(राजेश सिंह)
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने दावा किया है कि भारत की अर्थव्यवस्था चमक रही है, लेकिन हकीकत में यह चमक केवल पूंजीपतियों की जेबों तक सीमित है। 2014 से 2025 तक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने करीब 12 लाख करोड़ रुपये के लोन राइट-ऑफ किए हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा बड़े उद्योगों और सेवाओं सेक्टर से जुड़े हैं। यह राइट-ऑफ कोई जादू नहीं, बल्कि आम जनता के टैक्स पैसे से भरे बैंक खातों का सीधा हस्तांतरण है, जहां सरकार ने रिकवरी पर सख्ती का दावा करते हुए भी केवल 10 लाख करोड़ ही वसूल किए हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का तर्क कि यह ‘वेवर’ नहीं बल्कि ‘राइट-ऑफ’ है, एक खोखला बहाना लगता है, क्योंकि नतीजा वही है, अंबानी-अडानी जैसे चंद क्रोनी पूंजीपतियों को माफी, जबकि किसान और छोटे व्यापारी जेल की हवा खा रहे हैं।
इधर, आम आदमी की जेब पर डाका डालने का सबसे कुटिल तरीका है “न्यूनतम बैलेंस न बनाए रखने पर लगने वाले जुर्माने”, जो गरीबों की आर्थिक रीढ़ को चुपचाप तोड़ रहा है। 2023-24 में ही 11 सार्वजनिक बैंकों ने इस बहाने से 2,331 करोड़ रुपये वसूल किए, जो FY23 के 1,855 करोड़ से 25.63% की भयानक बढ़ोतरी दर्शाता है, जबकि FY21 से FY25 तक कुल 8,936 करोड़ का कलेक्शन हो चुका है, यह राशि इतनी बड़ी है कि अगर इसे वितरित किया जाता तो लाखों गरीब परिवारों का भरण-पोषण हो जाता। बैंक-वार देखें तो पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने सबसे ज्यादा 633.4 करोड़ का हिस्सा लिया, उसके बाद इंडियन बैंक ने FY25 में 503 करोड़, बैंक ऑफ बड़ौदा ने 386.16 करोड़, और कनारा बैंक ने 294.91 करोड़ वसूले, जबकि SBI ने 2020 से ही इन पेनल्टी को खत्म कर दिया था। ये पेनल्टी ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों के लोगों को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाती हैं, जहां मासिक आय ही 10-15 हजार तक सीमित है और न्यूनतम बैलेंस की मांग (जैसे मेट्रो में 3,000-5,000 रुपये) परिवार के खाने-पीने पर असर डालती है। RBI की गाइडलाइंस कहती हैं कि ये चार्जेस ‘उचित’ हों और शॉर्टफॉल के प्रतिशत पर आधारित हों (जैसे 5-6% या अधिकतम 500 रुपये), साथ ही खाते को नेगेटिव बैलेंस न होने दें, लेकिन हकीकत में ये लूट का वैध लाइसेंस हैं, जो निम्न-आय वर्ग के 70% खर्च को खाने पर केंद्रित परिवारों को और गहरा संकट में धकेल देते हैं।
RBI का रवैया इस पूरे ड्रामे में सबसे शर्मनाक है, एक केंद्रीय बैंक जो जनता की रक्षा का दावा करता है, लेकिन न्यूनतम बैलेंस पेनल्टी पर पूंजीपतियों के लोन माफ करने जितनी चुप्पी साधे रहता है और आम आदमी की चीखें अनसुनी कर देता है। 2024-25 में जब बैंकों के मिनिमम बैलेंस पेनल्टी पर सवाल उठे, तो RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने साफ कह दिया कि यह बैंकों का ‘अपना फैसला’ है, कोई केंद्रीय हस्तक्षेप नहीं, जबकि 2014-15 की गाइडलाइंस में ही कहा गया था कि पेनल्टी शॉर्टफॉल के स्लैब पर आधारित हो, एक महीने की नोटिफिकेशन (SMS/ईमेल) के बाद ही लगे, और खाते को नेगेटिव न बनने दें। लेकिन अप्रैल 2024 से इनऑपरेटिव अकाउंट्स पर पेनल्टी पर रोक लगाई, क्या यह दया है या देर आयी दुरुस्त आयी? असल में RBI मोदी सरकार के इशारों पर नाच रहा है, जहां जन धन खातों पर तो जीरो बैलेंस की सुविधा है (57 करोड़ BSBD अकाउंट्स के साथ), लेकिन रेगुलर सेविंग्स में लूट मच रही है। अब अक्टूबर 2025 से नई RBI नियम आ रहे हैं: पेनल्टी तभी लगेगी जब बैलेंस 500 रुपये से नीचे तीन महीने लगातार रहे, ATM पर मासिक 5 फ्री ट्रांजेक्शन, और ग्रामीण/सेमी-अर्बन में कम थ्रेशोल्ड (2,500-5,000 रुपये), लेकिन यह भी आधी-अधूरी राहत है क्योंकि FY25 तक 8,936 करोड़ पहले ही लूट चुके हैं। न्यूनतम बैलेंस पेनाल्टी के मामले में निजी क्षेत्र के बैंक काफी आगे हैं निजी क्षेत्र के बैंकों के FY25 में पेनाल्टी का यह आकड़ा 50,000 करोड़ के ऊपर है।
