों की अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपए है। यह संपत्ति इतनी ज्यादा है कि सेना और रेलवे के बाद वक्फ के पास सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी है।

ये हैं खासियतें-

  • एक बार संपत्ति वक्फ़ कर दी गई तो उसे वापस मालिक या उसके वारिस नहीं ले सकते।
  • गैर-हस्तांतरणीय (Non-transferable)
  • वक्फ संपत्ति न बेची जा सकती है, न गिरवी रखी जा सकती है, न दान दी जा सकती है।
  • वक्फ संपत्तियों की देखभाल और उपयोग का प्रबंधन वक्फ़ बोर्ड करता है (राज्य या केंद्रीय स्तर पर)।

इसके उद्देश्य क्या हैं-

  • धार्मिक कार्य (जैसे मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसा, दरगाह की देखभाल)
  • सामाजिक कार्य (जैसे अस्पताल, स्कूल, अनाथालय, ग़रीबों की मदद)

क्या हैं मुस्लिम संगठनों की आपत्तियां, तर्क और चिंताएं

कुछ मुस्लिम संगठनों ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों का विरोध किया है, जिसे लेकर लिए कुछ चिंताएं जाहिर की गई हैं।

धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन

संगठन कहते हैं कि वक्फ़ संपत्ति और वक्फ़ बोर्ड का प्रबंधन एक धार्मिक न्याय-क्षेत्र है, जिस पर समुदाय की अपनी पारंपरिक भूमिका होनी चाहिए। नए संशोधन से सरकार का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा।

संवैधानिक अधिकारों का हनन

संगठन दावा करते हैं कि अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है जो धर्म की आज़ादी और धार्मिक/चैरिटेबल संस्थाएँ स्थापित करने व उन्हें प्रबंधित करने का अधिकार देते हैं।

सूचना और परामर्श की कमी

कुछ संगठनों ने ये भी कहा है कि संसद की प्रक्रिया में मुसलमानों और वक्फ़ प्रबंधन निकायों की चिंताओं को पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। जागरूकता और सुझावों को शामिल करने की बजाय अधिनियम पारित किया गया।

वक्फ के मामलों में विधि-विधान और न्यायपालिका को कम करके कार्यपालिका तथा अधिकारी-नियुक्तियों को बड़ी शक्तियाँ देना, धार्मिक संस्थाओं की आजादी को प्रभावित करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगा दी जिनमें यह प्रावधान भी शामिल है कि केवल वे लोग ही किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में दे सकते हैं जो पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पूरे कानून पर स्थगन से इनकार कर दिया। जानिए वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या-क्या बदला…?

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025, पुराने वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करके वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को अधिक आधुनिक, पारदर्शी और जवाबदेह बनाने का प्रयास करता है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है, जिससे कानूनी और राजनीतिक विवाद पैदा हो गए।

केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल को अधिनियम को अधिसूचित किया था। इससे पहले पांच अप्रैल को इस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मुहर लगाई थी।

लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमश: तीन और चार अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को पारित किया था। प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा, ‘हमने कहा है कि हमेशा पूर्व धारणा कानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है और हस्तक्षेप केवल दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में किया जा सकता है।’

कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों की स्थिति पर निर्णय करने के लिए जिलाधिकारी को दी गई शक्तियों पर भी रोक लगा दी और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम भागीदारी के विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 20 में से 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए और राज्य वक्फ बोर्डों में 11 में से 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में क्या है 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है, ‘किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति वक्फ के रूप में देने से पहले, पिछले पांच वर्षों से मुस्लिम धर्म का अनुपालन करना अनिवार्य है (धारा 3(आर), इस पर तब तक के लिए रोक लगा दी गई है जब तक राज्य सरकारें यह जांचने के लिए नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति मुसलमान है या नहीं। ऐसे किसी नियम/व्यवस्था के बिना, यह प्रावधान अधिकार के मनमाने प्रयोग को बढ़ावा देगा।’

एक अति महत्वपूर्ण हस्तक्षेप धारा 3 सी के संबंध में आया जिसमें वक्फ संपत्तियों की स्थिति का पता लगाने के लिए निर्दिष्ट सरकारी अधिकारियों को अधिकार प्रदान किए गए हैं।

पीठ ने कानून की धारा 3सी (2) के एक प्रावधान पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया है कि किसी संपत्ति को तब तक वक्फ नहीं माना जाएगा जब तक कि किसी सरकारी अधिकारी की रिपोर्ट में यह पुष्टि नहीं हो जाए कि कोई अतिक्रमण नहीं है।

इसमें धारा 3सी(3) के क्रियान्वयन पर भी रोक लगा दी जिसमें अधिकारी को किसी संपत्ति को सरकारी घोषित करने और उसके राजस्व रिकॉर्ड बदलने का अधिकार प्रदान किया गया है।

आदेश में धारा 3सी(4) पर भी रोक लगाई गई है जिसमें यह अनिवार्य किया गया है कि राज्य सरकार अधिकारियों के निष्कर्ष के आधार पर वक्फ बोर्ड को उसके रिकॉर्ड सही करने का निर्देश देगी।

कोर्ट ने कहा, ‘जिलाधिकारी को अधिकारों को तय करने की अनुमति देना शक्तियों के विभाजन के विरुद्ध है, कार्यपालिका को नागरिकों के अधिकार तय करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक वक्फ न्यायाधिकरण द्वारा धारा 83 के तहत संपत्ति के स्वामित्व पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता है, तथा उच्च न्यायालय के समक्ष अपील नहीं हो जाती है, तब तक न तो वक्फ के कब्जे और न ही उसके अभिलेखों में कोई छेड़छाड़ की जाएगी।

हालांकि, जांच लंबित रहने के दौरान इस तरह की संपत्तियों में किसी तीसरे पक्ष को अधिकार नहीं दिए जा सकते।वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम भागीदारी पर पीठ ने प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया लेकिन सीमाएं तय कर दीं।

मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEO) की नियुक्ति से संबंधित धारा 23 को रद्द नहीं करते हुए, पीठ ने कहा, ‘जहां तक संभव हो, सीईओ, जो बोर्ड का पदेन सचिव भी है, को मुस्लिम समुदाय से नियुक्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए।’

हालांकि, उसने वक्फ के पंजीकरण को अनिवार्य करने वाले प्रावधान में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और टिप्पणी की कि यह कोई नई आवश्यकता नहीं है और यह 1995 और 2013 के पहले के कानूनों के तहत मौजूद थी।

अधिनियम के अनुसार, वक्फ किसी मुसलमान द्वारा धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों, जैसे मस्जिद, स्कूल, अस्पताल या अन्य सार्वजनिक संस्थानों के निर्माण के लिए किया गया दान है। इसमें कहा गया है, ‘वक्फ की एक और विशिष्ट विशेषता यह है कि यह अविभाज्य हैअर्थात इसे बेचा नहीं जा सकता, उपहार में नहीं दिया जा सकता, विरासत में नहीं दिया जा सकता या किसी पर भार नहीं डाला जा सकता।’

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