(अज़ीज़ बर्नी)
दरअसल….आराम आराइश की जिंदगी और अपनी पसंद का लाइफ स्टाइल अपनों के दरम्यान बड़ा फासला बना देता है आज की तर्जे जिंदगी खुद को अपनी जात तक इस दर्जा महदूद कर देती है कि हम अपने परिवार में रहकर भी अपने परिवार से दूर हो जाते हैं शायद ये मेरी ही कमी है किसी का कोई कुसूर नहीं। बहरहाल मैं पहले भी तनहा था और आज भी तनहा हूं और सच में ये तन्हाई पहले से ज़्यादा जानलेवा है।
कल रात भर सो नहीं पाया सुबह 6 बजे नींद की गोलियां लीं फिर याद नहीं कब सोया कुछ देर के लिए नींद खुली लंच किया और फिर शाम को 7 बजे जगा। यूंही कुछ देर के लिए घर से बाहर गया और अब लिखने बैठ गया। कई रोज़ से ज़हनी कैफियत कुछ ऐसी ही है।
ज़हनी तनाव उलझनें मुश्किलें जिंदगी में आती रहीं और मैं उनसे जूझता रहा। आज भी हालात कुछ मुश्किल हैं लेकिन ये कोई नई बात नहीं। फिर वक्त बदलेगा। लेकिन कब और कैसे ये अभी कुछ साफ़ नहीं।
मैं जानता हूं मैंने अपने उसूलों के लिए अपना घर खानदान बिरादरी सब कुछ छोड़ा और एक नई जिंदगी शुरू की। फिर शायद जिंदगी कुछ ऐसे ही मोड़ पर है, माना कि अब उम्र नहीं है जिंदगी को फिर नए सिरे से जीने की। सेहत भी इजाज़त नहीं देती लेकिन मेरे उसूल कभी भी मुझे हालात के सामने झुकने नहीं देते।
कल रात जब मैं सो नहीं पा रहा था तो देर तक ख़ुदा से बातें कर रहा था शिकायतें कर रहा था और अपने माजी पर भी एक नज़र डाल रहा था कितने लोगों का भला किया कितने लोगों के काम आया कुछ याद नहीं लेकिन कुछ लोगों के साथ बुरा भी किया वो याद है मुझे।
सियासी दुश्मनी नाराज़गी आप जो भी कहिए एक जर्नलिस्ट की जिंदगी में आम बात है कई बार सरकारों से सरकार चलाने वालों से टकराव रहा। सबसे ज्यादा तो अहमद पटेल के साथ अना का टकराव रहा किस ने किसका कितना दिल दिखाया कहना मुश्किल है बहरहाल बर्बाद दोनों हुए।
सियासत से इतर अगर जाती ज़िंदगी की बात करें तो भी कम से कम 3 नाम ऐसे जिनका दिल दुखाया मैंने और मैं उनका कसूरवार हूं। आज की गुफ्तगू चूंकि जाती ज़िंदगी पर है तो ये जिक्र भी जाती रिश्तों का है।
ये तकरीबन 25 बरस पुरानी बात है जब एक लड़की बहुत चाहती थी मुझे और मैं भी चाहता था बात शादी तक पहुंची निकाह पढ़ाने के लिए मेरे करीबी दोस्त और मौलवी दिल्ली से मुंबई पहुंचे माहिम दरगाह पर सारा इंतजाम हुआ फिर निकाह के वक्त उसने कहा, काश मेरे घर वाले भी मेरे साथ होते। मैंने कहा कोई बात नहीं तुम उनसे बात कर लो, ये इंतज़ाम फिर हो जाएगा। लेकिन अफसोस वो लम्हा फिर नहीं आया।
दूसरी बार तकरीबन 10 बरस पहले जब मैं मुंबई में तनहा ज़िंदगी जी रहा था और बरसों हो गए थे तो सोचा दूसरी शादी कर लूं, वो एक बेवा खातून थी जिसके 2 बेटे थे। इस बार भी सब कुछ तय हुआ, वो अपनी मां और बच्चों के साथ मेरे घर आई और मैं उसके घर गया। मैं अपने परिवार के बारे में सोच कर रुक गया। काश उस वक़्त मैंने उससे शादी कर ली होती। शायद उन दोनों का बहुत दिल दुखाया मैंने।
मैं चूंकि लगातार तन्हा मुंबई में रह रहा था और तनहा रहने और दूसरी शादी के बारे में सोचने की वजह भी थी, लेकिन हर बार मुझे लगा कि मेरी इमेज और मेरे परिवार पर इसका असर पड़ेगा। लिहाज़ा ये फैसला नहीं कर सका तीसरी बार भी कशमकश यही थी, क्योंकि अब उम्र 60 को पार कर चुकी थी और बरहाल ये शादी की उम्र नहीं होती फिर सेहत भी इस लायक़ नहीं थी लगता था कि मैं चंद माह भी और नहीं जी सकूंगा। क्या ख़बर थी कि 12 बरस तक यूंही जीता रहूंगा और आज के मुश्किल हालात का सामना करूंगा।
पता नहीं अल्लाह को क्या मंजूर है, मुझे इन वाक़यात का जिक्र नहीं करना चाहिए था, मुझे दूसरी शादी के जो मौके आए उनका भी ज़िक्र नहीं करना चाहिए था। शायद मुझे इतनी लंबी जिंदगी नहीं जीना चाहिए था, लेकिन ये सब मेरे हाथ में नहीं और ये भी मेरे हाथ में नहीं कि मैं जिंदा रहूं और ज़रूरियात ए जिंदगी से दूर रहूं। ना ना मैं ऐसी किसी जरूरत की बात नहीं कर रहा हूं, बस वक्त पर खाना दवा,और इससे भी ज़्यादा और ज़रूरी है अपनापन, प्यार, मोहब्बत, दुख दर्द बांटने वाला कोई साथी जो उम्र के इस हिस्से में सबसे बड़ी ज़रूरत होती है।
उनकी फेसबुक वॉल से साभार