आम जनता के साथ जो हो रहा है, वह चारों तरफ से नोचने का खेल है, और न्यूनतम बैलेंस पेनल्टी इसका सबसे घिनौना हथियार है, जो गरीबी को और गहरा कर रहा है। एक तरफ बैंकों के जुर्माने सालाना हजारों रुपये निगल जाते हैं, जैसे PNB के 1,662 करोड़ या इंडियन बैंक के 1,828 करोड़ FY21-25 में जो निम्न-आय घरों के 65-70% फूड बजट को प्रभावित करते हैं, दूसरी तरफ महंगाई और बेरोजगारी ने उनकी कमर तोड़ दी है। 2023 में Gini कोएफिशिएंट 0.410 तक पहुंच गया, जो 1955 के 0.371 से ज्यादा है, यानी आय असमानता 70 साल पुराने स्तर से भी बदतर हो चुकी है। ऊपरी 1% के पास 40% से ज्यादा संपत्ति है, जबकि निचले 50% के पास महज 3% संपत्ति है। मोदी राज में 119 अरबपति पैदा हो चुके हैं, जिनकी संपत्ति दस गुना बढ़ी, लेकिन 63 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिए गए, और इनमें से लाखों के वेलफेयर डिपॉजिट्स (जैसे स्कॉलरशिप या DBT) भी पेनल्टी से कट जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां 21% घर पहले से गरीबी में हैं, OOP (आउट-ऑफ-पॉकेट) खर्चों के साथ यह 23% तक पहुंच जाता है, और पेनल्टी इस चक्र को तेज करती है। यह ‘विकास’ नहीं, बल्कि विनाश सहित देश की आम जनता के साथ ‘विश्वासघात’ है, जहां लो-इनकम हाउसहोल्ड्स को बिना पेनल्टी वाले अकाउंट्स (जैसे BSBD) की सलाह दी जाती है, लेकिन रेगुलर सेविंग्स में फंसाकर लूट लिया जाता है।
पूंजीपतियों को दिए जाने वाले इन ‘फ्रीबीज’ का बोझ सीधे जनता पर डाला जा रहा है, बैंकें जहां न्यूनतम बैलेंस पेनल्टी के नाम पर गरीबों का खून चूस रही है। 2014 से 2023 तक NPA 365% बढ़कर 18 लाख करोड़ हो गया है, लेकिन रिकवरी सिर्फ 13%। कांग्रेस का आरोप सही है कि यह ‘रॉबिंग द पुअर टू पे द रिच’ का मोदी मंत्र है। बैंक राइट-ऑफ के बाद भी वसूली पर जोर नहीं देते, क्योंकि मोदी के इशारे पर ये ‘मित्रों’ को माफी दे रहे हैं। नतीजा? सार्वजनिक बैंक घाटे में डूबे, और टैक्सपेयर का पैसा इनाम बन गया। क्या यही है ‘अकाउंटेबिलिटी’? यह तो खुल्लमखुल्ला लूट है, जहां FY19-20 से FY23-24 तक PSBs ने 8,495 करोड़ पेनल्टी वसूली, और प्राइवेट बैंक जैसे HDFC, ICICI (जो 50,000 AMB पर 6% या 500 रुपये चार्ज करते हैं) भी इसमें शामिल हैं, 2018 से कुल मिलाकर 35,587 करोड़ से ज्यादा लगभग 50,000 करोड़ की (पेनाल्टी) लूट का अनुमान है !
मोदी सरकार की नीतियां गरीबों को कुचलने और अमीरों को ऊंची उड़ान देने का घिनौना मॉडल हैं, और न्यूनतम बैलेंस पेनल्टी इसका जीता जागता उदाहरण। जन धन योजना के 57 करोड़ जीरो-बैलेंस खाते होने के बावजूद, रेगुलर अकाउंट्स में पेनल्टी वसूली 2024 में भी जारी रही, लेकिन 2025 में बदलाव आया: SBI, PNB, कनारा, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन बैंक ने जुलाई 2025 से पेनल्टी हटा दी, जबकि बैंक ऑफ इंडिया ने भी वैव्ड कर दी। RBI ने 2025 में कुछ बैंकों को पेनल्टी हटाने की छूट दी, लेकिन यह आधी-अधूरी दया है, निजी बैंकों की पेनाल्टी लूट अभी भी धड़ल्ले से जारी है। असली समस्या नीतिगत है: क्यों निजीकरण के नाम पर बैंक पूंजीपतियों के हाथों बिक रहे हैं? क्यों टैक्स सिस्टम अमीरों को राहत देता है, जबकि GST और पेनल्टी गरीबों का गला घोंटते हैं? ग्रामीण महिलाओं, किसानों और लो-इनकम फैमिली को टारगेट करते हुए PNB ने कहा कि यह ‘हसल-फ्री बैंकिंग’ है, लेकिन FY25 तक 2,331 करोड़ की लूट पहले ही हो चुकी थीं। यह असमानता का महाभियोग है, जहां 25% आबादी (35 करोड़) गरीबी में जी रही है और फूड पर 65-70% खर्च करती है।
अंत में, आम आदमी की नियति मोदी राज में यही बन चुकी है, चारों ओर से लूटा जाना, खासकर न्यूनतम बैलेंस पेनल्टी जैसे हथियारों से। Gini 0.528 तक पहुंच चुका है, जहां ऊपरी 1% की संपत्ति 40% है, और निचले 50% को 3% भी नसीब नहीं। विश्व बैंक के डेटा को तोड़-मरोड़कर ‘समानता’ का झूठा प्रमाणपत्र बनाया जा रहा है, लेकिन हकीकत साफ है: यह ‘सूट-बूट’ की सरकार है, जो जनता को EMI का बोझ और बैंकों न्यूनतम बैलेन्स पेनाल्टी का डंडा दे रही है। अगर यही चलता रहा, तो क्रांति की चिंगारी जलनी तय है। भारत की जनता को जागना ही होगा, वरना इनके लूट यह मॉडल अनंतकाल तक चलता रहेगा !

