हमकलाम–मायावती की रैली का खेल, सियासत में नई चाल या पुराना जादू ?

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(रईस खान)
लखनऊ की धरती पर बुधवार को मायावती की गरज सुनाई दी। बहनजी मंच पर आईं, जनता जुटी, नारे लगे, लेकिन इस बार मामला सिर्फ़ जोश का नहीं था, यह रैली एक इशारा थी, एक सियासी चाल थी।

सपा-कांग्रेस पर वार, बीजेपी पर प्यार

मायावती ने भाषण में सपा और कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। कहा , “इन पार्टियों ने दलितों और पिछड़ों को सिर्फ़ इस्तेमाल किया।”पर जब बारी बीजेपी की आई, तो सुर कुछ बदले-बदले लगे।उन्होंने योगी सरकार की तारीफ़ कर दी कि उसने उनके बनाए स्मारकों की देखभाल की। अब सवाल उठता है, क्या बहनजी वाकई ‘बीजेपी से भिड़ने’ आई थीं या ‘इशारों में मेल’ दिखाने?

जनता ने खेल पकड़ लिया

मायावती का असली निशाना शायद सपा है।2027 का चुनाव नज़दीक है और बीएसपी जानती है कि अगर सपा की जमीन खिसकी, तो उसका फायदा सीधे-सीधे बहनजी को मिलेगा। यानी बीजेपी से लड़ाई नहीं, सपा का वोट काटो और तीसरी ताकत बनो,यही खेल है।

नई पीढ़ी की लॉन्चिंग

मंच पर आकाश आनंद की मौजूदगी भी चर्चा में रही। मायावती ने साफ़ किया कि अब पार्टी में नई पीढ़ी को आगे लाया जाएगा। मतलब ये कि बीएसपी अब “बहनजी की पार्टी” नहीं, बल्कि “परिवार और पीढ़ी की पार्टी” बनने की राह पर है। रैली के मंच से आकाश की एंट्री, एक नए दौर की शुरुआत है।

जनता पूछ रही है, भरोसा किस पर करें?

बीएसपी ने पिछले कुछ चुनावों में कई बार “अकेले लड़ने” की बात कही, पर नतीजा सबको याद है। अब जनता यह तय नहीं कर पा रही कि बीएसपी वाकई विपक्ष है या बीजेपी की ‘छुपी सहेली’। क्योंकि बातों में अब सपा पर वार ज़्यादा है, बीजेपी पर गुस्सा कम।

बहनजी का खेल, बड़ा लेकिन जोखिम भरा

सियासत में मायावती को कम नहीं आंका जा सकता। वो चाल चलती हैं तो सोचकर चलती हैं। पर यह चाल दोधारी तलवार है, अगर जनता ने इसे “साफ़ सोच” समझा, तो बीएसपी की वापसी तय, और अगर “छल” समझा, तो रैली की भीड़ बस फोटो तक ही सिमट जाएगी।

निचोड़ यही है कि मायावती की यह रैली सिर्फ़ शो नहीं थी,यह एक राजनीतिक संदेश था। पर अब देखना यह है कि जनता इसे “संघर्ष की पुकार” मानती है या “सियासत की चाल

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